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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 20 अक्टूबर, 2021 06:17 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पंजाब के मुख्यमंत्री पद से बेइज्जत कर हटाए गए कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) ने कांग्रेस छोड़ने के साथ ही शीर्ष नेतृत्व यानी गांधी परिवार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. माना जा रहा था कि पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 (Punjab Elections 2022) से पहले कांग्रेस नेतृत्व ने अमरिंदर सिंह की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को पहला दलित सीएम बनाकर एक मास्टरस्ट्रोक खेला था. लेकिन, पंजाब कांग्रेस में चल रहा सियासी घमासान थमा नहीं. पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह पर हमलावर रहे पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) ने अब सीएम चरणजीत सिंह चन्नी को निशाने पर लेना शुरू कर दिया है.

गांधी परिवार (Congress) की ओर से संगठन पर ध्यान देने की हिदायत के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब सरकार में खुद को सुपर सीएम साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. इन सबके बीच पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 (Punjab) के मद्देनजर नजर नई पार्टी बनाने और भाजपा (BJP) के साथ गठबंधन करने की घोषणा कर अमरिंदर सिंह ने न केवल कांग्रेस आलाकमान को निशाने पर लिया है. बल्कि, कैप्टन ने पीसीसी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की मुश्किलें भी बढ़ा दी है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की मुश्किलों में कैप्टन ने कांग्रेस की मुश्किलों में 'चार चांद' लगा दिये हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि अमरिंदर सिंह के इस कदम से अब पंजाब का क्या होगा?

Amarinder Singh form alliance with bjpअमरिंदर सिंह ने किसान आंदोलन का हल निकालने के बाद भाजपा से गठबंधन की बात कही है.

किसान आंदोलन को खत्म कराने में भूमिका

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ करीब एक साल से चल रहे किसान आंदोलन की स्थिति फिलहाल किसी से छिपी नहीं है. किसान आंदोलन पूरी तरह से राजनीतिक हो चुका है और उसकी विश्वसनीयता का संकट पैदा हो गया है. सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में निहंगों द्वारा की गई दलित सिख की हत्या के बाद किसान आंदोलन पर प्रश्न चिन्ह लगने लगे हैं. किसान आंदोलन में संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में 40 से ज्यादा किसान संगठन एकजुट होकर प्रदर्शन कर रहे हैं. यहां ये जानना जरूरी है कि मुख्यमंत्री रहते हुए किसान आंदोलन के बीच जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गन्ने का राज्य सहमत मूल्य यानी एसएपी को बढ़ाया था, तो संयुक्त किसान मोर्चा के नेता बलबीर राजेवाल समेत कई किसानों ने उनसे निजी तौर पर मुलाकात की थी. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसान संगठनों की अपनी अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराएं हैं. कहा जा सकता है कि अगर अमरिंदर सिंह पंजाब में सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं, तो यूं ही हवा-हवाई तौर पर तो नहीं ही कर रहे होंगे.

कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास पंजाब की राजनीति में करीब पांच दशकों का सियासी अनुभव है. साढ़े नौ सालों तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे अमरिंदर सिंह के पास राजनीतिक दमखम के साथ ही पारिवारिक रसूख भी है. अमरिंदर सिंह ने पार्टी की घोषणा करने के साथ कहा था कि किसान आंदोलन को खत्म कराने की कोशिशें की जा रही हैं. सीएम पद से इस्तीफे के बाद केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह से मुलाकात के बाद भी कैप्टन ने किसान आंदोलन के हल को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी. किसान आंदोलन का किसानों के हित में हल निकालने की बात के सहारे अमरिंदर सिंह ने साफ संदेश दिया है कि कांग्रेस के सहारे इस आंदोलन का समाधान निकलना नामुमकिन है. अगर किसान आंदोलन का किसी भी तरह से हल निकाल लिया जाए, तो पंजाब में सियासी समीकरण बदलने में देर नहीं लगेगी. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब में कांग्रेस का खेल बिगाड़ने के लिए एमएसपी पर गारंटी कानून जैसा दांव मोदी सरकार की ओर चल दिया जाए.

इस फैसले से किसानों का भरोसा कैप्टन अमरिंदर सिंह पर बढ़ेगा. हो सकता है कि सभी किसानों का भरोसा जीतने में अमरिंदर सिंह कामयाब न हो सकें. लेकिन, दर्जनों किसान संगठनों में से कई अमरिंदर सिंह के संपर्क में हैं. और, ये किसान संगठन चुनाव में कैप्टन के सहारे आंदोलन का हल निकलवाने की सोच को दिमाग में जरूर रखेंगे. पंजाब के लिहाज से देखा जाए, तो किसानों के लिए एमएसपी पर सरकारी खरीद से ज्यादा शायद ही कोई अन्य चीज मायने रखती है. वहीं, कैप्टन ने ये भी कहा है कि पंजाब में केंद्र की मोदी सरकार का विरोध किसान आंदोलन से पहले था ही नहीं. जो इस ओर इशारा करने के लिए काफी है कि राज्य की खेती-किसानी से जुड़ी 75 फीसदी आबादी के सहारे अमरिंदर सिंह सरकार बनाने की कोशिश में कमजोर नहीं दिखेंगे.

भाजपा के साथ गठबंधन से कांग्रेस का नुकसान

लंबे समय तक पंजाब में भाजपा के साथ गठबंधन में रहा अकाली दल कृषि कानूनों का बाद एनडीए से अलग हो गया था. पंजाब में भाजपा हमेशा से ही अकाली दल के साये में रहा है और उससे अलग होने के बाद पार्टी के लिए राज्य में कुछ खास खोने के लिए है नहीं. हिंदूवादी राजनीति के सहारे भाजपा का पंजाब में आगे बढ़ना मुमकिन नहीं है, तो उसे अकाली दल की तरह ही सूबे में एक सहयोगी की जरूरत होगी. हालांकि, अमरिंदर सिंह ने भाजपा के साथ गठबंधन के लिए किसान आंदोलन का किसानों के हित में हल निकलने की शर्त रखी है. लेकिन, अकाली दल से अलग हो चुके सुखदेव सिंह ढींढसा और रणजीत ब्रह्मपुरा के गुट के साथ गठजोड़ करने में अमरिंदर सिंह ने कोई शर्त नहीं रखी है. कहना गलत नहीं होगा कि अमरिंदर सिंह की नई पार्टी कांग्रेस की पंजाब सरकार और संगठन में हिस्सेदारी न दिए जाने से असंतुष्ट नेताओं का नया ठिकाना बन सकता है. तमाम गुटों में बंटी नजर आ रही कांग्रेस में जोड़-तोड़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

पूर्व पंजाब प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ वैसे तो अमरिंदर सिंह के विरोधी माने जाते हैं. लेकिन, नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन के बीच की जंग में 'बलि का बकरा' बनाए जाने से लगातार नाराज चल रहे हैं. सुनील जाखड़ ने नवजोत सिंह सिद्धू से लेकर सीएम चरणजीत सिंह चन्नी को सवालों के घेरे में लेने का कोई मौका नहीं छोड़ा है. राजनीति में किसी भी तरह की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. अगर एमएसपी कानून सरीखे किसान हित वाले फैसलों के चलते अमरिंदर सिंह का भाजपा के साथ गठबंधन हो जाता है, तो कैप्टन की सियासी ताकत को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है. क्योंकि, अमरिंदर सिंह इस विधानसभा चुनाव में सहानुभूति वोट बटोरने की भी पूरी कोशिश करेंगे. जो केवल कांग्रेस के लिए ही मुश्किलें खड़ी करेगा.

Amarinder Singh New Partyअमरिंदर सिंह न केवल राहुल गांधी से लेकर नवजोत सिंह सिद्धू तक के लिए मुसीबत खड़ी करेंगे.

राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष की डगर में बड़ा रोड़ा

हाल ही में हुई कांग्रेस की केंद्रीय कार्यसमिति की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को लेकर खबर सामने आई थी कि अगले साल सितंबर में इस पद पर चुनाव हो सकते हैं. केंद्रीय कार्यसमिति की इस बैठक में इस बात की पूरी संभावना जताई गई थी कि राहुल गांधी को एक बार फिर से कांग्रेस अध्यक्ष पद पर लाने की बात कही जाएगी. और, पार्टी के नेताओं ने इसे लेकर प्रस्ताव पारित भी कर दिया. हालांकि, राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सीधे तौर पर हामी न भरते हुए इस प्रस्ताव पर विचार करने की बात कही थी. सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि राहुल गांधी अगले साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालने के लिए तैयार नही हैं. अगले साल पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव होने हैं. इनमें से केवल एक राज्य पंजाब में ही कांग्रेस सत्ता में है. 2024 में साझा विपक्ष का नेतृत्व करने की हसरत लिए आगे बढ़ रहे राहुल गांधी पर इन चुनावों में दमदार प्रदर्शन करने का राजनीतिक दबाव है.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में पूरी ताकत लगाकर पार्टी में नई जान फूंकने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में प्रियंका गांधी कितनी भी मेहनत कर लें, सूबे में मृतप्राय हो चुकी कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत ज्यादा सुधार नहीं पाएंगी. हो सकता है कि कांग्रेस की विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ जाए. लेकिन, यह इतनी भी नहीं होगी कि उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई जा सके. उत्तराखंड कांग्रेस में सियासी गुटबाजी को खत्म करने के लिए कोई खास कोशिश नहीं की जा रही है. हालांकि, दलित समुदाय में व्यापक पैंठ रखने वाले यशपाल आर्य की कांग्रेस में घर वापसी के सहारे माहौल को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश की जा रही है. लेकिन, विधानसभा चुनाव के बाद अगर नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आते हैं, तो इस बात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि पंजाब की तरह यहां भी यशपाल आर्य दलित सीएम बनाने की मांग पर अड़ जाएं. मणिपुर और गोवा में चुनाव विधानसभा चुनाव जीतने का राष्ट्रीय राजनीति में कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है.

अमरिंदर सिंह के नई पार्टी बनाने की घोषणा के बाद पंजाब में आतंरिक खींचतान और गुटबाजी से जूझ रही कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करना इतना आसान नहीं रह जाएगा. पंजाब, उत्तराखंड में जीत के सहारे कांग्रेस अध्यक्ष पद पर काबिज होने की राह देख रहे राहुल गांधी के लिए ये किसी झटके से कम नहीं होगा. अगर किसी भी स्थिति में पंजाब में कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब नहीं हुई, तो इसका पूरा ठीकरा अपने आप ही राहुल गांधी के सिर पर फूटेगा. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि पंजाब में कांग्रेस को सत्ता में लाने का श्रेय अमरिंदर सिंह को ही जाता है.

कठघरे में कांग्रेस की विचारधारा

कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब की राजनीति से बहुत अच्छी तरह से परिचित हैं. उन्होंने पंजाब के अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े होने की बात के सहारे अपनी राष्ट्रवादी सोच को फिर से उभारने की कोशिश की है. दरअसल, कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व की ओर से मोदी-विरोध में इस बात का ध्यान नहीं दिया जाता है कि उनके बयान देश के खिलाफ माहौल बनाने वाले दिख रहे हैं. लेकिन, अमरिंदर सिंह ने धारा 370 से लेकर चीन के साथ सीमा पर चल रहे तनाव तक हर राष्ट्रीय मुद्दे पर राजनीति से ऊपर देश को अहमियत दी है. जो कहीं न कहीं कांग्रेस की विचारधारा को कटघरे में खड़ा करता है. अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू को पहले ही पाकिस्तान का करीबी घोषित किया हुआ है. पंजाब में ड्रग्स से लेकर हथियारों तक की खेंप पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से ही आती है. इन तमाम मुद्दों पर अमरिंदर सिंह मुखरता से अपनी बात रखते रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अमरिंदर सिंह के पंजाब के साथ ही देश भी महत्वपूर्ण है. सिंघु बॉर्डर पर पंजाब के दलित युवक की हत्या पर अमरिंदर सिंह ने निहंगों को कटघरे में खड़ा करने में भी बिल्कुल भी वक्त नहीं लगाया. यहां तक उन्होंने खालिस्तानी आतंकी स्लीपर सेल के जरिये पंजाब का माहौल बिगाड़ने की कोशिश पर भी चिंता जताई. अगर ये कहा जाए कि अमरिंदर सिंह किसी भी गलती के कवर-अप से ज्यादा उसका बातचीत से हल निकालने के हिमायती हैं, तो गलत नहीं होगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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