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Updated: 22 अगस्त, 2022 12:15 AM
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कह रहे हैं हम कट्टर ईमानदार है. कट्टरता कब से राजनीतिक विशेषण हो गया? कट्टर धार्मिक है तो ख़राब है, कट्टर नेता है तो ख़राब है. सो कट्टर ईमानदार भी ख़राब ही हुआ ना. इसीलिए तो जनता को शराब पिलाने की नीति बना रहे है. नेता सभी अजीब होते हैं लेकिन तमाम अजीब में जो अजीबोगरीब होते हैं वे "आप" नेता हैं. फ्री शिक्षा, फ्री इलाज, फ्री बिजली और फ्री ही आवागमन. फ्री सब कुछ फ्री में नहीं होता, कॉस्ट करता है.

कहां से निकलेगी? सो शराब नीति ऐसी बना दी कि जनता ने जो पैसे बचाएं फ्रीबी पाकर, वे तो खर्च करे ही बल्कि भारी डिस्काउंट के लालच में इतनी पिए कि तमाम डिस्काउंट की कॉस्ट के साथ साथ खुद के घर भी भरवा लें शराब लॉबी से. मुंह से निकल जाता है दवा दारु. निकल भी गया था सीएम केजरीवाल जी के मुख से कि हमने जनता के लिए दवा दारु का इंतजाम कर दिया है, लेकिन कितनी अजीब बात है कि एजुकेशन भी शराब से जुड़ जा रहा है. और ये सब कुछ हो रहा है ऊपर के दवाब से, हिला जो दिया है दिल्ली की आप सरकार के हेल्थ, शिक्षा , बिजली मॉडल ने, ऐसा आम आदमी पार्टी कहती है.

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हेल्थ मॉडल के जनक हेल्थ मिनिस्टर को जेल में डाल दिया और अब न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा प्रशंसा पाए हुए एजुकेशन मॉडल के एजुकेशन मिनिस्टर को ही जेल में डालने की पूरी तैयारी कर ली गई है. यही तो वैकल्पिक राजनीति है आप की; परंपरागत राजनीतिक पार्टियों खासकर सत्तासीन बीजेपी के वश की नहीं हैं. तमाम मॉडल्स मसलन एजुकेशन, हेल्थ और बिजली को फाइनेंस करने के लिए शराब नीति के रूप में एक शानदार रिमोट पॉलिसी लागू कर दी. दरअसल राजनीति है ही जबरदस्त घालमेल. आम आदमी पार्टी की शुरुआत ही हुई थी इस भावना के साथ कि राजनीति के कीचड़ को साफ़ करने के लिए कीचड़ में उतरना ही पड़ेगा.

लेकिन ये तो दलदल था सो "अभिनव" दल भी इस दलदल में धंस गया. अब सब धान बाईस पसेरी वाली बात है. "आप" भी मोरल हाई ग्राउंड तो नहीं ले सकती लेकिन आम आदमी को लुभाना उसे भी खूब आ गया है. एक प्लस पॉइंट और भी है उसके पास और वह है विक्टिम कार्ड खेलकर आम आदमी की सहानुभूति बटोरना. सभी 'आप' नेता बखूबी ऐसा कर भी रहे हैं, सफल होते भी दिख रहे हैं. मायने सिर्फ यही रख रहा है कि कौन कितनी खूबी से खुद को बचाते हुए दूसरों पर पत्थर फेंक पा रहा है और उसे घायल भी कर पा रहा है. बाकी तो राजनीति के हमाम में सभी नंगे हैं.

जरूर दिल्ली की शराब नीति में भ्रष्टाचार हुआ है लेकिन दूध की धोई शराबबंदी की नीति बिहार और गुजरात की भी नहीं हैं. दरअसल ऐसी नीतियां बनती ही करप्शन के लिए है. एक प्रकार से कहा जा सकता है कि दिल्ली सरकार ने राजस्व तो कमाया थोड़ा बहुत करप्शन हुआ तो हुआ. बिहार और गुजरात में तो राजस्व ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया. निश्चित ही दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर कार्यवाही योग्य मामला बनता है और इस लिहाज से सीबीआई की कार्यवाही अपेक्षित है. लेकिन जिस पैटर्न पर तमाम जाँच एजेंसियां कार्यवाही कर रही हैं, वे मजाक का पात्र ही बन रही हैं.

तभी तो सिसोदिया जी दम भर रहे हैं , ''अगले 2 से 3 दिन में सीबीआई मुझे गिरफ्तार कर लेगी और मेरे अलावा कई सारे आम आदमी के नेताओं को भी गिरफ्तार करेगी. हम भगत सिंह की संतान हैं. हम आपकी सीबीआई, ईडी से डरने वाले नहीं है, हम आपके पैसों के आगे बिकने वाले लोग नहीं है, आप हमको नहीं तोड़ पाएंगे.'' हुई ना 'उलटा चोर कोतवाल को डांटे' वाली बात. दरअसल जांच एजेंसियों की कार्यवाहियों को सत्ताधारी पार्टी का अभियान समझा जाने लगा है क्योंकि सिर्फ सुर्खियां बनती है, किसी को दोषी साबित कर ही नहीं पाती ये कार्यवाहियां. सत्तासीन बीजेपी की बात करें तो फिलहाल माइलेज है क्योंकि विपक्ष को बांट जो दिया है.

विपक्ष में 'मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा' फिलहाल दूर की कौड़ी ही नजर आती है. तमाम पार्टियां आत्मनिरीक्षण तो कर नहीं रही बल्कि ऑन ए लाइटर नोट बीजेपी के नितिन गडकरी में संभावनाएं तलाश रही हैं . पब्लिक के पॉइंट ऑफ़ व्यू से बात करें तो स्थिर सरकार उनकी प्राथमिकता है जिस पर फिलहाल बीजेपी ही खरी उतरती है.

#नीतीश कुमार, #अरविंद केजरीवाल, #दिल्ली सरकार, Arvind Kejriwal, Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal, Prime Minister Of India

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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