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Updated: 19 फरवरी, 2021 03:41 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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बीते साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से बाहर रहकर चुनाव लड़ने का फैसला लिया था. चुनाव में एलजेपी ने केवल एक सीट पर जीत हासिल की. इस फैसले से बिहार में सबसे ज्यादा नुकसान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी को हुआ था. एलजेपी ने 30 से ज्यादा सीटों पर जेडीयू को नुकसान पहुंचाया था. इसकी वजह से एनडीए में अब जेडीयू की भूमिका छोटे भाई की हो गई है. बिहार विधानसभा चुनाव के तीन महीने बीतने के बाद जेडीयू ने भी एलजेपी पर सियासी बम फोड़ दिया है. दरअसल, एलजेपी के 18 जिलाध्‍यक्ष और पांच प्रदेश महासचिवों समेत 208 नेताओं ने पार्टी छोड़कर जेडीयू का दामन थाम लिया है. एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के लिए यह एक बड़ा झटका है. वहीं, इस बड़े दलबदल से समझ आता है कि चिराग पासवान को लेकर नीतीश कुमार का गुस्सा अभी शांत नहीं हुआ है. तमाम घटनाक्रमों को देखकर कहा जा सकता है कि चिराग पासवान राजनीति के मौसम विज्ञानी कहे जाने वाले दिवंगत रामविलास पासवान की विरासत को संभालने में नाकाम रहे हैं.

माना जा रहा है कि एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान के प्रति नेताओं की नाराजगी ही पार्टी में बगावत की वजह है. बिहार विधानसभा चुनाव में अलग चुनाव लड़ने को लेकर पार्टी नेताओं में असंतोष घर कर गया था. रही-सही कसर चुनाव में टिकट बंटवारे ने पूरी कर दी थी. बागी नेताओं ने चिराग पासवान पर बाहरी लोगों को टिकट बेचने के आरोप लगाए और पार्टी से किनारा कर लिया. चिराग पासवान ने पार्टी में बढ़ रहे असंतोष को दबाने के लिए दिसंबर में पार्टी की प्रदेश कार्य समिति, सभी प्रकोष्ठों एवं जिला इकाईयों को भंग कर दिया था. पासवान ने अभी तक नई टीम का गठन नहीं किया है. कहा जा रहा है कि चिराग एलजेपी पर लगे परिवारवाद के ठप्पे को हटाने की कोशिश में किसी नए चेहरे को मौका देंगे.

एलजेपी के एनडीए में आने के बाद बिहार विधानसभा चुनावों में पार्टी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई.एलजेपी के एनडीए में आने के बाद बिहार विधानसभा चुनावों में पार्टी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई.

एलजेपी के एनडीए में आने के बाद बिहार विधानसभा चुनावों में पार्टी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई. लेकिन, लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें इस दौरान बढ़ गई थीं. हालांकि, रामविलास पासवान हमेशा की तरह ही केंद्र की मोदी सरकार में मंत्रालय संभाल रहे थे. लेकिन, इस बड़ी टूट का पार्टी पर गहरा असर पड़ने वाला है. एलजेपी के खिलाफ सीएम नीतीश कुमार के तल्ख तेवर एनडीए में चिराग पासवान के लिए मुश्किल हालात खड़े कर सकते हैं. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चिराग ने भले ही कहा हो कि वह चुनाव के बाद एनडीए के साथ सरकार बनाएंगे. लेकिन, 137 सीटों पर चुनाव लड़कर केवल एक सीट पर जीत हासिल करने वाले चिराग के लिए एनडीए की राह कठिन नजर आ रही है.

विधानसभा चुनाव से पहले एलजेपी और भाजपा के बीच 'डील' होने की भी खूब चर्चा रही थी. एलजेपी ने बड़ी संख्या में भाजपा के बागी नेताओं को टिकट दिया था. कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा ने चिराग पासवान के साथ मिलकर जेडीयू को नुकसान पहुंचाने की रणनीति बनाई थी. इसका नुकसान जेडीयू को सीधे तौर पर हुआ भी था. चुनाव के दौरान चिराग पासवान ने जेडीयू और नीतीश कुमार के खिलाफ जमकर हमला बोला था. लेकिन, भाजपा को लेकर वह शांत रहे थे. माना जा रहा था कि नाराज मतदाताओं को महागठबंधन की ओर जाने से रोकने और बिहार में जेडीयू के पर कतरने के लिए भाजपा ने यह रणनीति अपनाई थी. एलजेपी की ये शहादत भाजपा के काम आई थी.

कुल मिलाकर चिराग पासवान के लिए स्थितियां केवल बिहार ही नहीं, दिल्ली (एनडीए नीत केंद्र सरकार) में भी खराब हो गई हैं. मान लिया जाए कि भाजपा और एलजेपी ने रणनीति के तहत काम करते हुए बिहार में नीतीश कुमार का कद घटा दिया है. लेकिन, नीतीश कुमार बिहार में एलजेपी का बड़ा जनाधार अपनी ओर खींचकर पार्टी को हाशिये पर डालने की कोशिशों में जुटे हुए हैं. सीएम नीतीश कुमार आने वाले पांच सालों तक सत्ता में रहेंगे. इस स्थिति में 208 नेताओं का जेडीयू में शामिल होना एक शुरुआत कहा जा सकता है. सत्ता से दूर होने का नुकसान एलजेपी को होना तय है. कहा जा सकता है कि चिराग पासवान ने खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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