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Updated: 06 अक्टूबर, 2016 08:58 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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रोहित वेमुला मामले की तह तक पहुंचने के लिए केन्द्रीय एचआरडी मंत्रालय द्वारा गठित एक सदस्यीय जुडीशियल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रोहिथ वेमुआ आत्महत्या के लिए खुद जिम्मेदार है. विश्वविद्यालय में उसके इर्द-गिर्द कोई ऐसा माहौल नहीं था जिसने उसे आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एके रूपनवाला के इस कमीशन की रिपोर्ट का मानना है कि तत्कालीन एचआरडी मंत्री स्मृति ईरानी और केन्द्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय के ऊपर हैदराबाद विश्वविद्यालय प्रशाषन पर दबाव बनाने का आरोप झूठा है. वह सिर्फ अपना फर्ज बखूबी निभा रहे थे.

इंडियन एक्सप्रेस अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक जुडीशियल कमीशन का अंतिम मत है कि विश्वविद्यालय ने रोहित को उसकी गलती के लिए सजा दी, वजीफा रोका और हॉस्टल से निष्कासित किया था. लिहाजा, अपनी गलतियों के चलते ही वह हताशा (फ्रस्टेशन) की ऐसी अवस्था में पहुंचा जहां उसे फांसी लगाकर आत्महत्या करना मंजूर हुआ.

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 सिर्फ सरकार से थोड़ा फायदा लेने के लिए?

   

रोहित की जाति पर उठे सवाल का जवाब

रोहित वेमुला की आत्महत्या के तुरंत बाद राज्य से लेकर केन्द्र सरकार पर इस मामले में राजनीतिक रोटियां सेंकने का आरोप लगा. मामला सुर्खियों में इसलिए पहुंच गया क्योंकि बताया गया कि रोहित वेमुला दलित समुदाय से है. फिर क्या राहुल गांधी, क्या अरविंद केजरीवाल और क्या मायावती. सबने मिलकर रोहित को 21वीं सदी का वह दलित चेहरा बना दिया जो आज भी प्रताड़ित है.

रूपनवाला कमीशन ने रोहिथ की जाति पर सघन जांच की. पाया कि रोहित के दलित होने के कोई साक्ष्य नहीं है. उसकी मां वी राधिका ने सरकारी लाभ लेने के लिए रोहित का फर्जी जाति प्रमाण पत्र जारी करा लिया था. इंडियन एक्सप्रेस अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के अंश में कहा जा रहा है कि वी राधिका कि जाति के प्रमाण को खंगालने पर पता चला है कि वह खुद दलित नहीं थी.

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रोहित की मां ने दावा किया है कि उसे गोद लेने वाले माता-पिता ने उसे बताया था कि उसके जैविक माता-पिता दलित (माला जाति) थे. हालांकि उसने यह भी कुबूल किया कि उसे गोद लेने वाले माता-पिता ने उसे कभी असली माता-पिता का नाम नहीं बताया. कमीशन को यह नांगवार गुजरा कि बिना नाम जाने यह कैसे तय हुआ कि वह किस जाति से थे.

लिहाजा, वी राधिका के इस बयान पर कमीशन ने इस दावे को खारिज कर दिया है कि रोहिथ की मां दलित थी. यानी रोहित के दलित जाति प्रमाण पत्र को कमीशन ने यह कहते हुए फर्जी घोषित कर दिया है कि इसे बनवाने में लापरवाही बरती गई है.

कैसे बना फर्जी जाति प्रमाणपत्र

रूपनवाला कमीशन ने विस्तार से अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि रोहित का फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए उसकी मां वी राधिका एक से डेढ़ साल तक एक क्षेत्रीय कॉरपोरेटर के घर पर रही. कॉरपोरेटर से अपनी नजदीकी का फायदा उठाकर ही उसने गलत ढ़ंग से रोहिथ के लिए प्रमाणपत्र हासिल किया.

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 राजनीति की शुरुआत

रिपोर्ट में हैरान करने वाला तथ्य है कि 2014 में वी राधिका ने रोहित के छोटे भाई राजा वेमुला के लिए जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए क्षेत्रीय ऑफिस में एप्लीकेशन दी थी. इस एप्लीकेशन में उसने राजा वेमुला को वडेरा जाति (पिछड़ी जाति) का घोषित किया था. इसके लिए उसने साक्ष्य भी प्रस्तुत किए जिसके आधार पर यह तय होता है कि वह वडेरा जाति का था क्योंकि प्रमाण उसकी मां कि जाति भी वडेरा बता रहे थे. लिहाजा, इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं बचती कि रोहित दलित न होकर पिछड़ी जाति से था.

खारिज हुए रोहित के उत्पीड़न के आरोप     

रोहित वेमुला और उसके साथी देश में असहिष्णुता, गोमांस, मुज्जफरनगर दंगों जैसे तमाम मुद्दों पर केन्द्र की बीजेपी सरकार पर निशान साध रहे थे. इसी कार्यक्रम के तहत वह विश्वविद्यालय कैंपस में धरना-प्रदर्शन भी कर रहे थे. इन मुद्दों को आधार बताते हुए उनकी कोशिश केन्द्र की बीजेपी सरकार को दलित विरोधी बताने की थी.

लेकिन विश्वविद्यालय प्रशाषन ने अन्य छात्रों की शिकायत पर कराई जांच में पाया कि रोहित और उसके साथी विश्वविद्यालय की दी सुविधाओं का दुरुपयोग कर रहे हैं. वह कैंपस का माहौल दूषित कर रहे हैं. इसपर फैसला लेते हुए प्रशाषन ने रोहिथ और उसके साथियों का वजीफा रोक दिया और उन्हें होस्टल से निष्कासित कर दिया.

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राजनीति की शुरुआत

विश्वविद्यालय से रोहिथ और उसके साथियों के निष्कासन के बाद धरना-प्रदर्शन ने और जोर पकड लिया. कयास लगाया जाने लगा कि उसके धरना प्रदर्शन पर विश्वविद्यालय में एबीवीपी छात्र संगठन ने यह मानते हुए आपत्ति दर्ज की कि रोहिथ के रुख से छात्र इकाई को विश्वविद्यालय में राजनीतिक नुकसान हो रहा है (यानी दलित छात्र एबीवीजी का वोट बैंक बनने से कतरा रहे हैं).

लिहाजा, एबीवीपी छात्र संगठन ने केन्द्र में बैठी बीजेपी सरकार पर दबाव बनाया कि वह मामले में जल्द से जल्द कोई कारगर कदम उठाए और छात्र इकाई को इस राजनीतिक लाभ से वंचित होने से बचाए. निष्कासन के बाद फिर आरोप लगा कि यद कदम केन्द्र के दबाव में उठाया गया है और इससे सिर्फ दलित छात्रों का उत्पीड़न हो रहा है. इन परिस्तिथियों में रोहिथ फंस गया और उसने फांसी लगाने का फैसला कर लिया. अपने सुसाइड नोट में उसने दलित होने की बात ऊपर रखी और लिखा कि सदियों से चले आ रहे दलित उत्पीड़न से कुंठित होकर वह आत्महत्या कर रहा है.

राजनीति का राष्ट्रीयकरण

इस कयास को आधार मानते हुए देश के सभी राजनीतिक दल हैदराबाद विश्वविद्यालय की इस समर में कूद पड़े. दलित उत्पीड़न की गूंज देश के हर कोने से सुनाई देने लगी. कैंडल लाइट मार्च सड़कों पर शुरू हो गए. जेएनयू विवाद में अध्यक्ष कन्हैया ने भी वेमुला को उत्पीड़न का प्रतीक घोषित करते हुए देश की सरकार के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया.

मामला संसद में उठा. वहां भी दलित मुद्दे पर लगी राष्ट्रव्यापी आग को कुछ नेताओं ने और सुलगाया तो कुछ ने मातृत्व की सिंचाई कर आग को काबू करने की कोशिश की. नतीजा, एक छात्र की आत्महत्या का मामला विश्वविद्यालय की बाउंड्री को लांघ गया और राष्ट्रीय मुख्यधारा की राजनीति में घुस गया.  लेकिन यह रिपोर्ट कह रही है कि एक साल पहले जिस तीव्रता से रोहिथ वेमुला का मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर दलित उत्पीड़न का मामला बना, उसी तीव्रता से इस रिपोर्ट से वह झूठा साबित हो गया है. रोहित के झूठ के साथ-साथ गोमांस और सांप्रदायिक दंगों की बिसात पर असहिष्णुता का मुद्दा भी झूठ साबित हो चुका है.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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