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Updated: 21 दिसम्बर, 2016 03:31 PM
रीमा पाराशर
रीमा पाराशर
  @reema.parashar.315
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5000 रु. से ज्‍यादा के पुराने नोट जमा कराने को लेकर की जा रही पूछताछ में यू-टर्न लेते हुए आरबीआई ने अब रियायत दी है. इस तरह नोटबंदी को लेकर यह सरकार की ओर से आया 54वां आदेश था. लेकिन नोटबंदी के इन 43 दिनों में 14 बार सरकार अलग-अलग फरमान लेकर आई, जिससे सरकार की तैयारियों को लेकर सवाल खड़े होना लाजमी हैं.

वित्त मंत्री अरुण जेटली भले ही बार-बार ये दावा कर रहे हों कि नोटबंदी पर सरकार की तैयारी पूरी थी, लेकिन 8 नवम्बर से अब तक लगातार सरकार के एक के बाद एक उठाये गए कदम इस दावे पर सवाल उठाने के लिए काफी हैं. विपक्ष की बात छोड़ दें तो भी लगातार बैंकों की लंबी कतार में खड़ा आम आदमी ये जरूर पूछ रहा है कि आखिर रोजाना सरकार राहत के नाम पर ऐसी घोषणाएं क्यों कर रही है जिनसे काला धन रखने वालों पर असर हो न हो, उन्हें जरूर पिसना पड़ रहा है.

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 8 नवम्बर से अब तक वित्त मंत्रालय द्वारा लगभग 14 घोषणाएं की जा चुकी हैं

5000 रुपये के डिपाजिट को 30 दिसम्बर तक सिर्फ एक बार कर पाने के ऐलान ने कई सवालों को जन्म दिया है, शायद इसीलिए वित्त मंत्री अरुण जेटली से जब बार-बार इसकी वजह पूछी गई जो जवाब था कि 'अब तक जिन लोगों ने बड़ी रकम बैंको की जगह घर में रखी है वो संदेह के घेरे में हैं'.

यानी निशाने पर काले धन के कारोबारी हैं लेकिन सच यही है कि इस फैसले के अगले ही दिन पैनिक में आने वाले कोई और नहीं बल्कि आम जनता और छोटे व्यापारी हैं. तो वित्त मंत्री ने उनके लिए टैक्स में छूट की घोषणा कर दी. हालांकि ये अभी साफ नहीं है कि इतना समय बीतने के बाद दी गई राहत का असर इन लोगों पर अब कितना पड़ेगा.

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नरेंद्र मोदी सरकार के पास ये रिपोर्ट भी पहुंच रही है कि नोटबंदी का डेढ़ महीने तक जो सकारात्मक असर रहा वो धीरे-धीरे अब कमजोर पड़ रहा है. और इसकी दो अहम वजह हैं, एक कुछ बैंक अधिकारियों की काले धन को सफेद करने वालों के साथ मिलीभगत और दूसरी आनन फानन में बार बार सरकार की नई नई घोषणाएं. 8 नवम्बर के बाद से वित्त मंत्रालय लोगों को राहत पहुंचाने के लिए लगभग 14 घोषणाएं कर चुका है. रोजाना समीक्षा बैठक हो रही है और उसके आधार पर फिर एक और घोषणा.

जाहिर है ये कदम सरकार की मंशा पर कहीं सवाल खड़ा नहीं कर रहे और परेशानी के बावजूद ईमानदार जनता मोदी का गुणगान भी कर रही है, लेकिन ये भी सच है कि 30 दिसम्बर की समयसीमा नजदीक आते आते चर्चा शुरू हो चुकी है कि आखिर सरकार ने ये कदम उठाने में इतनी देर क्यों की. क्या सरकार के रणनीतिकारों को इन सबका अंदाजा नहीं था. और अगर था तो फिर समय रहते लोगों के मन में पैदा हुए इस शक को दूर क्यों नहीं किया गया कि सरकार ने बिना तैयारी के इतना बड़ा फैसला ले लिया.

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लेखक

रीमा पाराशर रीमा पाराशर @reema.parashar.315

लेखिका आज तक में पत्रकार हैं.

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