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Updated: 22 जुलाई, 2020 10:39 PM
प्रभाष कुमार दत्ता
प्रभाष कुमार दत्ता
  @PrabhashKDutta
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क्या राजस्थान (Rajasthan) के अंतर्गत सरकार में बदलाव होगा या फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) अपना कार्यकाल पूरा कर पाएंगे? इस सवाल का जवाब निर्भर करता है बर्खास्त उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) और कांग्रेस के बागी नेता सचिन पायलट (Sachin Pilot) और 18 निष्ठावान विधायकों के खिलाफ उठाए गए अयोग्यता के कदम पर. मुख्य रूप से, मुद्दा राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी (CP Joshi) और न्यायपालिका के बीच रस्साकशी का है. सचिन पायलट, अशोक गहलोत, कांग्रेस पार्टी और भाजपा भी खेल में अलग-अलग बिंदुओं पर ताल ठोकते हुए नजर आ रहे हैं. देश में जब संविधान लागू हुआ तब एक निर्वाचित सदस्य की अयोग्यता मूल विचार नहीं था. लेकिन तब पार्टी आधारित विधायी और कार्यकारी निष्ठा भी चीजों की मूल योजना में विचार नहीं था. कांग्रेस विधायकों और सांसदों ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के दिनों में सदन के पटल पर अपनी ही सरकार की आलोचना की. तब विपक्ष केवल साथ आया था.

यही वो कारण माना जाता है जिसके अंतर्गत 1969 के राष्ट्रपति चुनाव में इंदिरा गांधी 'अंतरात्मा की आवाज' के मद्देनजर विधायकों से वोट देने की अपील कर सकती थीं, जिसके परिणामस्वरूप आधिकारिक कांग्रेस उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी और वीवी गिरि की जीत हुई, जिसे उन्होंने समर्थन दिया.

लेकिन फिर 1960 के दशक के दौरान प्रसिद्ध गया लाल मामला हुआ, जिसमें टर्निंग कोट को एक नाम दिया गया - 'आया राम, गया राम'. हरियाणा के इस इस राजनेता ने 24 घंटे में तीन बार पार्टियों को बदला. देर से विधायी प्रतिक्रिया में, राजीव गांधी सरकार 1985 में संविधान में सम्मिलित दसवीं अनुसूची लेकर आई. इसे आमतौर पर दलबदल विरोधी कानून कहा जाता है.

Sachin Pilot, Ashok Gehlot, Congress, CP Joshi, Rajasthanविद्रोही कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कांग्रेस पार्टी द्वारा अयोग्य ठहराए जाने के कदम को चुनौती दी है है

 

इस कानून ने पहली बार विधायकों को पहले पार्टी के प्रति जवाबदेह बनाया, बाद में विधायिका के लिए. इस कानून के अनुसार विधायक या सांसद - विधान सभा के अध्यक्ष और विधानसभा में पीठासीन अधिकारी द्वारा अयोग्य ठहराया जा सकता है, और राज्य सभाओं में राज्यसभा और उच्च सदनों में अध्यक्ष द्वारा.

बता दें कई अयोग्यता दलबदल के आधार पर हो सकती है जिसके लिए पार्टी या सदन के किसी अन्य सदस्य द्वारा याचिका दायर करना अनिवार्य है.

दो आधारों पर एक विधायक को अयोग्य ठहराया जा सकता है. एक, वह पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है. दो, वह सदन में एक वोट पर पार्टी नेतृत्व के निर्देशों की अवज्ञा करता है. पार्टी द्वारा जारी एक व्हिप में सदन में मतदान करने का एक प्रस्ताव है. यह कानून यह सुनिश्चित करने के लिए लाया गया था कि एक विधायक या सांसद प्रतिद्वंद्वी द्वारा लालच दिए जाने के बाद पार्टी नहीं छोड़ेगा. अंतर्निहित सिद्धांत यह है कि पार्टी चुनाव लड़ती है और स्वतंत्र उम्मीदवारों को छोड़कर इसमें कुछ भी व्यक्तिगत नहीं होता.

एक विधायक अयोग्य ठहराए जाने के बाद पार्टी छोड़ सकता है बशर्ते वह पार्टी के सभी निर्वाचित सदस्यों में से दो-तिहाई का भाग लेकर चला जाए.

राजस्थान में, गहलोत ने 2018 चुनावों के तुरंत बाद यह उपलब्धि हासिल की. आधिकारिक तौर पर, मायावती की बसपा के सभी छह विधायकों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. बसपा विधायक दल का राजस्थान में कांग्रेस विधायक दल में विलय हो गया. कानूनी तौर पर कोई दलबदल नहीं हुआ.

सचिन पायलट के विद्रोह में, उनके साथ आए खेमे ने दावा किया है कि उन्होंने 'पार्टी के निर्देशों की अवज्ञा' नहीं की बल्कि ये पार्टी के भीतर 'असंतोष' के चालते हुआ. हालांकि, गहलोत के नेतृत्व वाले कांग्रेस गुट ने सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या पर कहा, 'स्वेच्छा से अपनी सदस्यता छोड़ देता है.'

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पार्टी की सदस्यता छोड़ने के लिए औपचारिक इस्तीफा कोई शर्त नहीं है. पार्टी के फैसलों का सार्वजनिक विरोध या किसी प्रतिद्वंद्वी पार्टी को समर्थन देने या प्रतिद्वंद्वियों की रैलियों में भाग लेने जैसे कार्य 'सदस्यता छोड़ने' का गठन करते हैं.

सचिन पायलट के मामले में, वह पार्टी नेतृत्व के फैसले के विरोध में सार्वजनिक रूप से जा चुके हैं - जैसे कि अशोक गहलोत की मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति के लिए अपनी नाराजगी व्यक्त करना. उन्होंने कांग्रेस विधायक दल की बैठकों में भाग लेने के निर्देश को भी गलत ठहराया. इस उद्देश्य के लिए व्हिप जारी किए गए थे. हालांकि, सचिन पायलट खेमे ने तर्क दिया है कि व्हिप सदन के पटल पर मतदान के मामले में ही लागू होता है.

तर्क अधर में लटक गए. अध्यक्ष और सबसे अधिक संभावना है कि अदालत ही मामले पर अंतिम शब्द देगी कानूनी तौर पर, किसी विशेष विधायक या विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए याचिका का निपटारा करने में अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है.

हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णयों में स्पष्ट रूप से फैसला सुनाया है कि अध्यक्ष का निर्णय न्यायिक जांच के लिए खुला है. अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों ही उम्मीद करते हैं कि राजनीतिक संघर्ष के साथ या बिना इस युद्ध के विजेता बनेंगे. लेकिन यहां इस पूरे मामले में विजेता सिर्फ एक ही हो सकता है. या तो सचिन या फिर गहलोत.

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प्रभाष कुमार दत्ता प्रभाष कुमार दत्ता @prabhashkdutta

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्टेंट एडीटर हैं.

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