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Updated: 11 नवम्बर, 2016 09:00 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिका के प्रसिडेंट इलेक्ट अब दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था (पर्चेसिंग पॉवर पैरिटी) को चलाएंगे. दुनिया की पहली बड़ी अर्थव्यवस्था चीन है. ये दोनों देश एक-दूसरे के बड़े ट्रेडिंग पार्टनर भी है. ग्लोबल ट्रेड इन दोनों देशों के सहारे खड़ा है. इनमें से किसी एक के भी गिरने से दूसरे का गिरना तय है. ट्रंप के व्हाइट हाउस पहुंचने से चीन की कम्युनिस्ट सरकार खुश है कि अब उसके लिए अमेरिका को हैंडल करना बेहद आसान हो चुका है.

पहली बात. चीन में कम्युनिस्ट सरकार है और अमेरिका उसपर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाता रहा है. ट्रंप ने चुनावी वादा किया है कि राष्ट्रपति बनते ही देश में गैरकानूनी शर्णार्थियों को बाहर निकाल देंगे. ऐसा ट्रंप करेंगे तो चीन के ऊपर सवाल उठने बंद हो जाएंगे.

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दूसरी बात, प्रचार के दौरान डोनाल्ड पर महिलायों के साथ अभद्रता का आरोप लगा है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार में शीर्ष पर महिलाओं का नाम ढूंढने पर शायद ही मिले. और चीन की डिप्लोमेसी देखनी हो तो फिल्मों में चाइना टाउन पर गौर कीजिए. ट्रंप जैसे भी हों लेकिन महज आरोपों को देखकर चीन को इतमिनान है कि उसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति को साधना आसान हो गया है.

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 डोनाल्ड ट्रंप को साधना आसान होगा चीन के लिए?

तीसरी बात, चीन वैश्विक व्यापार का सबसे बड़ा खिलाड़ी है. वह तेजी से वन रोड वन बेल्ट परियोजना पर काम कर रहा है. डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी अर्थव्यवस्था को प्रोटेक्शनिस्ट करने का वादा करके चुनाव जीते हैं. वह चाहते हैं कि विकास का पहिया अमेरिका के अंदरूनी इलाकों में पहले घूमे. वह चाहते हैं कि पूर्व के राष्ट्रपतियों की तरह अमेरिका के धन और सामर्थ का इस्तेमाल विदेशी सुपर पॉवर टैग के लिए न किया जाए. वह देश के पिछड़े इलाकों को विकास से जोड़ने को वरीयता देंगे. चीन को इससे ज्यादा खुशी और किस बात से होगी क्योंकि यह तो उसके लिए मैदान खुला छोड़ने जैसा है. उसे अपने वन रोड वन बेल्ट परियोजना को पूरा करने में कोई दिक्कत नहीं होगी.

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और अंत में चौथी बात. अमेरिकी मीडिया जबतक इस नए अमेरिका, ट्रंप वाले अमेरिका या कहें नए रिपब्लिकन को समझेगा, शायद देर हो चुकी होगी. क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप से बेहतर इस मीडिया को कोई नहीं समझता. अब खतरा अमेरिका में मीडिया की स्वतंत्रता पर भी है. चीन और अमेरिका की मीडिया का एक जैसा होने का क्या मतलब? खतरा लोकतंत्र के उस गंदे स्वरूप ‘भीड़तंत्र’ के बाहर आने का भी है. जीत यहां चीन की हुई है. वह कई वर्षों की कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग के बाद देश को नेतृत्व देता है. और अमेरिका जैसे लोकतंत्र में एक कारोबारी को सनक उठती है और वह राष्ट्रपति बन जाता है. वह भी ऐसी पार्टी से राष्ट्रपति बनता है जो रिपब्लिकन है. कंजर्वेटिव हैं. ट्रंप की जीत में जीत चीन की ही है. जिस राह पर ट्रंप चलना चाहते हैं उस राह का एक्सपर्ट तो चीन ही है.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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