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Updated: 24 अक्टूबर, 2022 01:08 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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प्रधानमंत्री ठीक कहते हैं, हमें चौबीस घंटे चौकन्ना रहना चाहिए. समय कुछ ऐसा है, कोई भी चौंका सकता है. क्योंकि चौंकाने का तरीका अब कईयों ने सीख लिया है. केंद्र की मोदी सरकार ही अभी तक अपने फैसलों-निर्णयों से देशवासियों को चौंकाती थी. लेकिन उनके देखा देख अब संवैधानिक संस्थाएं भी वैसा ही करने लगी. चुनाव आयोग ने भी चौंका दिया. बीते दिनों मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार द्वारा एक साथ दो राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान करना था. जब ऐलान हुआ तो सिर्फ हिमाचल का गुजरात का नहीं? जबकि सुबह से ही सभी न्यूज चैनल गला फाड़फाड़ के चिल्ला रहे थे जिनमें वो गुजरात का चुनावी शेडयूल और जीत-हार का फार्मूला दर्शा रहे थे. चुनावी तारीखों को लेकर चैनलों में डिबेट बैठ चुकी थीं, एक्सपर्ट मोर्चा संभाले हुए थे, सबका फोकस गुजरात पर ही था.

Gujarat, Gujarat Assembly Elections, Himachal Pradesh, Election Commission, BJP, Narendra Modiगुजरात और हिमाचल चुनाव के तहत जो फैसला अभी चुनाव आयोग ने लिया उसने कई लोगों को हैरत में डाल दिया

गुजरात केंद्र बिंदु में इसलिए है क्योंकि प्रधानमंत्री का मूल राज्य है. तारीखों के ऐलान से पहले चैनलों पर एक्सपर्ट ने गुजरात के प्रत्येक विधानसभाओं पर घंटों चर्चांए की. आयोग की प्रेस वार्ता दोपहर बाद तीन बजे निर्धारित थी. जैसे ही समय हुआ, आयुक्त राजीव कुमार आए और बोलना शुरू किया. चैनलों ने भी गुजरात पर ब्रेकिंग न्यूज चलानी शुरू कर दी.

अपने-अपने अनुमान के हिसाब से तारीखें बताने लगे, लेकिन जब चुनाव आयोग ने सिर्फ हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीख बताई और गुजरात का जिक्र तक नहीं किया, तो चैनल-डिबेट के एक्सपर्ट एक दूसरे की बगले झांकने लगे. किसी को इस बात का अंदेशा नहीं था कि ऐसा होगा. मीडिया और देश के लोगों को उम्मीद थी कि चुनाव आयुक्त साहब पहले गुजरात चुनाव को लेकर बात करेंगे.

पर, वैसा हुआ नहीं, सबको उन्होंने भी चौका दिया. बहरहाल, हिमाचल के साथ गुजरात चुनावों की घोषणा नहीं करने को लेकर कांग्रेस ने भाजपा को आड़े हाथ लिया है. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का तुरंत बयान आया, बोले, गुजरात चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने हिसाब से करावाएंगे, जो तारीखें उन्हें सूट करेंगी, उन्हीं का ऐलान करवाएंगे.क्योंकि अभी उनको वहां योजनाओं के रूप में लोगों को और लॉलीपॉप देना है, हसीन सपने दिखाने हैं, साथ ही रेवड़ियों को भी बांटना है.

इसलिए उन्होंने चुनाव तारीखों का ऐलान रूकवा दिया. खड़गे ने कहा इस दफे प्रधानमंत्री को हार का डर जबरदस्त सता रहा है. वहीं, चुनावी पंड़ितों को भी चुनाव आयोग के चौकाने वाला गणित समझ नहीं आया. चुनावी घोषणा के बाद फिलहाल सियासी दल एक्टिव मोड़ हैं, प्रचार तेज कर दिया है. भाजपा हिमालच में भी अपनी सरकार की रिपीटेशन चाहती है. उनको लगता है आम आदमी पार्टी के आने से उनका रास्ता और आसान हुआ है. 

क्योंकि पिछले बार कांग्रेस को वहां 68 में से 21 सीटें मिली थी, जिनमें 15 सीटों पर हार का मार्जन मात्र हजार से डेढ़ हजार के बीच रहा था. वहीं, भाजपा को 44 सीटें मिली थी. गौरतलब है हिमाचल प्रदेश की स्थिति पहले जैसे नहीं है. अभी कुछ महीनों पहले वहां उपचुनाव हुए थे जिसमें भाजपा बुरी तरह हारी थी. उसके बाद भाजपा ने योजनाओं की बेतहाशा झड़ी लगाई, आधी आबादी को रिछाने के लिए बसों में आधा किराया करने का निर्णय लिया.

इसके अलावा और भी कई लोकलुभावन योजनाओं का शुभारंभ किया.प्रधानमंत्री लगातार पहुंच रहे हैं, प्रचार कर रहे हैं, करोड़ों रूपये योजनाओं की धड़ाधड़ फीता काट रहे हैं. इसके अलावा अगले कुछ दिनों के लिए अंधाधुंध रैलियों का प्रोग्राम लगा हुआ है. कुल मिलाकर वहां भी भाजपा के लिए चुनाव जिताउ फेस प्रधानमंत्री ही हैं. हांलाकि कांग्रेस भी इस बार कड़ी मेहनत कर रही है. वहां भी पांच-पांच साल में सरकार बदलने का रिवाज रहा है.

एक बार कांग्रेस तो अगली बार भाजपा? क्या इस बार ये चलन टूटेगा. जैसे, उत्तराखंड में हुआ, है इस बार. वहां भाजपा ऐसी पहली पार्टी बनी जिसने लगातार दोबारा सरकार बनाई हो. ऐसा ही कारनामा भाजपा हिमाचल में करना चाहती है. दिल्ली में इसी थ्योरी पर रणनीति तैयार हो रही है. हो सकता इस बार उनका खेल आम आदमी पार्टी कुछ हद तक बिगाड़ दे.

हालांकि, केजरीवाल हिमाचल में अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का दम भर रहे हैं. वैसे, राजनीति में आत्मविश्वास तो केजरीवाल जैसा ही होना चाहिए? मैदान में चित भी हो जाओ, तब भी हार मत मानो? कहते रहो, मैं जीता, मैं जीता? केजरीवाल इसी फार्मूले के साथ आगे बढ़ रहे हैं. खुदा-ना-खास्ता अगर केजरीवाल पहाड़ी राज्य हिमाचल में वोट काटते हैं और दो-चार सीटें झटक लेते हैं, तो दोनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस-भाजपा का रायता फैला सकते हैं जिसके लिए वह जाने जाते हैं.

हिमाचल में मुस्लिम और आदिवासी समुदाय का वोट भी अच्छा खासा है जो शायद इस बार भी भाजपा के खाते में ना जाए, उनमें केजरीवाल सेंध लगाएंगे. इस लिहाज से भाजपा के मौजूदा 44 जीती हुई सीटों में नुकसान हो सकता है. वहीं, भाजपा के लिए इस बार गुजरात की डगर भी आसान नहीं? केजरीवाल वहां भी हंगामा काटे हुए हैं. उन्हें रोकने के लिए भाजपा ने अपनी समूची मशीनरी उनके लगा दी है.

अभी पिछले ही सप्ताह उनके गुजरात इकाई के अध्यक्ष गोपाल ईटालिया को दिल्ली पुलिस के हाथों पकड़वाया. उनपर आरोप है कि उन्होंने वीडियो के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी माता हराबेन के खिलाफ अभद्र टिप्पणियां की. वीडियो काफी पुराने हैं. तबके, जब वह आम आदमी पार्टी से जुड़े भी नहीं थे. लेकिन भाजपा ने चुनावी फायदा उठाकर उनके जरिए केजरीवाल को घेरा हुआ है.

लेकिन कायदे से देखें, तो किसी पुराने विचारों से उसका वर्तमान तय नहीं करना चाहिए, इंसान गलतियों का पुतला है, गलतियां होती हैं. पर, समय के साथ इंसान के विचारों में निरंतर बदलाव भी होते हैं. उम्र और समय के साथ खुद में परिवर्तन करता है और बहुत कुछ सीखना-समझता है. पर, भाजपा को शायद गड़े मुर्दे उखाड़ने में ही मजा आता है.

जो आरोप गोपाल ईटालिया हैं, वैसे आरोप तो भाजपा के अनगिनत नेताओं पर हैं. उन सबको जेलों में डाला जाए, तो जेलें कम पड़ जाएंगी. इन्हीं हरकतों के कारण आज देश के जरूरी मुद्दे दब गए हैं. महंगाई-बेरोजगारी जैसे मसलों पर कोई बात नहीं करता, जबकि करना चाहिए?

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