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Updated: 04 जून, 2020 01:19 PM
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मनोज तिवारी (Manoj Tiwari) को बीजेपी ने दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया है - और उनकी जगह आदेश गुप्ता (Adesh Gupta) को कमान सौंपी गयी है. दोनों के बीच का मौजूदा गैप ऐसे समझा जा सकता है कि मनोज तिवारी भोजपुरी फिल्मों के गीत और एक्टिंग के स्टार होने के साथ साथ दूसरी बार लोक सभा सांसद बने हैं, जबकि आदेश गुप्ता फिलहाल दिल्ली में वार्ड पार्षद है, लेकिन नॉर्थ एमसीडी के मेयर रह चुके हैं.

एक तरफ मनोज तिवारी और दूसरी तरफ आदेश गुप्ता जिन्हें कोई नहीं जानता, बीजेपी ने इस सवाल का जवाब पहले से ही तैयार कर रखा था कि वो जमीनी राजनीति करने वाले नेता है. वैसे जिस बीजेपी दफ्तर के वो चीफ बने हैं कभी उसी दफ्तर के मंत्री हुआ करते थे और कार्यालय का कामकाज देखते रहे. जमीनी राजनीति ने आदेश गुप्ता को अब उसी दफ्तर की सबसे बड़ी कुर्सी पर बिठा दिया है.

2014 में लोक सभा और फिर तीन विधानसभाओं के चुनाव जीतने के बाद ये दिल्ली ही रही, जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की चुनावी मशीन को ब्रेक लगाने के लिए मजबूर कर दिया था - और तब तो दिल्ली के बाद बिहार में भी हार झेलनी पड़ी थी. बिहार के राजनीतिक भविष्य का इंतजाम तो बीजेपी ने नीतीश कुमार को एनडीए में लाकर कर भी लिया, लेकिन दिल्ली तो दोबारा हार गयी - ऐसा 2014 के बाद मोदी-शाह के लिए पहला कड़वा अनुभव रहा है.

ये कहना तो फिलहाल जल्दबाजी होगी कि आदेश गुप्ता को अभी से दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनवाने का वो टास्क दे दिया गया है जो उनके पूर्ववर्ती मनोज तिवारी नहीं कर पाये, इतना जरूर माना जा सकता है कि आदेश गुप्ता के सामने पहली चुनौती एमसीडी चुनाव में बीजेपी की जीत बरकरार रखने की जरूर होगी - और 2022 में होने वाले MCD चुनावों के नतीजे ही आदेश गुप्ता के आगे का भविष्य भी तय करेंगे, ये तो तय मान कर चलना चाहिये.

बीजेपी के काम तो नहीं आये मनोज तिवारी

मनोज तिवारी को तो पूर्वांचली चेहरा होने और मोदी लहर दोनों का डबल फायदा हुआ, लेकिन बदले में बीजेपी को वो कुछ भी नहीं दिला पाये. 2017 में दिल्ली एमसीडी में बीजेपी ने अपनी जीत का सिलसिला उनके कार्यकाल में बरकरार जरूर रखा, लेकिन उनका रोल नाम मात्र ही रहा - क्योंकि पूरी कमान तब अमित शाह खुद अपने हाथ में ले रखे थे. दिल्ली देश का ऐसा पहला राज्य रहा जहां शिद्दत से लगी रहने के बावजूद बीजेपी को केंद्र की सत्ता में होने के बावजूद लगातार दूसरी हार का मुंह देखना पड़ा. वो भी तब जब बीजेपी असम से लेकर त्रिपुरा तक लाल झंडा हटाकर भगवा फहरा चुकी है.

adesh gupta, manoj tiwariदिल्ली बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी तो मिल गयी, लेकिन मनोज तिवारी से बड़ी चुनौतियां है आदेश गुप्ता के सामने

दरअसल, मनोज तिवारी को अरविंद केजरीवाल से मुकाबले के लिए दिल्ली की कमान सौंपी गयी थी, लेकिन पूरे वक्त मनोज तिवारी के साथ स्थानीय नेताओं का वैसा ही व्यवहार रहा जैसी उनकी टिप्पणी 2015 में किरण बेदी को दिल्ली में बीजेपी का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने पर थी - हमें नेता की जरूरत है दारोगा की नहीं. मनोज तिवारी के विरोधियों का भी तकरीबन वैसा ही रिएक्शन उनके कामकाज के तौर तरीके को लेकर रहा - नाच-गाकर और ऑर्केस्ट्रा से राजनीति भले हो जाये लेकिन चुनाव नहीं जीते जा सकते. दिल्ली विधानसभा की तैयारियां शुरू होने से काफी पहले मीडिया से बातचीत में मनोज तिवारी का विरोधी गुट ऐसे की कमेंट किया करता था. वैसे मनोज तिवारी के आत्मविश्वास में कभी कोई कमी देखने को नहीं मिली - यहां तक कि एग्जिट पोल में भी अरविंद केजरीवाल की जीत के साफ संकेत मिलने के बावजूद.

गुटबाजी पर काबू पाना तो मनोज तिवारी के वश की बात थी नहीं, कामकाज पर उठते सवालों को लेकर वो पूरी दिल्ली की यात्रा जरूर किये, हालांकि, सबसे ज्यादा नाराजगी तब देखी गयी जब मनोज तिवारी ने हरियाणवी सिंगर और डांसर सपना चौधरी को कांग्रेस के कब्जे से झटक कर बीजेपी ज्वाइन कराया. बीजेपी ज्वाइन करने से पहले सपना चौधरी की कांग्रेस नेताओं के साथ फोटो भी शेयर किये जा चुके थे, लेकिन मनोज तिवारी ने अपने कला प्रभाव का इस्तेमाल कर सपना को बीजेपी में ला दिया. सपना चौधरी ने मनोज तिवारी के लिए वोट जरूर मांगे लेकिन बीजेपी ने चुनाव प्रचार में उनका इस्तेमाल न हरियाणा में किया और न ही दिल्ली में ही.

अंदरूनी खबरें तो यही बताती रही कि दिल्ली में बीजेपी के लिए काम कर रहे संघ के नेताओं को मनोज तिवारी कभी भी पसंद नहीं आये - और दिल्ली चुनाव में हार के बाद तो ऑर्गेनाइजर में प्रफुल्ल केतकर के लेख में निशाने पर पूरी तरह मनोज तिवारी ही रहे. लेख में दिल्ली बीजेपी को सलाह दी गयी थी कि वो हमेशा चुनाव जीतने के लिए मोदी-शाह के भरोसे नहीं रह सकती. दिल्ली में बीजेपी को स्थानीय नेतृत्व खड़ा करना ही होगा - आदेश गुप्ता के सामने तात्कालिक चुनौती भी यही होगी.

अरविंद केजरीवाल के प्रति तो मनोज तिवारी शुरू से ही आक्रामक रहे, दिल्ली विधानसभा चुनाव में वो कभी भाषणबाजी की उस प्रतियोगिता का हिस्सा नहीं बने जिससे चुनाव आयोग को प्रचार से हटाने की नौबत आये. बल्कि, मनोज तिवारी ने तो अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा जैसे नेताओं के खिलाफ एक्शन तक की मांग परोक्ष तौर पर कर डाली थी, मनोज तिवारी के साथ साथ गौतम गंभीर भी आलाकमान की नजरें तीखी देख मन मसोस कर खामोश हो गये थे.

ये भी तो हो सकता है कि मनोज तिवारी कदम कदम पर उपेक्षित महसूस करते रहे हों. दिल्ली चुनाव के शुरुआती दौर में ही अमित शाह ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बहस की चुनौती दे डाली थी, लेकिन मनोज तिवारी से नहीं, बल्कि, दिल्ली बीजेपी के एक अन्य सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह के बेटे प्रवेश वर्मा को. यही वजह भी रही कि पूरे चुनाव में प्रवेश वर्मा कुछ और बीजेपी नेताओं के साथ जहरीली बयानबाजी करते रहे - लेकिन एक बात खास जरूर है कि ऐसे तमाम तिकड़म आजमाने के बावजूद प्रवेश वर्मा दिल्ली बीजेपी की कुर्सी के दावेदार होने के बावजूद पिछड़ क्यों गये?

क्या प्रवेश वर्मा के दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी की रेस में पिछड़ जाने की वजह अमित शाह का ये मान लेना है कि भड़कीले बयान को विपक्ष ने मुद्दा बनाया और दिल्ली चुनाव में बीजेपी की हार का एक बड़ा कारण वो रहा. अमित शाह ने चुनाव नतीजे आने के बाद एक इंटरव्यू में ये बात कही थी.

या फिर इसलिए क्योंकि दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष की नियुक्ति जेपी नड्डा को करनी थी और जब रेस हुई तो आदेश गुप्ता ने आसानी से जीत हासिल कर ली.

आदेश गुप्ता कैसे बने दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष

बीजेपी की तरफ से तो आदेश गुप्ता की सबसे बड़ी खासियत जमीन से जुड़ा नेता होना ही बताया जा रहा है - और ये भी माना जा रहा है कि कारोबारी तबके को बीजेपी से जोड़ने का मकसद भी है. अब तक कारोबारी तबका भी बीजेपी को छोड़ कारोबारी तबका अरविंद केजरीवाल से जुड़ा हुआ है क्योंकि वो खुद को भी वैश्य समाज से होने के नाते जोड़ कर रखने की कोशिश करते ही हैं. ये बात अलग है कि 2015 में ऐन चुनावों के वक्त ही बीजेपी ने केजरीवाल के गोत्र पर सवाल उठाकर कारोबारी तबके की नाराजगी मोल ली थी.

बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन बीजेपी ने एक रिस्क लेने की हिम्मत तो नहीं ही दिखा सकी - गैर पूर्वांचली चेहरे को दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाने की. आदेश गुप्ता उत्तर प्रदेश के कन्नौज से आते हैं और कानपुर में उनकी पढ़ाई लिखाई हुई है. वो दिल्ली में कामकाज के सिलसिले में आये थे और शुरू में ट्यूशन पढ़ा कर गुजारा किये.

सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर आदेश गुप्ता में ऐसी कौन सी खासियत रही जो वो प्रवेश वर्मा, रमेश विधूड़ी, सतीश उपाध्याय, विजेंद्र गुप्ता, आशीष सूद, पवन वर्मा. ओम प्रकाश शर्मा, दुष्यंत गौतम और गौतम गंभीर जैसे नेताओं के रहते बाजी मार ले गये. गौतम गंभीर का चेहरा तो मनोज तिवारी के ही टक्कर का भी था.

सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें जेपी नड्डा पीछे हाथ कर और आदेश गुप्ता कंधे पर झोला लटकाये उनकी बगल में खड़े हैं. वो तस्वीर आदेश गुप्ता के अखिल विद्यार्थी परिषद में रहने के दौरान की बतायी जाती है - और तभी का उनका जेपी नड्डा के साथ कनेक्शन भी जोड़ा जा रहा है. माना भी जा रहा है कि आदेश गुप्ता ने इसी कनेक्शन के चलते बीजेपी के बाकी नेताओं को रेस में पीछे छोड़ दिया. वैसे आदेश गुप्ता ने शुरुआती ट्वीट में ही अपनी सेवा भावना का इजहार किया है - आगे आगे देखते जाइये.

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