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Updated: 23 मार्च, 2018 06:54 PM
हरमीत शाह सिंह
हरमीत शाह सिंह
  @harmeet.s.singh.74
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20 मार्च को पंजाबी पॉप स्टार और एक्टर दलजीत दोसांज दिल्ली के ऐतिहासिक गुरुदारे में आए थे. तब एक अप्रत्याशित घटना घटी. जैसे ही सेलिब्रिटी का फेसबुक लाइव शुरु हुआ दिल्ली सिख गुरद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष और बादल के विश्वासपात्र मंजीत सिंह जीके ने अपना कब्जा जमा लिया.

अकाली दल की लोकप्रियता को उड़ता पंजाब से धक्का लगा-

अनुराग कश्यप की फिल्म उड़ता पंजाब में दलजीत दोसांज की पुलिस वाले की भूमिका तो याद ही होगी. इस फिल्म ने राज्य में ड्रग्स के व्यापार को अंतर्राष्ट्रीय स्‍तर तक फैला दिया था. इस फिल्म ने राज्य में सत्तासीन शिरोमणी अकाली दल की लोकप्रियता को जबर्दस्त धक्का पहुंचाया था. जिसका नतीजा विधानसभा चुनावों में उनकी करारी हार के साथ सामने आया.

daljit dosanj, akali dal

दोसंज को रकाबगंज गुरद्वारे में घुमाकर जीके ने सिख राजनीति में अपनी छवि के साथ भी बड़ा रिस्क लिया. ये रिस्क धार्मिक भावनाओं तक पहुंच गया क्योंकि एक धार्मिक मंच पर उन्होंने दाढ़ी ट्रिम करवाए हुए सिख का स्मृति चिन्ह के साथ सम्मान किया. DSGMC (दिल्ली सिख गुरद्वारा प्रबंध कमेटी) के अध्यक्ष ने पहले तो दोसांज को 1984 के मेमोरियल का दर्शन करवाया और उसके बाद बड़े से कमेटी हॉल में दोसांज की आने वाली फिल्म सज्जन सिंह रंगरुट के प्रोमोशन के लिए संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कर डाली.

daljit dosanj, akali dalजीके ने बदलाव की राजनीति शुरु कर दी है

परंपरा के अनुसार सिख धार्मिक अधिकारी, फिर चाहे वो DSGMC के हों या फिर SGPC (शिरोमणी गुरद्वारा प्रबंध कमेटी) अमृतसर के, किसी गैर सिख सेलिब्रिटी का तो खूब स्वागत कर लेंगे लेकिन किसी ऐसे सिख का स्वागत कभी नहीं करेंगे जिसने अपनी दाढ़ी कटवा या बाल कटवा रखे हों.

बड़े उद्देशय के लिए विवाद की बात करना-

आलोचकों ने बिना समय गंवाए जीके पर हमला करना शुरू कर दिया. बादल के धुर विरोधी परमजीत सिंह सरना ने कहा- "दोसांज भले ही अच्छे कलाकार होंगे, लेकिन फिर भी सिखों के चुने हुए प्रतिनिधियों से स्वागत पाने के लिए अभी उन्हें लंबा सफर तय करना है. उन्होंने अपनी पहचान से समझौता किया है. और जीके ने सिखों के धार्मिक संस्था के कद से."

फिल्म समीक्षक और लेखक बॉबी सिंह ने अपने ब्लॉग में लिखा कि - धार्मिक अधिकारियों ने प्रसिद्ध कलाकार दलजीत दोसांज के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसने दाढ़ी ट्रिम करवाई हुई है. और उसे बिना किसी शर्म के आज के सिख आइकन के रूप में पेश भी किया. अगर अब आपको इस बात का अंदाजा नहीं होता कि आज के समय की धार्मिक नेतृत्व की असली पहचान क्या है तो पता नहीं कब होगा.

daljit dosanj, akali dal

एक राजनीतिक परिवार में जन्म लेने के बाद जीके ने समुदाय में अपनी पहचान बहुत ही कम उम्र में बना ली थी. इसलिए ये मानना बेवकूफी होगी कि वो क्या कर रहे हैं और इसके नतीजे के बारे में उन्होंने नहीं सोचा होगा. लेकिन फिर भी देशभर में अपनी पहचान बना चुके बॉलीवुड एक्टर, गायक और कलाकर के स्वागत में वो लगे रहे. दलजीत दोसांज साथ बैठे थे और खुद जीके ने फिल्म के प्रोड्यूसर और एक्टर से ज्यादा लंबे समय तक बोला.

याद रहे हाल ही में DSGMC अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला किया था. उन्होंने पिछले महीने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडू के भारत के समय प्रधानमंत्री के रवैये पर सवाल खड़ा किया. हालांकि अध्यक्ष के इस बयान को भाजपा और शिरोमणी अकाली दल के बीच की बढ़ती दूरी के रूप में नहीं देखना चाहिए. ये पार्टनरशिप राजनीतिक जमीन से कहीं ऊपर की है, लेकिन सवाल अकाली दल के खुद के अस्तित्व का है और उसका मुख्य वोटबैंक यानी की सिख समुदाय.

जब जीके ने दलजीत दोसांज की फिल्म के बारे में बात की तो ये उनका बिल्कुल सोचा-समझा फैसला था. अकाली नेता उड़ता पंजाब से विवाद को भुला चुके हैं. बल्कि इस मौके को उन्होंने लोगों को ये संदेश में इस्तेमाल किया कि वो सिख समुदाय के बारे में किसी मुगालते में न रहें. जस्टिन ट्रुडू की यात्रा के दौरान सिख समुदाय के बहुत नकारात्मक बातें बोली गई. नई दिल्ली से लेकर यूरोप और कनाडा तक.

सांप्रदायिक राजनीति का जवाब है इतिहास-

दिल्ली अकाली दल के प्रमुख ने अल्पसंख्यक विरोधी लोगों को सही जवाब दिया है. उन्होंने बताया कि कैसे हमारा इतिहास और हमारी संस्कृति अति राष्ट्रवादियों के लिए करारा जवाब है. राजनीतिक विश्लेषक जसपाल सिंह सिद्दु कहते हैं- "हमें बड़े स्तर पर देखना चाहिए. ये एक फिल्म या एक स्टार की बात नहीं है. मंजीत सिंह जीके ने प्रसिद्ध कलाकार के साथ बैठकर और सिखों के इतिहास के बारे में बात करके बिल्कुल सही कदम उठाया है. बाकी सारी चीजें गौण हैं. स्कॉटीश और ब्रिटिश एक दुसरे के सहयोगी थे. लेकिन स्कॉटिश लोगों ने कभी अपनी पहचान नहीं छोड़ी."

अभी के लिए, बादल के वफादार ने रास्ता दिखा दिया है. अगर गठबंधन मजबूरी है, तो पहचान का दावा अस्तित्व का एक साधन है. अकाली नेताओं को इस सच्चाई का भान हो गया है. और इसलिए भले ही वो बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए से बाहर न जाएं. लेकिन क्षेत्र में अपनी पहचान बचाकर रखने के लिए उन्होंने छोटे छोटे कदमों से शुरुआत कर दी है.

(DailyO से साभार)

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हरमीत शाह सिंह हरमीत शाह सिंह @harmeet.s.singh.74

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में एडिटर हैं

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