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Updated: 28 दिसम्बर, 2017 05:18 PM
आशुतोष मिश्रा
आशुतोष मिश्रा
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दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने राजधानी के आम नागरिकों को उनके घर पर सेवाएं मुहैया कराने के केजरीवाल सरकार की योजना को निरस्त करते हुए प्रस्ताव को सरकार के पास पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया है. इस योजना में सरकार का प्रस्ताव था कि दिल्ली के तमाम नागरिकों को जन्म प्रमाणपत्र से लेकर शादी के रजिस्ट्रेशन, स्कूल कॉलेज के दस्तावेज समेत नागरिकों को 40 महत्वपूर्ण सेवाएं होम डिलीवरी की जा सकती थी.

इस बात का जिक्र करना बेमानी है कि यह पहली बार नहीं है जब उपराज्यपाल ने चुनी हुई सरकार के फैसलों और योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया हो. लेकिन यह जरूर हुआ है कि हालिया दिनों में उप-राज्यपाल द्वारा चुनी हुई सरकार के फैसलों के खिलाफ उठाए गए कदमों की कड़ी आलोचना हो रही है. अनिल बैजल द्वारा लिया गया यह फैसला भी उसी आलोचना के दौर से गुजर रहा है.

Anil Baijal, Arvind Kejriwalउपराज्यपाल और दिल्ली सरकार एक दूसरे के सामने खड़ी हो गई है

उपमुख्यमंत्री ने एक लंबी-चौड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस मामले पर उपराज्यपाल को पॉइंट टू पॉइंट जवाब दे दिया. लेकिन यह समझना जरूरी है कि जिन दलीलों के आधार पर उपराज्यपाल ने सेवाओं की होम डिलीवरी का फैसला पलटा है, उन दलीलों में आखिर दम कितना है.

एक नजर डालते हैं उप-राज्यपाल निवास द्वारा केजरीवाल सरकार के फैसले को पलटने के पीछे दिए गए दलीलों पर. योजना पर आपत्ति जताते हुए उपराज्यपाल ने लिखा है कि- 'डिजिटल के दौर में घर पर सेवाएं पहुंचाने की जरूरत नहीं है. क्योंकि ज्यादातर सेवाएं पहले से ही ऑनलाइन सेवा के तहत मौजूद हैं. इसलिए सरकार को डिजिटल सेवाओं के बीच की खाई को पाटकर ज्यादा ध्यान डिजिटल पर देना चाहिए.' यह कुछ वही बात हो गई कि आपने कॉल सेंटर पर फोन करके पिज़्ज़ा ऑर्डर किया लेकिन कंपनी का सीईओ आपको कहेगा कि फोन करके नहीं ऑनलाइन बुकिंग कीजिए. और अगर पिज़्ज़ा पहुंचाने वाली कंपनी कह दे कि वह होम डिलीवरी नहीं देगी तो फिर बिजनेस भगवान भरोसे ही है.

क्या बैजल साहब के पास इस बात का जवाब है कि दिल्ली में रहने वाले हर शख्स के पास ऑनलाइन सेवाओं तक पहुंच या उसके बारे में जानकारी है? क्या हर शख्स डिजिटल आवेदन कर पाने में सक्षम है?

उपराज्यपाल का कहना है कि इन सेवाओं को होम डिलीवरी के जरिए पहुंचाने के बजाए सेवा केंद्र बना दिया जाएं. क्या यह बताने की जरूरत है कि ऐसे सरकारी और सरकार के लिए काम करने वाले गैर सरकारी केंद्र भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुके हैं?

मजेदार बात यह है कि होम डिलीवरी योजना को उपराज्यपाल लोगों के लिए खतरा बता रहे हैं. क्या हमारे घरों पर गैस सिलेंडर की होम डिलीवरी नहीं होती? क्या इंश्योरेंस कंपनी के लोग आपके घर आकर दस्तावेज लेकर नहीं जाते? क्या बैंकों के कर्मचारी आपको ऐसी सुविधाएं मुहैया नहीं करवाते? अगर ऐसी सेवाएं निजी क्षेत्र में मिल रही हैं और उनसे अब तक कोई खतरा नहीं हुआ तो सरकारी सेवाओं की होम डिलीवरी में खतरा कैसे हो सकता है?

उपराज्यपाल अनिल बैजल की चिंता है कि सेवाओं की होम डिलीवरी से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा और आवेदकों के कागजात गुम भी हो सकते हैं. योजना के तहत राजधानी के आवेदक कॉल सेंटर पर कॉल करके घर बुलाए जाने वाले मोबाइल सहायक को न सिर्फ अपने तमाम संबंधित दस्तावेजों की जानकारी घर पर ही डिजिटल तरीके से देनी होगी, बल्कि आवेदक को अपना फिजिकल वेरिफिकेशन कराना भी जरूरी होगा. उपराज्यपाल चाहते तो मोबाइल सहायक की भूमिका को थोड़ा और मजबूत और पारदर्शी बनाने का सुझाव दे सकते थे. मोबाइल सहायक कॉल सेंटर पर फोन आने के बाद आवेदक के घर जाएगा और संबंधित दस्तावेजों की पुष्टि कर उसे संबंधित विभाग में जमा करवाएगा. जाहिर है इस प्रक्रिया में आवेदक का फिजिकल वेरिफिकेशन भी हो जाता जो अपने आप में पारदर्शी लगता है.

Anil Baijal, Arvind KejriwalLG साहब इतना भी विरोध अच्छा नहीं है

उपराज्यपाल ने चिंता जताई है कि इस योजना के तहत आवेदकों के दस्तावेज गुम हो सकते हैं. मोबाइल सहायक अगर आवेदनों से जुड़े तमाम दस्तावेज को डिजिटल तरीके से आपके घर से ले जाता है और संबंधित कागजात ऑनलाइन प्रक्रिया के तहत डिजिटल भूमिका में बनते हों तो कागजों के गुम होने की गुंजाइश आखिर कहां रह जाती है? उपराज्यपाल की सबसे दिलचस्प दलील ये है की मोबाइल सहायकों की आपके घर आने जाने से न सिर्फ सड़क पर ट्रैफिक पड़ेगा बल्कि प्रदूषण भी बढ़ेगा. राजधानी की सड़कों पर लाखों गाड़ियां दौड़ती हैं, ऐसे में कुछ स्कूटर या कुछ और गाड़ियों के बढ़ जाने से क्या प्रदूषण का कोहराम मच जाएगा? सेवा केंद्रों और सरकारी दफ्तरों में अपने कागज लेने के लिए चक्कर काटने के लिए उतरी गाड़ियां क्या सड़क पर ट्रैफिक और प्रदूषण नहीं फैलाती?

उपराज्यपाल का यह कहना कि इस योजना से आम आदमी पर आर्थिक बोझ पड़ेगा. इस दलील को अगर मान भी लें तो क्या यह बताना जरुरी नहीं है कि ऐसी सेवाएं हर किसी के लिए आवश्यक नहीं है? यानी जो घर बैठे पैसा से लेकर कपड़े होम डिलीवरी में मंगवाता है और उसके लिए अतिरिक्त चार्ज देता है, वही तबका इन सेवाओं की सुविधा ले सकता है और उसके लिए अतिरिक्त कीमत भी चुका आएगा. सरकारी सेवाएं आखिर कब तक सरकारी तरीके से ही दी जाती रहेंगी? क्या सरकारी व्यवस्था को भी बाज़ार के अनुकूल खुद को ढालने की जरूरत नहीं है?

अगर पिज़्ज़ा आपके घर आ सकता है तो आपके बर्थ सर्टिफिकेट की होम डिलीवरी क्यों नहीं हो सकती? डिजिटल और ऑनलाइन की पहुंच को हर आदमी तक पहुंचाने के लिए सरकार को जहां ठोस कदम उठाने चाहिए, वहीं सरकारी सेवाओं की होम डिलीवरी जैसी योजनाओं को एक मौका जरूर दिया जाना चाहिए. लोकतंत्र में हमेशा नेता आपके दरवाजे तक आते हैं क्या वक्त नहीं है कि अब सरकार आपके दरवाजे तक आए? पासपोर्ट जैसी सेवाओं के लिए पहले ऑनलाइन और फिर पासपोर्ट सेवा केंद्रों में लंबी लाइनें और इंतजार को, क्या इसी तरह की योजनाओं से बदला नहीं जा सकता? सरकारी योजनाओं को आम आदमी तक पहुंचाना हर सरकार की जिम्मेदारी है.

दिल्ली के आधे मालिक समझे जाने वाले उपराज्यपाल साहब को ये समझने की जरूरत है कि वक्त के साथ सोच में भी आधुनिकता को लाना पड़ता है. सरकार में किसी भी तरह कि अनैतिकता से लड़ने के लिए भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां मौजूद हैं. ऐसे में नए नुस्खों को आजमाने से भला क्या परहेज?

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लेखक

आशुतोष मिश्रा आशुतोष मिश्रा @ashutosh.mishra.9809

लेखक आजतक में संवाददाता हैं

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