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Updated: 06 अगस्त, 2015 03:48 PM
कावेरी बामज़ई
कावेरी बामज़ई
  @KavereeBamzai
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यह माना जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का सेंस ऑफ ह्यूमर अच्छा है. जब अमिताभ ठाकुर ने मुलायम सिंह यादव की ओर से धमकी दिए जाने की बात कही थी, तब जवाब में अखिलेश ने अपना उदाहरण देते हुए कहा था कि नेताजी तो मुख्यमंत्री को भी नहीं छोड़ते.

मुख्यमंत्री की इस बात का एक नमूना भी मिल गया जब मुलायम सिंह यादव ने एक सभा में बहुत ज्यादा बात करने के लिए सबके सामने अखिलेश को डांट दिया. समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद जनेश्वर मिश्रा की जयंती मनाने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में नाराज नेताजी ने बेटाजी को बोल दिया- 'बातों में लगे हो.'

हालांकि नेताजी को समझना आसान भी नहीं है. पिछले साल भी वह दो अलग-अलग मौकों पर अपने बेटे अखिलेश पर नाराजगी जताते नजर आए. मार्च में उन्होंने अखिलेश यादव को सावधान करते हुए कहा था कि उन्हें चापलूसों से दूर रहना चाहिए. मुलायम सिंह ने साफ शब्दों में कहा था, 'चापलूस पसंद लोग धोखा खाते हैं.' हो सकता है कि नेताजी उस समय अमर सिंह के साथ अपने अनुभवों की ओर इशारा कर रहे थे.

इसके बाद नवंबर में लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे की आधारशिला रखे जाने के समय भी नेताजी ने अपने बेटे पर नाराजगी जताई थी. राज्य सरकार की योजनाओं की ओर इशारा करते हुए मुलायम ने कहा कि योजनाएं पूरी नहीं होती. साथ ही नेताजी यहां तक कह गए कि वह चाहते हैं कि किसी पूरी हुई परियोजना का उद्घाटन करें. मुलायम यहीं नहीं रूके. उस कार्यक्रम के दौरान ही एक्सप्रेसवे निर्माण से जुड़े अधिकारियों को मंच पर बुला लिया और उद्घाटन का निश्चित दिन बताने को कहने लगे.

अपने पिता की ओर से बार-बार ऐसे व्यवहार के बावजूद अखिलेश उदारता से उन्हें सुनते हैं. इसका राज़ शायद उनके पालन-पोषण से जुड़ा है. अखिलेश ने अपने स्कूल के ज्यादातर दिन ढोलपुर के सैनिक स्कूल में बिताए. इस दौरान वह राजनीति में सक्रिय अपने पिता से दूर ही रहे. अखिलेश तब अक्सर स्कूल की छुट्टियों के दौरान ही अपने पिता से मिल पाते थे. स्कूल के बाद अखिलेश यादव कॉलेज के लिए मणिपाल और फिर ऑस्ट्रेलिया चले गए. संभवत: नेताजी उसी बीत चुके समय की अब भरपाई कर रहे हैं.

लेकिन मार्शल अंदाज में मुलायम का अपने बच्चों की परवरिश करने का यह तरीका अन्य राजनैतिक माता-पिताओं से जरूर अलग है. आपको बताते हैं अन्य नेताओं के कुछ और अंदाज :

मेरा बेटा सबसे अच्छा: अगर दशक की सबसे अच्छी मां का पुरस्कार किसी को दिया जाता है, तो सोनिया गांधी इसकी सबसे बड़ी हकदार होंगी. ऐसे ही, सत्तर के दशक में संजय गांधी को 'विशेष' बनाने के लिए यह पुरस्कार सोनिया की सास को जाना चाहिए. राहुल गांधी आज के दौर में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी उम्मीद हैं लेकिन अब तक वह इस पर खरे नहीं उतर सके. राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस लोक सभा में 44 सीटों तक सिमट गई. इसके बावजूद सोनिया अपने बेटे के साथ खड़ी हैं. बदले-बदले राहुल भी अब ज्यादा सक्रिय नजर आने लगे हैं. चाहे नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर हमला करना हो, उनके नारेबाजी की शैली पर सवाल उठाना हो या फिर लैंड बिल मुद्दा. राहुल सभी मुद्दों पर सक्रिय हैं. वह कुछ ऐसी छवि तो बनाने में कामयाब रहे ही है, जिससे हाल के दिनों में बड़ी बहुमत वाली सरकार के लिए भी मुश्किलें बढ़ी हैं.

डैड हैं बेटे के लिए शर्मिंदगी: फारूक अब्दुल्लाह ने अपने बेटे उमर को छह सालों तक अपने हिसाब से राज्य को चलाने की छूट दी. आखिर में नेशनल कांफ्रेंस को विधान सभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. उमर अपने वाचाल पिता से बिल्कुल अलग हैं. हालांकि फारूक ने भी उस मौके पर हस्तक्षेप किया जब एक बार उमर विधानसभा में अपना आपा खो बैठे और गुस्सा कर बाहर चले गए. लेकिन फिर भी ज्यादातर मौकों पर फारूक अपने बेटे को यही साबित करते रहे कि फिलहाल उन पर राज्य की जिम्मेदारी नहीं है.

मेरे बेटों ने उजाड़ा: यह सबको पता है कि एम. करूणानिधि हमेशा काले चश्मे पहने रहते हैं. करूणानिधि की विरासत का तमाशा उनके बेटों एम. के. स्टालिन और एम. के अलागिरी ने कैसे बनाया, इसे न ही देखें तो बेहतर है. दोनों बेटे अपने पिता की तरह अच्छे साबित नहीं हो सके. जहां तक बेटी कनिमोझी की बात है तो वह भी उस विरासत में खुद को ढालने में कामयाब नही रहीं. DMK का भविष्य क्या होगा? यह सवाल करूणानिधि को जरूर डराता होगा.

मेरे बेटे मेरे लिए बोझ: वसुंधर राजे अपने बेटे दुष्यंत सिंह और ललित मोदी के बीच की बिजनेस डील को अब भी दुनिया को नहीं समझा सकी हैं. इसलिए, ढोलपुर महल का असली मालिक कौन है. यह हम अब भी नहीं जानते.

मेरा बेटा? : जयंत सिन्हा भले ही मोदी सरकार में मंत्री हैं लेकिन इसके बावजूद उनके पिता यशवंत सिन्हा सरकार की आलोचना करने से नहीं चूकते. हाल में यशंवत सिन्हा ने कहा था कि इस सरकार में 60 की उम्र से ज्यादा के लोगों को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया है. इस बयान के बाद जयंत सिन्हा के अंदर की छटपटाहट की कोई केवल कल्पना ही कर सकता है.

वैसे, अगर अखिलेश कभी भी सार्वजनिक तौर पर मुलायम द्वारा डांटे जाने पर बुरा महसूस करते हैं तो उन्हें सलमान खान का उदाहरण लेना चाहिए. सलमान तो 50 साल की उम्र में भी समय-समय पर अपने पिता सलीम खान की नाराजगी झेलते हैं. अखिलेश तो अभी केवल 42 साल के ही हैं.

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लेखक

कावेरी बामज़ई कावेरी बामज़ई @kavereebamzai

लेखिका इंडिया टुडे ग्रुप में एडिटर-एट-लार्ज हैं.

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