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Updated: 07 जनवरी, 2017 06:19 PM
आदर्श तिवारी
आदर्श तिवारी
  @adarsh.tiwari.1023
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सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए चुनाव आयोग ने बुधवार को पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव का शंखनाद कर दिया है. यूपी, पंजाब, गोवा, उत्तराखंड तथा मणिपुर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही सभी राजनीतिक दलों में हलचल तेज़ हो गई है. इन राज्यों में चुनाव परिणाम भविष्य के गर्भ में है लेकिन, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह चुनाव सभी राजनीतिक दलों के लिए वर्चस्व की लड़ाई है. चार फरवरी से शुरू होने जा रहा यह चुनावी दंगल आठ मार्च तक चलेगा तथा ग्यारह मार्च को सभी राज्यों के नतीजे एक साथ आयेंगे. चार फरवरी को गोवा–पंजाब से चुनाव की शुरुआत होगी. ग्यारह फरवरी से सात चरण में यूपी विधानसभा के चुनाव संपन्न होंगे. वहीं, मणिपुर में पहले चरण का मतदान चार मार्च को और दूसरे चरण का का मतदान आठ मार्च को समाप्त होगा तथा उत्तराखंड में पन्द्रह फरवरी को वोटिंग होगी.

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 इलेक्शन के पहले ही सभी पार्टियों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है और सभी अधर में अटकी हुई दिख रही हैं.

इन सभी राज्यों के चुनाव परिणाम निश्चित तौर पर भविष्य की राजनीति की दिशा व दशा तय करने वाले होंगे. गौरतलब है कि यह चुनाव राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों के लिए भी किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा. केंद्र में सत्तारूढ़ दल बीजेपी को सरकार में आये ढाई वर्ष का समय बीत चुका है. इस चुनाव में केंद्र सरकार अपने तमाम विकास के दावों तथा लोककल्याणकारी योजनाओं को लेकर जनता के बीच जाएगी वो वहीं, अन्य विपक्षी दल सरकार के ढाई की विफलता का ढोल जनता के सामने पिटते हुए नजर आएंगे. ऐसे में बीजेपी के सामने दोहरी चुनौती मुंह बाए खड़ी है जिससे निपटना आसन नहीं होगा. पंजाब और गोवा का किला बरकरार रखने के साथ–साथ अन्य राज्यों में खासकर उत्तर प्रदेश में बीजेपी को अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव होगा. जाहिर है कि लोकसभा चुनाव में यूपी की जनता ने अस्सी में से 71 सीटें बीजेपी की झोली में डाल दी थी. अब यह देखने वाली बात होगी कि बीजेपी इस बार उत्तर प्रदेश की जनता को रास आती है या नही. वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस में समक्ष भी कमोबेश यही स्थिति है उसे भी मणिपुर तथा उत्तराखंड की सत्ता को बचाए रखने के बाद अन्य राज्यों में भी अपने प्रदर्शन को सुधारने की बड़ी चुनौती सामने है.

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गौरतलब है कि एक के बाद एक हो रहे चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ रही है ऐसे में कांग्रेस के लिए यह चुनाव बची–कुची साख को बचाने की लड़ाई है. कांग्रेस के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि जब पांच राज्यों का सियासी पारा हाई है उसवक्त कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का विदेश में है. सहजता से अंजादा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस इन राज्यों के चुनाव को लेकर कितनी गंभीर है! इन सभी के अलावा आम आदमी पार्टी पंजाब व गोवा में जीत का दावा कर रही है उसके इस दावे में कितना दम है, चुनाव के उपरांत यह भी स्पष्ट हो जायेगा. बहरहाल, इसमें कोई दोराय नहीं कि पांच राज्यों में होने रहे इस विधानसभा चुनाव का केंद्र बिन्दु उत्तर प्रदेश रहने वाला है. जाहिर है कि उत्तर प्रदेश चुनाव परिणाम का सीधा प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ता है. वर्तमान दौर में चुनाव सिर है लेकिन, उत्तर प्रदेश की सियासत में भारी उठापटक का दौर जारी है.

वर्तमान में यूपी के चुनाव में सक्रिय मुख्य राजनीतिक दलों का सरसरी तौर पर मूल्यांकन करें तो बीजेपी को छोड़ सभी दलों में भारी अस्थिरता का महौल है. जिसका लाभ बीजेपी को मिलन तय है. समाजवादी पार्टी की नौटंकी हम सबके सामने है, कभी पिता–पुत्र तो कभी चाचा–भतीजे की लड़ाई इस हद तक पहुंच चुकी है कि समाजवादी पार्टी में दो फाड़ हो चुके हैं, यहाँ तक की मामला चुनाव आयोग तक पहुँच चुका है, अभी यह पार्टी तथा चुनाव चिन्ह वजूद में रहेगा की नहीं इसपर भी कुछ कहना जोखिम भरा होगा. कोई भी पार्टी जब अपने शासन का कार्यकाल पूरा कर रही होती है तो उसका दायित्व बनता है कि वह अपने कामकाज का लेखा–जोखा ईमानदारी पूर्वक जनता के समक्ष रखे लेकिन समाजवादी पार्टी ने इससे बचने का दूसरा रास्ता इजात कर लिया.

इन पांच वर्ष की हुकूमत के दौरान प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, कुशासन सर चढ़ के बोलता रहा है, जाहिर है कि अखिलेश के नेतृत्व वाली सरकार ने प्रदेश में विकास का कोई ठोस खाका भी तैयार करने में पूर्णतया विफल साबित हुई है. जिसके कारण यूपी की जनता खार खाए बैठी हुई है. यूपी की जनता अखिलेश से बीते पांच वर्षों के कामकाज का हिसाब मांग रही रही है, जिसका जवाब न तो पार्टी के पास है तथा न ही मुख्यमंत्री के पास. जनता के इन सवालों का जवाब देने की बजाय पूरा समाजवादी खेमा जनता को भ्रमित करने में ताकत झोंक रखा है, लेकिन इस सियासी ड्रामे ने समाजवाद का परिवारवादी विभत्स चेहरा जनता के सामने बेनकाब कर के रख दिया है. हास्यास्पद स्थिति यह है कि इस वर्चस्व की लड़ाई में समाजवादी पार्टी के दोनों खेमे अब भी अच्छे और सच्चे समाजवादी का नारा बुलंद करने में नहीं थक रहे हैं. उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल बसपा की विडम्बना अलग है, वह नोटबंदी के फैसले से लगे सदमे से अभीतक उभर नहीं पा रही है.

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 सपा की राजनीति लोगों की समझ नहीं आ रही है

गौरतलब है कि नोटबंदी के बाद मायावती पूरी तरह बौखलाई हुई हैं वह यह साबित करने में अतिरिक्त मेहनत लगा रही हैं कि वर्तमान में स्थित केंद्र सरकार दलित विरोधी है तथा नोटबंदी से सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों तथा किसानों का हुआ है बल्कि स्थिति इसके विपरीत है. खैर, पहले से ही लगातार मुंह की खा रही कांग्रेस यूपी चुनाव को लेकर पहले से ही निराश नजर आ रही है. इन समस्त अवलोकन के बाद से यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की लोकप्रियता में दिनोंदिन इजाफ़ा देखने को मिल रहा है. गौर करें तो सभी दल एक- दूसरे पर आरोप –प्रत्यारोप लगाने में इतने व्यस्त हो गये हैं कि प्रदेश में विकास का मुद्दा गौण हो गया है लेकिन बीजेपी विकास के एजेंडे के सहारे ही प्रदेश चुनाव को लड़ने की कवायद कर रही है.

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बीजेपी की परिवर्तन रैली में जो जन समुदाय इकट्ठा हो रहा है वह बीजेपी विरोधी दलों की नींद उड़ाने वाला था, बेशक बीजेपी विरोधी दल इस भीड़ को ‘भाड़े की भीड़” बोलकर खुद की पीठ थपथपा ले लेकिन सच्चाई यही है कि बीजेपी हर रोज प्रदेश में मजबूत हो रही है जिसका असर चुनाव परिणाम में देखने को अवश्य मिलेगा. बहरहाल, जैसे –जैसे चुनाव करीब आते जायेंगें सियासी सरगर्मी और बढ़ेगी. अत: एक बात तो स्पष्ट है इस चुनाव में किसी दल को नाक बचाना है तो किसी को साख लिहाजा यह चुनाव बहुत दिलचस्प होने वाला है. सभी पार्टियाँ पूरी तैयारी के साथ पांच राज्यों के चुनावी दंगल में उतरने के लिए बेताब हैं, सभी दल अपनी –अपनी दावेदारी पेश करने से नहीं चुक रहें है किन्तु लोकतंत्र में असल दावेदार कौन होगा इसकी चाभी जनता के पास होती है, सत्ता की चाभी पांच राज्यों में की जनता किस–किस दल को सौंपती है यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है.

लेखक

आदर्श तिवारी आदर्श तिवारी @adarsh.tiwari.1023

राजनीतिक विश्लेषक, पॉलिटिकल कंसल्टेंट. देश के विभिन्न अख़बारों में राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर नियमित लेखन

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