लोगों का भरोसा तो दूर, अब कांग्रेस को खुद पर ही भरोसा नहीं
कांग्रेस के कार्याकर्ताओं का कहना है कि जब पार्टी को खुद पर भरोसा ही नहीं है तो हम पार्टी पर कैसे भरोसा करें.
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कांग्रेस की हालात फिलहाल ऐसी ही गई है कि इसके लिये पुराने मुहावरे भी काम में नहीं लिए जा सकते. ऐसा लगता है कि नई कहावतें अब जन्म लेंगी. खैर, बात हो रही है 125 साल पुरानी पार्टी कांग्रेस की, जो खुद को देश की आजादी दिलाने में अपनी भूमिका का दावा करती है. मगर आज ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस भी राजनीति से आजादी ही मांग रही हो. 2014 को लोकसभा चुनाव में 44 सीटें आने के बाद ऐसा लग रहा है मानो कांग्रेस को खुद से कुछ भी उम्मीद नहीं है.
दिल्ली विधानसभा में 70 में से 0 सीट ने कांग्रेस को शुन्य पर ही लाकर खड़ा कर दिया.
बिहार चुनाव में 240 सीटों में से सिर्फ 40 सीटों पर लड़ना और 25 सीटें जीतने पर जश्न मनाना, ये कारनामा सिर्फ देश की सबसे पुरानी पार्टी ही कर सकती है.
बात करते हैं उत्तर प्रदेश चुनाव की. राहुल गांधी 2 महीने तक यूपी घुमते रहे, किसान यात्रा भी निकाली. नारा दिया 27 साल यूपी बेहाल, शीला दीक्षित को सीएम उम्मीदवार भी घोषित कर दिया. मगर ये क्या? आपने मात्र 105 सीटों के लिये खुद को पीछे कर लिया. जिस पार्टी को आप खराब कह रहे थे आज वो अच्छी कैसे हो गई.
मान लिजिये आप यूपी के एक वोटर हैं. आप अपना मन बना रहे थे कि इस बार तो कांग्रेस को ही लाना है. 400 सीटों पर बीते 5 साल से कार्यकर्ता भी अपने पैर जमा रहे थे. मगर ऐसा लगता है मानो लोगों से ज्यादा तो कांग्रेस को खुद पर भरोसा है कि हमारी सरकार नहीं आ सकती.
105 सीटें भी ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस ने हाथ जोड़ कर मांगी हों. वरना समाजवादी पार्टी तो ये भी कह चुकी थी कि कांग्रेस सिर्फ 54 सीटों के ही लायक है.
जब हमने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से बात की तो उन्होंने कहा कि हमें अब राहुल गांधी का साथ पसंद नहीं. जब हम 5 साल से चुनाव की तैयारियों में लगे हुए थे फिर ऐसे कैसे पार्टी ने 105 सिटों पर लड़ने का फैसला कर लिया.
ऐसा करने से अब कांग्रेस अपने कार्यकर्ता भी खो रही है. कार्याकर्ताओं का कहना है कि जब पार्टी को खुद पर भरोसा ही नहीं है तो हम पार्टी पर कैसे भरोसा करें. मतलब अब कांग्रेस पर लोगों का भरोसा तो दूर अब उनके ही कार्यकर्ताओं का ही भरोसा नहीं रहा.
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