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Updated: 23 अगस्त, 2016 09:00 PM
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पंजाब चुनाव में भी 'डीएनए' की एंट्री हो चुकी है. कैप्टन अमरिंदर ने नवजोत सिंह सिद्धू के सामने डीएनए की दुहाई दी है. बिहार चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने DNA की दुहाई दी थी और नीतीश कुमार ने उसका पूरा फायदा उठाया.

आप से उम्मीद

हर बात में दो-दो शेर पढ़ने की कुव्वत रखने वाले नवजोत सिंह सिद्धू कई दिनों से खामोश हैं. लगता है खामोशी के जरिये सस्पेंस कायम रखने की कवायद रंग लाने लगी है.

आखिरी बार उन्होंने चंडीगढ़ में प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में राज्य सभा की सदस्यता छोड़ने की बात समझाई थी, "मैंने राज्‍यसभा से इस्‍तीफा क्‍यों दिया? क्‍योंकि मुझसे कहा गया था कि आप पंजाब की तरफ मुंह नहीं करोगे. मुझसे पंजाब छोड़ने के लिए कहा गया था. आप कहते हो नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब छोड़ कर चला जाए. अरे कसूर तो बताओ. राष्‍ट्रभक्‍त पंछी अपना पेड़ नहीं छोड़ता तो मैं पंजाब कैसे छोड़ सकता हूं."

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सिद्धू का ये बयान आने से पहले ही उनके आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने की खबर मार्केट में आ चुकी थी, लेकिन रहस्य पर से पर्दा तब उठा जब आप नेता अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया. असल में सिद्धू के पंजाब में आप का सीएम उम्मीदवार बनने की चर्चा होने लगी थी.

अपने ट्वीट में केजरीवाल ने सिद्धू को पूरी इज्जत बख्शी, "नवजोत सिंह सिद्धू के आप में आने की काफी अफवाहें उड़ रही हैं. ऐसे में मुझे अपना पक्षा रखना चाहिए. हम सिद्धू की काफी इज्जत करते हैं. वो काफी अच्छे खिलाड़ी रहे हैं. वे पिछले हफ्ते मुझसे मिले थे. उन्होंने पार्टी में शामिल होने को लेकर कोई शर्त नहीं रखी है. उन्हें सोचने के लिए वक्त चाहिए. वो अच्छे इंसान हैं. वह पार्टी ज्वाइन करें या ना करें हम उनकी इज्जत करते रहेंगे."

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गुरु, खामोश रह कर भी...

केजरीवाल के इस ट्वीट के बाद कयास लगाए जाने लगे कि आप ने सिद्धू को चेहरा बनाने की मांग ठुकरा दी है - और बातचीत टूट गई है. फिर सिद्धू के कांग्रेस का हाथ थामने की चर्चा होने लगी.

कांग्रेस के फायदे

अब पंजाब में कांग्रेस के अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू को खुला ऑफर दिया है. कैप्टन ने कहा है, "सिद्धू के भीतर कांग्रेस का डीएनए है. उनके पिता महासचिव रहे हैं और आज भी सदस्य हैं."

कैप्टन ने जोर देकर कहा कि सिद्धू के लिए कांग्रेस के दरवाजे पूरी तरह खुले हुए हैं. चूंकि कैप्टन खुद सीएम कैंडिडेट हैं इसलिए सिद्धू को वो पद तो ऑफर कर नहीं सकते, इसलिए उन्होंने सिद्धू के कद के हिसाब से पोजीशन देने की बात कही है.

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अगर आम आदमी पार्टी सिद्धू को मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं बनाती फिर तो कांग्रेस में चले जाना सिद्धू के लिए फायदेमंद ही रहेगा. आप के किसी नये नवेले की कैबिनेट में मिनिस्टर बनने से तो सिद्धू के लिए बेहतर होगा कैप्टन अमरिंदर की अगुवाई में बनने वाली सरकार का हिस्सा बन जाना, बशर्ते कांग्रेस सत्ता हासिल कर पाये.

कैप्टन अमरिंदर फिलहाल अमृतसर की जिस लोक सभा सीट से सांसद हैं सिद्धू दस साल तक उस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. 2014 में बीजेपी ने सिद्धू को हटा कर अमृतसर से अरुण जेटली को मैदान में उतारा था लेकिन कैप्टन ने उन्हें शिकस्त दे दी. हालांकि, सिद्धू पर इसे लेकर भी उंगली उठी थी, बीजेपी आलाकमान का मानना रहा रहा कि चुनाव में सिद्धू ने खेल कर दिया.

तीसरा रास्ता

मौके और दस्तूर को देखते हुए सिद्धू भले चुप हों. भले ये माना जा रहा हो कि सिद्धू का राजनीतिक कॅरिअर चूक गया हो, लेकिन सिद्धू राजनीति को भी क्रिकेट की तरह खेलना जानते हैं. हो सकता है सिद्धू के कुछ सलाहकार ये भी समझा रहे हों कि राज्य सभा छोड़ कर उन्होंने गलती की, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो आखिरी ओवर की आखिरी बॉल खेल रहे हों.

सिद्धू के सामने एक तीसरा रास्ता भी है - तीसरे मोर्चे का विकल्प. समझाने वाले सिद्धू को ये भी समझा सकते हैं कि तीसरे मोर्चे का क्या हाल होता है बिहार चुनाव में मुलायम सिंह यादव और पप्पू यादव की कोशिशें मिसाल हैं.

सिद्धू अगर पंजाब में तमाम पार्टियों के असंतुष्टों को इकट्ठा करने में कामयाब हो जाएं, तो मुख्यमंत्री भले न बन पाएं कुछ सीटें जीत कर एक प्रेशर ग्रुप खड़ा तक कर ही सकते हैं.

मधु कोड़ा तो निर्दलीय ही चुनाव जीते थे और झारखंड के मुख्यमंत्री बने - किस्मत का क्या न जाने कौन, कब नसीबवाला बन जाए!

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