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Updated: 10 मार्च, 2018 04:39 PM
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बीजेपी कहीं 2014 के सबसे चर्चित स्लोगन को भी जुमला बताने की तैयारी तो नहीं कर रही है? इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में सोनिया गांधी ने कहा था कि 'अच्छे दिन...' 2019 में बीजेपी के लिए 'शाइनिंग इंडिया' साबित होगा. 2004 में एनडीए की ही वाजपेयी सरकार की 'शाइनिंग इंडिया' मुहिम बुरी तरह फ्लॉप रही और बीजेपी को सत्ता से बाहर होना पड़ा था.

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में ही जब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना रहा - 'अच्छे दिन वास्तव में कभी नहीं होते, यह मानने पर होते हैं, क्योंकि हर व्यक्ति अपने हालात से असंतुष्ट रहता है.'

और वो भी एक एक जुमला था!

'अच्छे दिन आने वाले हैं'. 2014 की चुनाव रैलियों में नरेंद्र मोदी और उन्हीं की तर्ज पर बीजेपी के दूसरे नेता बार बार जिक्र करते रहे. ज्यादातर रैलियों में तब नेता मंच से बोलते - 'अच्छे दिन...', फिर भीड़ से आवाज आती - 'आने वाले हैं'. 'अच्छे दिन...' के साथ ही मोदी खुद अपनी रैलियों में भ्रष्टाचार और काले धन का जिक्र करते और '15 लाख रुपये' लोगों के अकाउंट में आने की बात करते.

nitin gadkariऔर क्या क्या जुमले हैं?

बाद में जब 15 लाख की बात पर विपक्ष को घेरने लगा तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उसे जुमला करार दिया. सोनिया की बात पर नितिन गडकरी की टिप्पणी भी ऐसे ही कयासों की ओर इशारा कर रही है. ये भी मान कर चलना चाहिये कि गडकरी की बातों से पल्ला झाड़ने के लिए बीजेपी उनके निजी विचार कह सकती है और खुद गडकरी तोड़ मरोड़ कर पेश किये जाने की बात कर सकते हैं. हालांकि, तब तक गडकरी के बयानों को समझने की कोशिश तो की ही जा सकती है.

गडकरी का गंभीर होकर ये कहना कि 'अच्छे दिन वास्तव में कभी नहीं होते, संदेह जरूर पैदा करता है. क्या ये सोनिया गांधी के बयान के बाद बीजेपी की ओर से काउंटर स्ट्रैटेजी होने वाला है या फिर वास्तव में गडकरी की बातों को जस का तस समझ लिया जाना चाहिये. मान लेना चाहिये कि वास्तव में अच्छे दिन कुछ नहीं होते.

'अच्छे दिन...' एक और परिभाषा भी गडकरी ने बतायी. बोले, "अच्छे दिन का मतलब होता है रोटी, कपड़ा और मकान." गडकरी ने मोदी सरकार की कई योजनाओं का जिक्र करते हुए समझाने की कोशिश की कि सरकार ने जो भी कर दिया उसे ही अच्छे दिन मान कर चलना चाहिये.

सोनिया की बातों पर गडकरी की टिप्पणी

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में कनसल्टिंग एडिटर राजनीप सरदेसाई ने गडकरी के साथ बातचीत में उन मुद्दों पर सवाल पूछे जो सोनिया गांधी ने एक दिन पहले कही थी. 2019 में सरकार किसकी बनेगी इस सवाल के जवाब में सोनिया गांधी ने कहा था कि कांग्रेस तो बीजेपी को सरकार बनाने ही नहीं देगी. बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके गडकरी ने सोनिया की बातों के जवाब में कहा कि वो 'मुंगेरीलाल के हसीन सपने की कहानी होगी' और दावा किया कि 'हमारी सरकार' ही सत्ता में आएगी.

अपने दावे के सपोर्ट में गडकरी ने दलीलें भी दी, कहा - राजनीति में चुनाव ही लोकप्रियता नापने की मशीन है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी की लगातार जीत की ओर ध्यान दिलाते हुए गडकरी ने बोले, "हम जीत रहे हैं, हम नॉर्थ ईस्ट में पहुंच गये हैं... केरल और बंगाल में भी अच्छा परफॉर्म करेंगे..."

बीजेपी के बाकी नेताओं की तरह गडकरी ने भी दोहराया कि कांग्रेस जो 50 साल में नहीं कर सकी, हमने 4 साल में करके दिखाया है.

गडकरी ने ये भी माना, "सभी अपेक्षाएं 5 साल में पूरी हों ये संभव भी नहीं है... बीजेपी एक बार 2019 में फिर चुन कर आएगी." राहुल गांधी की ही तरह सोनिया गांधी ने आरोप लगाय था - "हमे बोलने नहीं दिया जाता."

बोलने की बात पर गडकरी ने उल्टे आरोप जड़ दिये, "जैसे स्पीकर आती हैं... ये लोग चिल्लाना शुरू कर देते हैं... हम विपक्ष के हर मुद्दे पर चर्चा को तैयार हैं..." गडकरी ने कहा कि हंगामे की ज्यादातर वजह मीडिया अटेंशन होती है.

सोनिया गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले हर मामले में बेहतर बताया था. गडकरी ने इस पर एक मराठी कहावत सुनायी और कहा - "ये पिता-पुत्र या मां-बेटे की पार्टी नहीं, ये लोकतांत्रिक पार्टी है."

तमाम प्रसंगों से होते हुए बात घूमते फिरते उस बहस पर पहुंची जिसमें चर्चा हो रही है कि बीजेपी की कम सीटें आने की स्थिति में मोदी नहीं बल्कि कोई और भी प्रधानमंत्री बन सकता है. इस मुद्दे पर हाल में राहुल गांधी के जिक्र के साथ एक रिपोर्ट भी आयी थी और एक वरिष्ठ पत्रकार के ट्वीट करने के बाद उस पर रिपोर्टर की तरफ से सफाई भी पेश की गयी थी.

राजदीप का गडकरी से एक और सवाल था - 'क्या महाराष्ट्र से कोई या वो खुद प्रधानमंत्री बनेंगे?'

nitin gadkari'मेरा कोई सपना नहीं...'

भावनाओं पर पूरी तरह काबू पाते हुए गडकरी ने जवाब दिया, "मैं सपने नहीं देखता... मेरी औकात और हैसियत से मुझे ज्यादा मिला है... मोदी ही देश के प्रधानमंत्री होंगे..."

वैसे प्रधानमंत्री पद के सवाल के मुकाबले गडकरी 'अच्छे दिन...' वाले सवाल पर ज्यादा सहज दिखे. सियासत में कहा कुछ और जाता है और उसके मायने और होते हैं. फिर तो उस दिन का भी इंतजार शुरू कर देना चाहिये जब किसी सवाल के जवाब में बीजेपी की ओर से कोई साफ तौर पर कह देगा - 'अच्छे दिन...' भी एक चुनावी जुमला ही था. ठीक वैसे ही जैसे सभी के खाते में काला धन के ₹15 लाख वाली बात. है कि नहीं?

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