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Updated: 26 मार्च, 2015 10:13 AM
टीएस सुधीर
टीएस सुधीर
 
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बीजेपी ने दिल्ली चुनाव इतने बुरी तरह से क्यों हारा इसकी कोई एक वजह नहीं. इसके पीछे कई तरह की बातें हैं. मोदी लहर के बहाव में बीजेपी ने दिल्ली चुनाव की स्क्रिप्ट ही गलत लिख दी थी. दिल्ली चुनाव ने अमित शाह और नरेन्द्र मोदी को दिखा दिया कि हर बार वो सलीम-जावेद की तरह हिट फिल्म नहीं दे सकते.

दिल्ली चुनाव की स्क्रिप्ट में सारे डॉयलॉग ही गलत थे. अरविन्द केजरीवाल को भगोड़ा कहना जबकि वो अपनी इस गलती के लिए बार-बार दिल्ली की सड़कों पर जनता से माफी मांग रहे थे. प्रधानमंत्री मोदी का केजरीवाल को नक्सली और बदनसीब कहना, जो कि उनकी सबसे बड़ी भूल थी. इस तरह से किसी के लिए बोलना प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता.

मोदी उस बात को शायद भूल गए थे कि भारत के वोटर कभी-कभी वो करते हैं जिसकी किसी को उम्मीद ना हो. ये बिल्कुल ऐसा था जैसे लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने गुरूर के साथ मोदी को 'चायवाला' कहा था. गुजरात की जनता ने मोदी को जमकर वोट किया था जब मोदी को सोनिया गांधी ने 'मौत का सौदागर' कहा था. और याद किजिए 2009 का चुनाव जिस वक्त भाजपा के लौहपुरुष अड़वाणी ने मनमोहन सिंह को अब तक का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री कहा था.

मुझे यह भी लगता है कि बीजेपी प्रवक्ता सांबित पात्रा रोज रात को जब टीवी चैनलों पर गुरुर भरे बयान दे रहे थे, तब-तब वे पार्टी के 100 वोट कम हो रहे थे. पात्रा हमेशा दूसरे दलों के नेताओं को नीचा दिखाकर ये बताने की कोशिश करते रहे कि मोदी कितने ताकतवर हैं और उन्हे जनता ने कितना बड़ा बहुमत दिया था.

चुनाव से एक हफ्ते पहले, मैं एक दिन के लिए दिल्ली में था. मेरे ड्राइवर ने बताया कि उसने मीनाक्षी लेखी को वोट दिया था. लेकिन इस बार वो 'आप' को वोट देगा. उसने वजह बताई कि जीतने के बाद मीनाक्षी ने अपने वोटरों की सुध नहीं ली. ना ही उनकी समस्याओं का कोई हल निकला. चुनाव से पहले वोट मांगने आती रहीं पर सांसद बनने के बाद कभी नहीं.

इसके उलट केजरीवाल ने इंसानियत दिखाई. माफी मांगी अपने भाषणों में आम आदमी से जुड़े मुद्दों से लेकर लोकपाल जैसे बड़े मुद्दों पर बात की. दिल्ली के वोटरों को बेइज्जती महसूस हुई जब भाजपाईयों ने केजरीवाल को फरेबी कह कर वोट देने से जनता को मना किया. दिल्ली ने उस आदमी को अपना मुख्यमंत्री चुना जो उनकी भाषा बोलता है.    चुनाव में जैसे मोदी ने चायवाला होने का फायदा लेकर चाय पर चर्चा का आयोजन पूरे देश में किया था. वैसे ही अरविंद केजरीवाल ने मफलर का इस्तेमाल कर खुद को जमीनी साबित किया. और आम आदमी पार्टी कार्यकर्ताओं ने चुनाव में 'मफलरमैन' कहकर ही केजरीवाल के लिए वोट मांगे.

सही कहें तो जब मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर अपना नाम लिखा लाखों का सूट पहन रहे थे, तब भी केजरीवाल आम आदमी की तरह एक मफलर के सहारे ही दिल्ली की सर्दी से लड़ रहे थे. ये मफलर ही था जिसकी वजह से उनके कान सियासी सर्दी से बचे रहे लेकिन उन्होने बीजेपी और कांग्रेस को सर्दी में ही छोड़ दिया.

लेखक

टीएस सुधीर टीएस सुधीर

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में एडिटर (साउथ इंडिया) हैं.

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