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Updated: 02 सितम्बर, 2021 06:33 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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कोरोना वायरस का भी चुनावों पर आतंकवाद और हिंसा जैसा ही असर देखा गया है. कोविड 19 प्रोटोकॉल के तहत पहला चुनाव तो बिहार विधानसभा का रहा, लेकिन ज्यादा प्रभाव पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों के इस साल हुए विधानसभा चुनावों में नजर आया. वैसे बिहार से पहले कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन और फिर अनलॉक के दौर में महाराष्ट्र में विधान परिषद की नौ सीटों के लिए भी चुनाव कराये गये थे, लेकिन अप्रत्यक्ष चुनाव होने की वजह से उसमें आम जनता की कोई भागीदारी नहीं रही.

बिहार चुनाव तो ठीक ठाक बीत गया लेकिन उसके बाद बंगाल चुनाव के बीच कोरोना वायरस की दूसरी लहर आ गयी - कहने को तो प्रोटकॉल भी लागू था ही, लेकिन उसका पालन तो कागजों पर ही होता रहा, फील्ड में तो सब कुछ वैसे ही चल रहा था जैसे सब सामान्य ही हो. जब मामला मद्रास हाई कोर्ट पहुंचा तो चुनावों के दौरान कोविड 19 से हुई मौतों का जिम्मेदार मानते हुए अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग के अधिकारियों पर तो हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिये.

अब जबकि 2022 में पांच राज्यों की विधानसभाओं के लिए होने वाले चुनाव में छह महीने से भी कम वक्त रह गया है, राजनीतिक दलों की तरफ से चुनाव कैंपेन शुरू किया जा चुका है - और ये ऐसे वक्त हो रहा है जब समझा जाने लगा है कि कोविड 19 की तीसरी लहर बस सामने ही खड़ी हो सकती है.

बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के पक्ष में चुनाव कैंपेन (UP Election Campaign) की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ सीनियर नेता अमित शाह भी कर चुके हैं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi Vadra) और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव भी बाहर निकलना शुरू कर दिये हैं. मायावती ने अभी बीएसपी महासचिव सतीशचंद्र मिश्रा को ही काम पर लगा रखा है और वो पूरे परिवार के साथ जगह जगह ब्राह्मण सम्मेलन कर रहे हैं.

ये भी है कि वैक्सीनेशन का काम भी तेजी से चल रहा है और कई लोगों के तो दोनों डोज पूरे भी हो चुके हैं, लेकिन मुश्किल ये है कि अगर तीसरी लहर ने दूसरी के मुकाबले कहीं ज्यादा खतरनाक रूप दिखाया तो क्या होगा?

हो सकता है, सभी राजनीतिक दलों को ये चैलेंज के तौर पर लग रहा हो, तभी तो सभी का सोशल मीडिया कैंपेन पर ज्यादा जोर दिखायी पड़ रहा है. कोशिशें तो सभी की हैं - लेकिन अखिलेश यादव के यूपी में सत्ताधारी बीजेपी को चुनौती देते नजर आने के बावजूद सोशल मीडिया पर मुख्य मुकाबला बीजेपी बनाम कांग्रेस ही नजर आ रहा है.

कांग्रेस की चुनावी मुहिम तो उसके पांच साल पुराने गुजरात कैंपेन के इर्द गिर्द घूमता ही नजर आ रहा है, लेकिन बीजेपी ने इस बार लगता है सोशल मीडिया पर ही कांग्रेस को काउंटर करने की तैयारी कर ली है. उत्तर प्रदेश को लेकर कांग्रेस ने इस बार जो कैंपेन शुरू किया है, उसे नाम दिया गया है - उल्टा प्रदेश किसने बनाया? कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी का कार्टून कैंपेन भी मैदान में डटा हुआ है.

आपको याद होगा 2017 के गुजरात चुनाव में कांग्रेस की मुहिम 'विकास गांडो थयो छे' का असर इस कदर होने लगा था कि आखिरी दौर में अमित शाह को सीधे मोर्चे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उतारना पड़ा था - लेकिन कांग्रेस की यूपी चुनाव मुहिम गुजरात जैसी दमदार नहीं लग रही है.

बीजेपी ने इस बार ऐसी तैयारी कर ली है कि पहले जैसी नौबत न आये - और निशाने पर सिर्फ कांग्रेस नहीं है, बल्कि अखिलेश यादव और मायावती सभी हैं.

सोशल मीडिया पर मुकाबला

कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों के सोशल मीडिया कैंपेन बराबरी की टक्कर दे रहे हैं - ये बात अलग है कि न तो विज्ञापन की पसंद और न ही रैलियों की भीड़ कभी वोटों में तब्दील हो पाती है.

जैसे 2017 में कांग्रेस ने गुजरात में एक मुहिम शुरू की थी - 'विकास गांडो थयो छे', ठीक वैसे ही ही इस बार यूपी में चालू कैंपेन एक सवाल के तौर पर है - 'किसने बनाया उलटा प्रदेश?'

yogi adityanath, priyanka gandhi vadra, akhilesh yadav2019 के आम चुनाव की ही तरह कांग्रेस यूपी विधानसभा चुनाव कैंपेन में योगी आदित्यनाथ के साथ साथ अखिलेश यादव और मायावती को भी बराबर निशाना बना रही है.

कांग्रेस की चुनावी मुहिम के जरिये यूपी के लोगों को ये बताने की कोशिश हो रही है कि सिर्फ बीजेपी के मौजूदा शासन में ही नहीं, मायावती, मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की सरकारों के दौरान भी कैसे यूपी की बर्बादी सुनिश्चित की गयी है.

मुकाबले में बीजेपी ने जो अपना सोशल मीडिया कैंपेन तैयार किया है, वो भी काफी आक्रामक नजर आ रहा है. बीजेपी के कैंपेन में कार्टूनों की मदद ली जा रही है. पहले की ही तरह अब भी टेक्स्ट, इमेज और वीडियो का ही इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन उसमें तीखे व्यंग्य के साथ हास्य का पुट भी देखने को मिलता है.

बीजेपी की तरफ से कैंपेन को सामयिक बनाने की भी कोशिश कर रही है - जैसे जन्माष्टमी के मौके पर कार्टून के जरिये ही लोगों को राजनीतिक विरोधियों के बारे में पार्टी की सोच समझाने की कोशिश हुई.

कार्टूनों में भी मुख्य किरदार बीजेपी के सीएम उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ ही हैं - और उनको अपराधियों, माफिया के खिलाफ सख्ती से पेश आते दिखाये जाने की कोशिश हो रही है. साथ ही, अलग अलग कार्टूनों के जरिये ये दिखाने की भी कोशिश है कि कैसे योगी आदित्यनाथ यूपी के विकास की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठाये हुए हैं.

एक खास जानकारी ये भी मिली है कि बीजेपी ये कैंपेन किसी एजेंसी के भरोसे नहीं चला रही है, बल्कि पार्टी पदाधिकारियों के ही सोशल मीडिया अकाउंट से ये प्रमोशन किये जा रहे हैं. बीजेपी ने अपने इस खास मिशन के लिए पूरे दस हजार पदाधिकारियों की नियुक्ति की है.

कार्टूनों में योगी को हीरो की तरह पेश करने के साथ साथ विलेन के रूप में अखिलेश यादव को दिखाया जा रहा है. मकसद साफ है अखिलेश यादव को नाकाम और योगी को लोगों की नजरों में कामयाब साबित करना.

कैंपेन के जरिये लोगों को ये बताने की कोशिश हो रही है कि कैसे सिर्फ बीजेपी के मौजूदा शासन में ही नहीं, मायावती, मुलायम और अखिलेश सरकारों में भी कैसे यूपी को बर्बाद किया गया है - और यही वजह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ साथ मुलायम सिंह परिवार को लेकर भी वीडियो बनाये गये हैं.

किसने बनाया उलटा प्रदेश नाम से एक फेसबुक पेज बीते 7 अप्रैल, 2021 को बना है और उसे पांच लाख से ज्यादा लोग फॉलो कर रहे हैं. इसी कैंपेन के लिए इंस्टाग्राम पर भी एक पेज बनाया गया है लेकिन वहां एक हजार से कुछ ही ज्यादा फॉलोवर नजर आ रहे हैं.

कैंपेन को सफल बनाने के मकसद से कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए ट्रेनिंग कैंप भी आयोजित कर रही है. बताते हैं कि बूथ लेवल पर दी जाने वाली ऐसी ट्रेनिंग के लिए 700 कैंप आयोजित करने का लक्ष्य रखा गया है. ट्रेनिंग के दौरान कांग्रेस के आईटी सेल की तरह से सोशल मीडिया के बेहतर इस्तेमाल की भी ट्रेनिंग दी जा रही है.

कांग्रेस को हमेशा ही परिवारवाद की पॉलिटिक्स के लिए आक्रामक बीजेपी के सामने बचाव की मुद्रा में रहना पड़ता है, लेकिन बीजेपी के ऐसे अभियानों को काउंटर करने के लिए एक बुकलेट भी तैयार करायी गयी है - हम कांग्रेस के लोग-दुष्प्रचार और सच.

ऐसा करके कांग्रेस लोगों को ये बताने की कोशिश कर रही है कि सीताराम केसरी और नरसिम्हा राव से पहले भी आचार्य जेबी कृपलानी जैसे नेता भी कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं जो गांधी परिवार से नहीं थे. सिर्फ इतना ही नहीं, कांग्रेस कैंपेन में ये बताने पर भी जोर होगा कि कैसे अनुराग ठाकुर से लेकर पंकज सिंह तक बीजेपी परिवारवाद चलाती है - और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह जहां बीजेपी के सांसद हैं, वहीं कल्याण सिंह के पौत्र संदीप सिंह योगी आदित्यनाथ सरकार में राज्य मंत्री बने हुए हैं.

ट्रैनिंग कैंप और वर्कशॉप आयोजित कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पार्टी का इतिहास बताया जा रहा है - और संघ-बीजेपी के कांग्रेस और देश विरोधी अभियानों को काउंटर करने की तरकीबें सिखायी जा रही हैं. कांग्रेस की तरफ से करीब 50 जिलों में कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी जा चुकी है - और इस दौरान कार्यकर्ताओं को सिखाया जाता है कि कैसे वो लोगों के बीच जायें और सारे विरोधियों की पोल खोलें.

'विकास पागल...' से उलटा प्रदेश तक!

'विकास गांडो थयो छे' चुनावी मुहिम गुजराती भाषा में चलायी गयी थी, जिसका हिंदी अर्थ हुआ - 'विकास पागल हो गया है'. ये कैंपेन जब गुजरात में शुरू किया गया तब दिल्ली में राहुल गांधी के विदेश दौरे के तैयारी चल रही थी. टेक्नोक्रेट कांग्रेसी सैम पित्रोदा ने राहुल गांधी के लिए विदेशों में कई इवेंट प्लान किये थे और उसी दौरान गुजरात में ये कैंपेन भी धमाके करने लगा. जब तक राहुल गांधी का गुजरात दौरा शुरू हुआ, ये कैंपेन इतना जोर पकड़ चुका था कि बीजेपी नेतृत्व परेशान हो उठा.

दरअसल, जिस गुजरात मॉडल के साथ बीजेपी केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई थी, उसी पर उठाये जा रहे सवालों को लेकर हाथों हाथ लेने लगे और कैंपेन हिट हो गया. कैंपेन को काउंटर करने की छोटी छोटी तरकीबें अपनायी गयीं, लेकिन सभी बेकार साबित हुईं.

वोटिंग से कुछ पहले जब अमित शाह ने पूरी तरह से अहमदाबाद में डेरा जमा लिया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रोग्राम बनाया गया. प्रधानमंत्री मोदी ने जब मंच से बोला - "हूं छूं विकास, हूं छूं गुजरात" तो जैसे मंजर ही बदल गया.

कांग्रेस से फौरन समझ गयी कि बीजेपी के रणनीतिकारों ने बड़ी चालाकी से उसके कैंपेन में शामिल विकास और गुजरात दोनों को गुजराती अस्मिता से जोड़ दिया है और वो कैंपेन ज्यादा देर तक नहीं टिकने वाला.

कांग्रेस की तरफ से पहला बयान आया कि राहुल गांधी के निर्देश पर कांग्रेस अपना कैंपेन वापस ले रही है. बाद में राहुल गांधी ने बताया कि चूंकि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं और वो हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री का सम्मान करते हैं, इसलिए कैंपेन वापस ले लिया गया है. बाद के दिनों में राहुल गांधी ने हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री पद का कितना सम्मान किया एक एक घटनाओं को याद कर लीजिये - थोड़ा गूगल करने पर दिल्ली चुनाव में डंडे मारने वाला बयान भी मिल जाएगा.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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