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Updated: 24 जनवरी, 2020 08:16 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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दिल्ली में चुनाव हैं (Delhi Assembly Elelctions) तो आम आदमी पार्टी (AAP), भाजपा (BJP) और कांग्रेस (Congress) के बीच सियासी घमासान मचना स्वाभाविक है. तीनों ही दल एक दूसरे के साथ आरोप प्रत्यारोप की राजनीति कर, ये दावे पेश कर रहे हैं कि सरकार उनकी बनेगी. बात लीडरशिप की हो तो आम आदमी पार्टी ये चुनाव जहां अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के चेहरे को प्रोटेक्ट करते हुए लड़ रही है. तो कांग्रेस की कमान मदन चोपड़ा के हाथों में है. दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रति भाजपा भी खासी गंभीर है. प्रवेश वर्मा (Pravesh Verma) से लेकर विजय गोयल (Vijay Goel) और मनोज तिवारी (Manoj Tiwari) को ये जिम्मेदारी दी गई है कि वो दिल्ली में कमल खिलाएं. जैसे हालात हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) दिल्ली में राष्ट्रवाद (Nationalism) को एक बड़े मुद्दे की तरह पेश कर रहा है और भाजपा की मदद के लिए सामने आ गया है. बताया जा रहा है कि संघ कार्यकर्ता दिल्ली में घर-घर जाकर लोगों को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाएंगे. इतना ही नहीं संघ ने बीजेपी की राजनीतिक जमीन को उर्वर करने के लिए 400 बैठकें करने का प्लान बनाया है. संग ने 20-20 कार्यकर्ताओं की टोली बनाकर कैम्पेन करने की रणनीति बनाई है. बता दें कि केजरीवाल के बिजली-पानी फ्री मुद्दे का सामना करने के लिए भाजपा ने भी कमर कास ली है. केजरीवाल की लुभावनी स्कीमों से लड़ने के लिए बीजेपी ने राष्ट्रवाद के एजेंडे को अपना हथियार बनाया है और जंग के लिए सामने आ गई है. बीजेपी इसके लिए आरएसएस की मदद ले रही है जिसकी तैयारियां पूरी हैं.

 Delhi Election, BJP, RSS, AAP  दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की मदद के लिए आरएसएस का सामने आना चुनाव को और भी दिलचस्प बनाता नजर आ रहा है

इतनी बातों के बाद एक बड़ा सवाल ये है कि क्या दिल्ली के लोगों में राष्ट्रवाद की अलख जलाकर भाजपा अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएगी ? क्या बीजेपी में सीएम उम्‍मीदवार की कमी राष्‍ट्रवाद से पूरी हो पाएगी? ये सवाल इसलिए भी जरूरी हैं क्योंकि दिल्ली बीजेपी का जैसा इतिहास रहा है उसे वर्तमान में भी दोहराया जा रहा है. एक बड़ा गतिरोध है जो हमें गोयल तिवारी और वर्मा के बीच दिखता है. ऐसा शायद इसलिए भी है क्योंकि तीनों ने ही दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के सपने अपनी आंखों में संजोये हैं. आइये कुछ बिन्दुओं से समझे कि कैसे दिल्ली में राष्ट्रवाद के अलावा भी बहुत सी चीजें हैं जो इस पूरे चुनाव को प्रभावित कर सकती हैं इसलिए दिल्ली में भाजपा को ठहरकर और पूरा सोच विचार करते हुए अपनी प्लानिंग को अमली जामा पहनाना चाहिए.

दिल्ली में सिर्फ केजरीवाल, बीजेपी में तीन का बवाल

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि दिल्ली में आम आदमी की ताकत और कमजोरी केजरीवाल हैं. यानी अगर चुनाव बाद दिल्ली में आम आदमी पार्टी को फायदा या नुकसान जो कुछ भी होता है वो वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खाते में आएगा. ध्यान रहे कि जैसे भाजपा अपने चुनावों में पीएम मोदी के चेहरे को प्रोजेक्ट करती है. वैसे ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी केजरीवाल के चेहरे को प्रोजेक्ट कर रही है.

दिल्ली में आम आदमी की तरफ से केजरीवाल उस तुरुप के इक्के की तरह देखे जा रहे हैं जिसमें हाथ से निकलती बाजी को जीत लेने की सामर्थ्य है. लोकप्रियता या ये कहें कि इस तरह प्रोजेक्ट किये जाने को हम केजरीवाल के सकारात्मक पहलुओं में देख सकते हैं मगर इसकी बुराई भी है. चूंकि मुसलमान से लेकर बनियों तक और बिजली से लेकर फ्री पानी और वाई फाई तक हर चीज के लिए केजरीवाल की जवाबदेही है तो अगर कल दिल्ली में आप मन मुताबिक परिणाम नहीं देखती है तो इसकी भी वजह केजरीवाल होंगे.

इतनी बातों के बाद अगर हम कांग्रेस का रुख करें तो भले ही दिल्ली में कांग्रेस तमाम तरह के वादे कर रही हो मगर जब बात आधार की आती है तो कोई बड़ा चेहरा न होने की वजह से दिल्ली में कांग्रेस का कोई वजूद हालिया वक़्त में नजर आता हमें नहीं दिखाई देता है. वहीं भाजपा में ऐसा नहीं हैं. यहां विजय गोयल, मनोज तिवारी और प्रवेश वर्मा हैं. दिल्ली में पूर्वांचल के वोटर को साधने की जिम्मेदारी मनोज तिवारी की है इसी तरह बनिया या ये कहें कि व्यापारी वर्ग को रिझाने के लिए गोयल और जाटों को पार्टी की तरफ आकर्षित करने के लिए देश में बड़े जाट नेताओं में शुमार साहब सिंह वर्मा के पुत्र प्रवेश वर्मा को लाया गया है.

ऐसे में अगर कल दिल्ली में बाजी पलटती है और उससे फायदा भाजपा को मिला है तो वही परिणाम होंगे जो हम 1993 से 1998 तक के काल में देख चुके हैं जब 5 साल के समय में दिल्ली ने मदन लाल खुराना, साहब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज के रूप में तीन मुख्यमंत्रियों को देखा था. ध्यान रहे कि उस समय ये तीनों ही नेता दिल्ली के लिए वैसे ही जरूरी थे जैसे आज तिवारी, गोयल और वर्मा हैं.

नागरिकता संशोधन कानून दे सकता है फायदा

नागरिकता संशोधन कानून पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस दोनों ही अपना पक्ष सामने रख चुके हैं. जैसे दोनों दलों के इस नए कानून पर तेवर हैं साफ़ हो जाता है कि दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही इस कानून के पक्ष में नहीं हैं. अब अगर बात देश की हो तो इस मुद्दे पर देश में एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो भाजपा को समर्थन दे रहा है.

इसलिए दिल्ली चुनावों के अंतर्गत भाजपा को इस मुद्दे को बहुत ही गम्भीरता से लेना चाहिए और इस कानून को लेकर एक बहुत सधी हुई पारी खेलनी चाहिए.

इस कानून और इस कानून के प्रति जनता का रवैया देखकर ये कहना हमारे लिए कहीं से भी गलत नहीं है कि दिल्ली में पार्टी का प्रचार कर रहे तीनों नेताओं में से कोई भी एक अगर इस कानून को पकड़ लेता है और अपनी राजनीति इसी के इर्द गिर्द करता है तो इस सूरत में भाजपा को सफलता मिलना कन्फर्म है.

जनता को मुद्दों और किये गए काम का हिसाब बताए भाजपा

दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के तेवर हमारे सामने हैं. पार्टी लगातार ये ऐलान कर रही है कि तमाम विषम परिस्थितियां होने के बावजूद उसने दिल्ली के लिए क्या काम किया है. चाहे अरविंद केजरीवाल द्वारा करे गए छोटे काम हों. या फिर बड़ी उपलब्धियां.

पार्टी का पूरा प्रयास यही है कि कैसे भी इन चीजों को जनता तक लाया जाए. चाहे सोशल मीडिया को बतौर टूल इस्तेमाल करना हों या फिर प्रवक्ताओं की मदद लेनी हो पार्टी ने इस पर काम करते हुए दिल्ली की जनता के नैरेटिव को बदलने का काम किया है.

भाजपा को इससे सीख लेनी चाहिए और इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए प्रचार करना चाहिए. यदि भाजपा आम आदमी के बनाए नैरेटिव को तोड़ने में कामयाब हो जाती है तो फिर शायद ही कोई ऐसे कारण हो जो दिल्ली का किला फ़तेह करने की दिशा में उसके मार्ग में अवरोध उत्पन्न करें.

करें अपने सीएम का निर्धारण

आप आदमी पार्टी की कमान अरविंद केजरीवाल के हाथ में है. केजरीवाल ही इस बात का निर्धारण कर रहे हैं कि दिल्ली में बाजी को किस तरह खेलना है. इसके ठीक विपरीत, तीन लोग भाजपा का दिल्ली में विजय रथ संभाले हैं. जाहिर सी बात है जब तीन तारह के विचार दिल्ली की जनता के सामने होंगे तो पशोपेश की स्थिति बनना स्वाभाविक है.

आज भले ही दिल्ली में चुनाव होने में कुछ दिन शेष रह गए हों मगर दिल्ली की जनता गफलत की स्थिति में है. सवाल ये है कि आखिर भाजपा की तरफ से दिल्ली में मुख्यमंत्री के लिए चेहरा कौन होगा ? साथ ही अगर भाजपा ने दिल्ली में बढ़त बना ली तो यहां का अगला मुख्यमंत्री किन नीतियों और किन प्लानिंग के साथ शासन करेगा.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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