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Updated: 02 अक्टूबर, 2021 12:31 AM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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राजनीति में एक स्थापित वाक्य है कि कोई भी बात यूं ही नहीं कही जाती है. आसान शब्दों में कहें, तो राजनीतिक बयानों के हर एक शब्द के गहरे निहितार्थ होते हैं. खैर, इस बात को फिर से याद दिलाया है कांग्रेस (Congress) के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने. दरअसल, 2018 में दिग्विजय सिंह ने सपत्नीक नर्मदा यात्रा (Narmada Yatra) निकाली थी. इस नर्मदा यात्रा पर लिखी गई एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह ने अपनी बातों से सबको चौंका दिया. आरएसएस (RSS) और भाजपा (BJP) नेताओं के धुर आलोचकों में से एक दिग्विजय सिंह ने इस कार्यक्रम के दौरान संघ और अमित शाह की जमकर तारीफ की. इतना ही नहीं उन्होंने नर्मदा यात्रा के दौरान अमित शाह और संघ की ओर से मिली मदद को राजनीतिक सामंजस्य का प्रमाण बता डाला. किताब विमोचन के इस कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह ने कहा कि वैचारिक तौर पर मैं आरएसएस का विरोध करता हूं. लेकिन, इसके बावजूद नर्मदा यात्रा के दौरान संघ के कार्यकर्ता मुझसे मिलने आते रहे. उन्होंने बताया कि गुजरात से नर्मदा यात्रा गुजरने के दौरान अमित शाह ने उनके ठहरने की व्यवस्था कराई और इस बात का ध्यान रखा कि इसमें कोई विघ्न न आए.

किताब के विमोचन कार्यक्रम इस तरह की स्मृतियों को साझा करना एक आम सी बात है. लेकिन, जैसा पहले ही बता दिया गया है कि हर शब्द के कई अलग-अलग मायने होते हैं. तो, इस बात में कोई दो राय नहीं रह जाती है कि दिग्विजय सिंह ने आरएसएस और अमित शाह (Digvijay Singh praise Amit Shah and RSS) की तारीफ यूं ही तो नहीं की है. आसान शब्दों में कहें, तो दिग्विजय सिंह ने वो कहा है, जो कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की 'नवीन प्रयोगों वाली राजनीति' को सीधे तौर पर चुनौती देने वाला कहा जा सकता है. वहीं, 2018 की नर्मदा यात्रा की बात उठाकर दिग्विजय सिंह कहीं मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ (Kamal Nath) को किसी तरह का संदेश तो नहीं दे रहे हैं. कहना गलत नहीं होगा कि दिग्विजय सिंह ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि दिग्विजय सिंह संघ (RSS) और अमित शाह (Amit Shah) की तारीफ कर राहुल गांधी को चुनौती दे रहे हैं या कमलनाथ को?

digvijay singh praise amit shah and rssदिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी को चुनौती दी है या कमलनाथ को?

क्या राहुल गांधी को चुनौती दे रहे हैं दिग्विजय

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कुछ महीने पहले ही स्पष्ट संदेश दे दिया था कि कांग्रेस को आरएसएस और भाजपा के हिमायतियों की जरूरत नहीं है. राहुल गांधी ने कहा था कि जो डरपोक हैं, वो आरएसएस के आदमी है, वो कांग्रेस छोड़कर चले जाएं. पार्टी को निडर लोगों की जरूरत है, डरपोकों की नहीं. दरअसल, बीते साल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के असंतुष्ट गुट जी-23 ने कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार के खिलाफ सीधे तौर पर मोर्चा खोल दिया था. जिसके बाद कोरोना महामारी की दुहाई देते हुए कांग्रेस पार्टी में संगठन के चुनावों को लंबे समय तक टाला जाता रहा. साथ ही असंतुष्ट नेताओं का इस समूह G-23 को कांग्रेस में हाशिये पर धकेल दिया गया. वहीं, लगातार दो बार सत्ता से बाहर होने की वजह से राहुल गांधी के करीबी कहे जाने वाले कांग्रेस के कई बड़े चेहरे पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. माना गया कि ऐसे ही नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए राहुल गांधी ने ये बयान दिया था.

कांग्रेस सांसद ने काफी हद तक ये भी साफ कर दिया था कि पार्टी में व्यक्ति से ज्यादा विचारधारा अहम है. वैसे, कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवाणी और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नेताओं को कांग्रेस का सिपेहसालार बनाकर राहुल गांधी ने काफी हद तक बता दिया है कि पार्टी की विचारधारा मोदीविरोध से शुरू होकर मोदीविरोध पर ही खत्म होती है. और, इस विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए राहुल गांधी किसी भी तरह का निर्णय लेने से पीछे नहीं हटेंगे. आसान शब्दों में कहें, तो धारा-370, हिंदुत्व, सीएए सरीखे मुद्दों पर कांग्रेस के विचारों को ही आगे बढ़ाने वाले लोगों को पार्टी में मान्यता मिलने की जगह बची हुई है. तो, दिग्विजय सिंह ने अमित शाह और आरएसएस की तारीफ कर एक तरह से सीधे राहुल गांधी को ही चुनौती दी है. कुछ समय पहले ही दिग्विजय सिंह की धारा 370 को लेकर क्लब हाउस चैट में दावा किया था कि कांग्रेस सत्ता में आई, तो जम्मू-कश्मीर में धारा 370 फिर से बहाल करने पर विचार किया जाएगा. जबकि, राहुल गांधी ने अपनी हाल की जम्मू-कश्मीर यात्रा पर वैष्णो देवी के दर्शन किए, एक प्रसिद्ध दरगाह भी गए. लेकिन, धारा 370 को लेकर उन्होंने चुप्पी साधे रखी.

हालांकि, राहुल गांधी ने अपने बयानों से ये साबित करने की कोशिश जरूर की कि वह कश्मीरियत को बहुत करीब से समझते हैं. क्योंकि, उनके अंदर भी अपने पूर्वजों का खून है. कुल मिलाकर राहुल गांधी ने धारा 370 जैसे विवादित मुद्दों पर एक तरह से नरम रुख अपनाया हुआ है. इन मुद्दों पर बात न कर वह इसे आगे के लिए टाल रहे हैं. वहीं, ऐसे मामलों पर दिग्विजय सिंह की गाहे-बगाहे राय सामने आ ही जाती है. जो कांग्रेस को कहीं न कहीं नुकसान ही पहुंचा रही है. लेकिन, आरएसएस और अमित शाह की तारीफ के सहारे उन्होंने राहुल गांधी को परोक्ष रूप से ये संदेश पहुंचा ही दिया है कि अगर मध्य प्रदेश में उन्हें अहमियत नहीं दी गई, तो वो भी ज्योतिरादित्य सिंधिया बन सकते हैं.

दरअसल, लंबे समय से मध्य प्रदेश में कमलनाथ की वजह से दिग्विजय सिंह राजनीतिक रूप से हाशिये पर डाल दिये गए हैं. लेकिन, वो खुद को स्थापित करने के लिए लगातार कोशिशें कर रहे हैं. हालांकि, दिग्विजय सिंह ने डैमेज कंट्रोल करने की नीयत से उसी दिन राजस्थान में आरएसएस पर कोरोना के दौरान पैसों के लेन-देन और अमित शाह पर नकली नोटों के आरोपों के जरिये जमकर निशाना साधा था. अब अमित शाह और आरएसएस की तारीफ के इस मामले पर राहुल गांधी की ओर से क्या एक्शन लिया जाएगा, ये देखने वाली बात होगी.

परोक्ष रूप से निशाना कमलनाथ पर भी है

किसी समय देश में घटने वाली हर छोटी से बड़ी घटना के पीछे आरएसएस का 'हाथ' बताने वाले नेता के तौर पर सुर्खियों में रहने वाले दिग्विजय सिंह के मुंह से संघ की तारीफ को हजम करना केवल कांग्रेस नेताओं के लिए ही नहीं, बल्कि राजनीति में रुचि रखने वाले एक आम से व्यक्ति के लिए भी किसी झटके से कम नहीं है. लेकिन, अब तारीफ मुंह से निकल चुकी है, तो वह वापस नहीं आ सकती है. खैर, 2018 में की गई नर्मदा यात्रा का जिक्र छेड़ दिग्विजय सिंह ने सीधे तौर पर कांग्रेस नेता कमलनाथ पर निशाना साधा है. दरअसल, दिग्विजय सिंह ने पत्नी अमृता सिंह के साथ पिछले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले 3300 किलोमीटर की पैदल नर्मदा यात्रा कर सूबे की 230 विधानसभा सीटों में से 110 सीटों का दौरा किया था. माना जाता है कि इस नर्मदा यात्रा की वजह से ही 2018 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में आई थी.

लेकिन, एमपी कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने इस यात्रा के बाद दिग्विजय सिंह को राजनीतिक रूप से हाशिये पर ला दिया था. गांधी परिवार से करीबी का फायदा उठाते हुए कमलनाथ ने ऐसा माहौल बना दिया था कि राहुल गांधी ने खुद दिग्विजय सिंह को ताकीद कर दी थी कि वो कांग्रेस के सभी बड़े कार्यक्रमों से दूरी ही बनाकर रखें. दरअसल, भाजपा ने सत्ता में आने के लिए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को 'मिस्टर बंटाधार' का टाइटल दे दिया था. जिसकी वजह से कांग्रेस की कुर्सी चली गई. कमलनाथ ने इसे ही आधार पर बनाकर दिग्विजय सिंह के खिलाफ जाल बुना और वो पूरी तरह से साइडलाइन कर दिये गए. जिस नर्मदा यात्रा की बदौलत कांग्रेस को चुनाव में फायदा हुआ, उसी के सूत्रधार को किनारे लगा दिया गया. कहना गलत नहीं होगा कि किताब विमोचन में नर्मदा यात्रा का जिक्र कर दिग्विजय सिंह ने अगले एमपी विधानसभा चुनाव से पहले अपने अहमियत जताने के साथ ही मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी ठोंक दी है.

दिग्विजय सिंह का ये दांव सीधे तौर पर कमलनाथ की राजनीति पर प्रश्नचिन्ह लगाता है. रही बात आरएसएस और अमित शाह की तारीफ की, तो इसे ऐसे समझा जा सकता है कि दिग्विजय सिंह ने जताने की कोशिश की है कि नर्मदा यात्रा के दौरान उन्हें हर वर्ग का साथ मिला था. आरएसएस और अमित शाह के नाम के सहारे उन्होंने ये साबित करने का प्रयास किया है कि उन्होंने नर्मदा यात्रा के तौर पर एक ऐसा दांव खेला था, जिसकी काट भाजपा और संघ के नेताओं के पास भी नहीं थी. वैसे, दिग्विजय सिंह के इस बयान का असर राहुल गांधी और कमलनाथ पर किस तरह से होगा, ये जल्द ही सामने आ जाएगा. लेकिन, बीते कुछ समय से मध्य प्रदेश में जमीनी राजनीति से लेकर प्रदर्शनों तक में दिग्विजय सिंह की सक्रियता ने कमलनाथ के लिए खतरे की घंटी तो बजा ही दी है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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