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Updated: 19 अक्टूबर, 2016 08:01 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
  @arvind.mishra.505523
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एक अमेरिकी शोध के अनुसार विश्व धरोहरों में शामिल और मोहब्बत और प्रेम के प्रतीक आगरा का ताजमहल दिनोंदिन चमक खोता जा रहा है. इसका कारण मौसम के मिजाज का बिगड़ना नहीं बल्कि आगरा की जनता व स्थानीय प्रशासन है. शोध में सामने आया है कि आस-पास ठोस कूड़ा जलाने से ताजमहल बदरंग हो रहा है. और ये रुक नहीं रहा है.

शोध में पाया गया कि ठोस कूड़ा जलाने के कारण वायु प्रदूषक (पार्टीकुलेट मैटर) नुकसानदेह स्तर पर पहुंच जाता है. उपले और ठोस कूड़े के धुएं की परत ताजमहल की दीवारों और छतों आदि पर चिपक जाती है, जो आखिरकार इस धरोहर के लिए खतरे की घंटी है.

जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के राज एम. लाल, आर्मीस्टीड जी. रसेल, लिना लू, यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा के अजय एस. नागपुरे और अनु रामास्वामी, ड्यूक यूनिवर्सिटी के माइकल एच. बर्जिन और आइआइटी कानपुर के सच्चिदा एन. त्रिपाठी ने शोध कर यह दावा किया है. उनका शोध पत्र एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इसमें दावा किया गया है कि हाल ही में कचरे के जलने पर उपले जलने की अपेक्षा 10 गुना अधिक प्रदूषण हो रहा है.

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वैज्ञानिकों ने बताया है कि कचरा जलाने से ताजमहल की सतह पर प्रतिवर्ष 150 मिलिग्राम प्रति वर्ग मीटर (एमजी एम-2) पीएम-2.5 की परत जमा होती है. उपले जलाने से महज 12 एमजी एम-2 की परत बनती है. शोधकर्ताओं ने बताया कि इन दोनों के जलाने से स्थानीय निवासी के स्वास्थ्य पर भी बुरा बसर पड़ रहा है. इसके कारण लोगों की समय पूर्व मौत भी हो रही है.

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 कब बंद करेंगे हम ताजमहल को प्रदूषित करना?

उपलों पर लगाया गया था प्रतिबंध

इससे पूर्व जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, आईआईटी कानपुर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रसायन शाखा ने वर्ष 2011 से 2012 के मध्य ताज पर सर्वे किया था. इसमें ताज की सतह पर कार्बन कण पाए गए थे. सर्वे रिपोर्ट के अनुसार अध्ययन में ताज पर 55 फीसद धूल कण, 35 फीसद ब्राउन कार्बन कण और 10 फीसद ब्लैक कार्बन कण मिले थे. जिसके बाद ताज के के आसपास की बस्तियों में उपले जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

एएसआई कर रही मडपैक थैरेपी

धूल व प्रदूषण की वजह से चमक खोते ताज को चमकाने के लिए एएसआइ की रसायन शाखा उस पर मडपैक थैरेपी कर रही है. ताज की दक्षिण-पूर्वी मीनार को छोड़कर अन्य मीनारें साफ की जा चुकी हैं. ताज के पूर्वी भाग में मेहराबों में इन दिनों मडपैक किया जा रहा है.

हलांकि इस शोध की  मदद से भविष्य में ताज की चमक को बचाने में मदद मिलने की संभावना भी  बढ़ गई है.

सत्रहवीं सदी में यमुना के तट पर आगरा में बना यह मकबरा पूरी दुनिया के पर्यटकों के लिए सदा से आकर्षण का केंद्र रहा है. वर्षों से भारत का नाम रोशन कर रहा ताजमहल प्रेम का ऐसा मंदिर-मस्जिद है जिसे हर कोई निहारना चाहता है. रोज लगभग 25 हजार लोग ताजमहल देखने आते हैं. पर्यटन से आगरा के लोगों और प्रशासन को अरबों रुपए की आय होती है. इससे हजारों परिवारों की रोजी-रोटी चलती है. बावजूद इसके ताजनगरी के लोग ही यदि इसे बर्बाद करने पर तुल जाएं तो दोष किसे दिया जाए? बात अकेले ताजमहल की ही नहीं.

भारत के तमाम शहरों में ऐसे कई धरोहरें हैं जो इसी तरह लापरवाही का शिकार होकर दम तोड़ रही हैं. जिन लोगों की गुजर-बसर ऐसी धरोहरों से हो रही हैं, वे भी इसे बचाने के प्रति गंभीर नजर नहीं आते.

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ताजमहल को लेकर शोध की रिपोर्ट पहली बार सामने नहीं आई है. कई एजेंसियां ताजमहल के पीले पडऩे की हकीकत पहले भी जता चुकी हैं, फिर भी सुध लेने वाला कोई नजर क्यों नहीं आ रहा?

केंद्र-राज्य सरकारों के विभागों से जुड़े कर्मियों के साथ जनता को भी इन्हें बचाए रखने के लिए आगे आना चाहिए.

आगरा में ताजमहल, दिल्ली में लाल किला, जयपुर में हवामहल और किले, उदयपुर में झीलें, भोपाल में बड़ा तालाब और हैदराबाद में चारमीनार नहीं रहे तो वहां कौन पर्यटक आना चाहेगा?

ताजमहल 17 वीं शताब्दी में बना आगरा और भारत के गौरवशाली इतिहास का वह नायाब हीरा है जिसे हर तरह से बचाये रखना ज़रूरी है.  सन 1983 में ही यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित ताजमहल का भविष्य प्रदुषण के नियंत्रण से सीधा जुड़ा है. अगर कमर कस ली जाए तो आगरा में प्रदुषण को कम करना बहुत मुश्किल नहीं. केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, जिला प्रशासन हो या आगरा के आम लोग, आगरा और ताजमहल को वायु प्रदुषण से बचाये रखना निश्चित तौर पर सबकी सम्मलित ज़िम्मेदारी है. जो फिलहाल पूरी तरह से निभाई नहीं जा रही है.

लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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