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Updated: 31 जनवरी, 2017 09:20 PM
राहुल कंवल
राहुल कंवल
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भारत के सबसे अहम रणक्षेत्र माने जाने वाले राज्य में राजनीतिक पेंडुलम बीजेपी से हटकर समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन की दिशा में मुड़ना शुरु हो गया है. कितनी दूर जाकर आखिर में ये पेंडुलम रुकता है, इसी पर निर्भर करेगा कि बीजेपी फिनिशिंग लाइन को विजेता के तौर पर पार करने में कामयाब रहती है या अखिलेश-राहुल के गठजोड़ के आगे मात खा जाती है.

यूपी चुनाव से पहले इंडिया टुडे ग्रुप के लिए एक्सिस-माई इंडिया की ओर से किए गए आखिरी ओपिनियन पोल के मुताबिक पिछले ओपिनियन पोल की तुलना में बीजेपी के खाते में 25 सीटों की कमी आई है. पिछला ओपिनियन पोल दिसंबर में और ताजा ओपिनियन पोल जनवरी में किया गया. एक्सिस-माई इंडिया के अनुमान के मुताबिक तत्काल चुनाव होने पर बीजेपी को यूपी में 180 से 191 सीट मिलने जा रही हैं. लेकिन एसपी-कांग्रेस गठबंधन भी ज्यादा पीछे नहीं है. इस गठबंधन को 168-178 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है. गठबंधन से सबसे ज्यादा नुकसान बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को होता दिख रहा है. बीएसपी को दिसंबर से जनवरी के बीच 40 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है.  akhilesh-rahul_013117091250.jpgपिछले एक महीने में सभी अहम राजनीतिक ताकतों के वोट शेयर के हिस्से में भी बड़ा उतार-चढ़ाव देखने को मिला है. बीएसपी  एक महीने में अपने वोट शेयर का पांचवां हिस्सा खोते दिखी. इस पार्टी का वोट शेयर 26% से घटकर 20.1% पर आ गया.

ताजा ओपिनियन पोल के आंकड़े दिखाते हैं कि कांग्रेस के हाथ का साथ समाजवादी पार्टी की साइकिल को मिलने से समाजवादी पार्टी के वोटों में 7% वोटों का इजाफा हुआ है. ओपिनियन पोल के मुताबिक एसपी के पास 26 फीसदी हैं. लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन होने के बाद इस गठबंधन को 33.2% वोट मिलने का अनुमान है. हालांकि इस नए गठबंधन से बीजेपी का अपना वोट शेयर कमोवेश अप्रभावित है. असलियत ये है कि बीजेपी का अपना वोट शेयर जो दिसंबर में 33% दिख रहा था वो जनवरी में बढ़ कर 34.8% हो गया. 

यूपी में चुनाव अब मोटे तौर पर बीजेपी और एसपी-कांग्रेस गठबंधन के बीच दो घोड़ों की दौड़ सरीखा हो गया है. दिसंबर में बीजेपी को निकटतम प्रतिद्वंद्वी एसपी पर 100 सीट की  बढ़त हासिल थी. लेकिन अब अखिलेश-राहुल के साथ ने यूपी के राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह बदल डाला है. हालांकि प्रदेश में कांग्रेस हाशिए पर पहुंची ताकत है लेकिन इसने एक महीने के अंतराल में ही तथाकथित धर्मनिरपेक्ष गठबंधन के लिए 76 सीटों का इजाफा करने में मदद की है.  

amit-shah-and-modi_013117091310.jpgअगर यूपी चुनाव की तुलना घुड़दौड़ से की जाए तो दिसंबर में बीजेपी का घोड़ा कहीं आगे दौड़ रहा था. लेकिन जनवरी में इसकी रफ्तार में कमी आना शुरू हुआ. दूसरी ओर, एसपी के घोड़े को कांग्रेस से शक्तिवर्धक खुराक मिली तो इसने पहले से कहीं तेज रफ्तार से दौड़ना शुरू कर दिया. अगले कुछ हफ्ते ये तय करेंगे कि बीजेपी का घोड़ा अपनी बढ़त को बरकरार रखने में कामयाब रहता है या फिर आखिरी स्ट्रैच में प्रतिद्वंद्वी की ओर से पछाड़ दिया जाता है.  फिलहाल, दो मुख्य प्रतिद्वंद्वियों में वोट शेयर का अंतर 1.6% से भी कम पर आ टिका है जो अपने आप में 'मार्जिन ऑफ एरर' के अंदर आता है.    

इन चुनावी अंकों पर नजर डालते वक्त ये ध्यान में रखना जरूरी है कि एक्सिस की टीमों ने ताजा ओपिनियन पोल के लिए 15 जनवरी के बाद से जमीनी काम करना शुरू किया था. उस वक्त गठबंधन के अस्तित्व में आने को लेकर हलचल थी लेकिन साथ ही कुछ अनिश्चितता भी थी. ऐसा गठबंधन के लिए बातचीत टूटने की लगातार रिपोर्ट आने की वजह से था. एसपी-कांग्रेस गठबंधन का एलान आखिरकार 22 जनवरी को हुआ. लेकिन तब तक एक्सिस की ओर से सर्वे का 40% काम पूरा हो चुका था.

एक्सिस के तीनों पोल के दौरान जातिगत आंकड़ों के अध्ययन से दिलचस्प तथ्य सामने आए कि किस तरह यूपी का चुनावी गणित बदलता रहा है. बीते एक महीने में एसपी-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में यादव और मुस्लिमों का खासा जमावड़ा हुआ है. दिसंबर में 72% यादवों का कहना था कि वे एसपी को वोट देंगे. जनवरी में ये आकंड़ा 10% बढ़कर 82% हो गया. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि दिसंबर में जितने यादव बीजेपी के पक्ष में वोट देने की बात कर रहे थे, उनमें से भी आधे एसपी की तरफ मुड़ गए. 

दिसंबर में मुस्लिमों में से 71% ने कहा था कि वे एसपी को वोट देंगे. जनवरी में ये आंकड़ा बढ़कर 74% हो गया. एसपी को कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से सवर्ण वोटों का 19% हिस्सा अपने साथ लाने में मदद मिली है. दिसंबर में अकेले एसपी को सवर्ण वोटरों में सिर्फ 9% हिस्सा ही मिल रहा था. इस बीच, बीते एक महीने में बीएसपी सभी जाति वर्गों में कुछ ना कुछ समर्थन खोती नजर आई.  

mayawati_013117091331.jpgदूसरी ओर, बीते एक महीने में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और सवर्ण वोटों का बीजेपी के पक्ष में जमावड़ा हुआ है. बीजेपी के लिए दिसंबर में 53% ओबीसी झुकाव दिखा रहे थे, जनवरी में ये बढ़कर 56% हो गया है. वहीं सवर्णों की बात की जाए तो बीजेपी का समर्थन दिसंबर में 61% से बढ़कर जनवरी में 68% हो गया है.

यूपी ओपिनियन पोल के आंकड़ों को अगर क्षेत्रवार बांटा जाए तो बीजेपी को पूर्वी यूपी में साफ बढ़त दिख रही है. इस क्षेत्र में कुल 167 सीट हैं. एक्सिस के अनुमान के मुताबिक पूर्वी यूपी में बीजेपी को 89 सीटें मिलने जा रही हैं. वहीं एसपी-कांग्रेस गठबंधन के खाते में 55 सीटें जा सकती हैं. बीएसपी को 22 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है. अगर पश्चिमी यूपी की कुल 136 सीटों की बात की जाए तो यहां मुस्लिमों के बड़ी तादाद में एकजुट होने की वजह से एसपी-कांग्रेस के खाते में 68 सीटें जा सकती हैं. पश्चिमी यूपी में बीजेपी को 53 सीट मिल सकती हैं. वहीं बीएसपी सिर्फ 13 सीटों पर ही जीत हासिल करती नजर आ रही है.

मध्य यूपी को पारंपरिक तौर पर समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है. यहां की कुल 81 सीटों में से एसपी-कांग्रेस गठबंधन को 47, बीजेपी को 31 और बीएसपी को सिर्फ 3 सीटें मिलने का अनुमान है. बुंदेलखंड यूपी का सबसे छोटा क्षेत्र है. यहां बीजेपी को 12, एसपी-कांग्रेस गठबंधन को 4 और बीएसपी को 3 सीट मिल सकती हैं.

ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि जब हालात एसपी-कांग्रेस गठबंधन के लिए माकूल होते जा रहे हैं तो क्या अखिलेश और राहुल मतगणना वाले दिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह को पछाड़ने में कामयाब रहेंगे? ये सब इस पर निर्भर करता है कि अगले एक महीने में प्रचार के दौरान क्या क्या सामने आता है?

मुस्लिम और यादव एसपी-कांग्रेस गठबंधन के पीछे एकजुट हो रहे हैं तो इसके जवाब में ओबीसी और सवर्णों का बीजेपी के समर्थन में जमावड़ा हो रहा है. अगले एक महीने में हिंदू वोटों का जुटना और बढ़ सकता है. बिहार से अलग हट कर यूपी का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का लंबा इतिहास रहा है. बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में इसका कामयाब प्रयोग किया था. अगर प्रचार के दौरान साम्प्रदायिक पारा और चढ़ता है तो हिंदू वोटों का एक घाट पर आना बीजेपी को टीम अखिलेश और राहुल के जातिगत गणित का मुकाबला करने में मदद कर सकता है.

वहीं, एसपी और कांग्रेस मजबूती से प्रचार अभियान चलाती हैं, सही उम्मीदवारों को मैदान में उतारती है, साथ ही धर्मनिरपेक्ष गठबंधन की ओर से अच्छी संख्या में सवर्ण उम्मीदवारों पर दांव लगाया जाता है तो बीजेपी के समर्थन में सवर्णों का जुटना संभवत: सीमित हो जाएगा. क्योंकि कई सवर्ण मतदाता गठबंधन की ओर से खड़े किए गए सवर्ण उम्मीदवारों के पक्ष में वोट कर सकते हैं. एक और बड़ा स्विंग फैक्टर दलित वोट भी है. अभी तक एक्सिस के तीनों ओपिनियन पोल के दौरान जाटव और गैर जाटव वोट, दोनों ही बीएसपी के पाले में खड़े नजर आते रहे. लेकिन जैसे जैसे बीएसपी की स्थिति कमजोर पड़ने की चर्चा जोर पकड़ रही है, ऐसे में संभावना है कि गैर जाटवों में से कुछ वोट देने के लिए अपनी प्राथमिकता बदल सकते हैं. साफ शब्दों में कहें तो मुस्लिम और यादव एसपी-कांग्रेस गठबंधन के पीछे खड़े नजर आ रहे हैं. इसी के मुकाबले सवर्ण और ओबीसी बीजेपी के पक्ष में एकजुट हो रहे हैं. लेकिन आखिर में दलित वोट कहां जाएगा, यही तय करेगा कि यूपी की गद्दी पर किसका राजतिलक होगा?

उत्तर प्रदेश की जंग अब भी खुली है. अगला एक महीना संभवत: देश के ताजा चुनावी इतिहास के सबसे कड़े और कांटे के चुनावी मुकाबलों में से एक का गवाह बनने जा रहा है. आइए बिसात लगाई जाए.

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लेखक

राहुल कंवल राहुल कंवल @rahul.kanwal.52

लेखक टीवी टुडे ग्रुप के मैनेजिंग एडिटर और प्रख्यात टीवी एंकर हैं.

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