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Updated: 01 अक्टूबर, 2021 08:15 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कांग्रेस आलाकमान (Gandhi Family) द्वारा अपमानित होकर पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) ने आखिरकार कांग्रेस (Congress) छोड़ने का फैसला ले लिया है. अमरिंदर सिंह ने अपने ट्विटर बायो से भी कांग्रेस पार्टी का नाम हटा दिया है. इसके साथ ही कैप्टन ने ये भी घोषणा कर दी है कि वो भाजपा (BJP) में शामिल नहीं होंगे. दरअसल, अमरिंदर सिंह के सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद से ही उनके भाजपा में जाने की अटकलों का दौर शुरू हो गया था. वहीं, अपने हालिया दिल्ली दौरे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मुलाकात के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह के भाजपा में शामिल होने के कयासों को और ज्यादा बल मिल गया था. अमरिंदर सिंह के मीडिया एडवाइजर रवीन ठुकराल ने कैप्टन की ओर से बयान जारी करते हुए कहा कि वह भाजपा में शामिल होने नहीं जा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस छोड़ दूंगा. ऐसी पार्टी में नहीं रह सकता जहां मेरा अपमान हुआ और भरोसा नहीं किया गया.

कैप्टन अमरिंदर सिंह के ऑफिस की ओर से जारी बयान में कहा गया कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को पूरी तरह से नजरअंदाज किए जाने से कांग्रेस पतन की ओर जा रही है. आसान शब्दों में कहें, तो अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस आलाकमान पर आरोपों की झड़ी लगा दी है. इस बात में कोई दो राय नही है कि पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की वजह से ही कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत के सुर बुलंद हुए. क्योंकि, साढ़े नौ साल तक पंजाब (Punjab) के मुख्यमंत्री रहे अमरिंदर सिंह ने प्रदेश कांग्रेस में आंतरिक गुटबाजी को कभी बढ़ने नहीं दिया. वहीं, ये बात तय थी कि इस तरह अपमानित कर मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने पर मिलने वाली सहानुभूति को कैप्टन इतनी आसानी से भाजपा में शामिल होकर खत्म नहीं कर सकते थे. लेकिन, इन तमाम बातों के बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि अमरिंदर सिंह ने भाजपा में शामिल न होने का फैसला अमित शाह से मिले बिना लिया होता, तो ज्यादा भरोसेमंद होता.

पंजाब कांग्रेस का सबसे वरिष्ठ नेता होने के नाते कैप्टन का प्रभाव और लोकप्रियता केवल पार्टी संगठन तक ही सीमित नहीं है.पंजाब कांग्रेस का सबसे वरिष्ठ नेता होने के नाते कैप्टन का प्रभाव और लोकप्रियता केवल पार्टी संगठन तक ही सीमित नहीं है.

पंजाब का सबसे पुराना 'ओल्ड गार्ड'

करीब चार दशक से राजनीति में सक्रिय रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह की पाकिस्तान की सीमा से सटे पंजाब की सियासी नब्ज को बहुत अच्छी तरह से पहचानने वाले नेता है. पंजाब कांग्रेस का सबसे वरिष्ठ नेता होने के नाते कैप्टन अमरिंदर सिंह का प्रभाव और लोकप्रियता केवल पार्टी संगठन तक ही सीमित नहीं है. नवजोत सिंह सिद्धू ने अमरिंदर सिंह पर लाख आरोप लगाए हों, लेकिन लोकप्रियता और प्रभाव के मामले में सिद्धू आज भी अमरिंदर सिंह के आगे कही नहीं ठहरते हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कैप्टन के सीएम पद से इस्तीफे के बाद जब पंजाब में कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री बनाने की कवायद शुरू की, तो उम्मीदवारों में सुनील जाखड़ और सुखजिंदर सिंह रंधावा के बाद सबसे ज्यादा 12 वोट अमरिंदर सिंह की पत्नी और कांग्रेस सांसद परनीत कौर के नाम पर पड़े थे. वहीं, पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को केवल पांच वोट ही मिले थे. जिसकी वजह से कांग्रेस आलाकमान को मजबूरी में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था.

खैर, कांग्रेस आलकमान यानी गांधी परिवार के खिलाफ बगावत और पार्टी के असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं के समूह जी-23 का समर्थन कर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि कांग्रेस से अब उनका नाता ज्यादा लंबा चलने वाला नहीं है. अब केवल ये देखना बाकी है कि पहले कैप्टन कांग्रेस छोड़ते हैं या फिर गांधी परिवार उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाता है. खैर, मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद से ही माना जा रहा था कि अमरिंदर सिंह नई पार्टी बनाकर कांग्रेस को न सही लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू को धूल चटाने का प्लान बना चुके हैं. क्योंकि, उन्होंने कहा था कि वह नवजोत सिंह सिद्धू को हराने के लिए उनके खिलाफ एक मजबूत उम्मीदवार खड़ा करेंगे. इसके साथ ही उन्होंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को अनुभवहीन बताते हुए कहा था कि उनके सलाहकार इस जोड़ी को गुमराह कर रहे हैं.

'विकल्प' पर विचार थोड़ा लंबा चलेगा

विकल्पों की बात की जाए, तो कैप्टन अमरिंदर सिंह के गेम प्लान (Punjab Election) से कहीं न कहीं कांग्रेस अभी पूरी तरह से बाहर नहीं हुई है. अगर समय रहते गांधी परिवार की नई पीढ़ी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की सलाह मानने की इच्छा जग जाती है, तो शायद अमरिंदर सिंह समेत कई पुराने कांग्रेस नेताओं की घरवापसी हो सकती है. लेकिन, इस बात की संभावना कम ही मानी जा सकती है. क्योंकि, पर्दे के पीछे से कांग्रेस पार्टी के लिए फैसले ले रहे राहुल गांधी देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल को एक अलग ही रूप देने की ओर बढ़ चले हैं, जो अल्ट्रा सेकुलर और वामपंथी झुकाव रखने वाला बनने की ओर अग्रसर है. खैर, अमरिंदर सिंह अगर नई पार्टी के साथ चुनावी मैदान में आते हैं, तो उनके लिए स्थितियां बहुत माकूल नहीं होंगी. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि उन्हें कांग्रेस के साथ ही अकाली दल-बसपा गठबंधन और आम आदमी पार्टी से भिड़ना होगा.

अपने एक हालिया बयान में कैप्टन खुद कहते हुए नजर आते हैं कि पंजाब की जनता एकमत होकर किसी एक पार्टी को जिताने के लिए ही वोट करती है. अगर अमरिंदर सिंह अमित शाह से मुलाकात न करते, तो बहुत हद तक संभावना था कि उनकी नई पार्टी को भरपूर जनसमर्थन मिल सकता था. क्योंकि, लोग नवजोत सिंह सिद्धू के बार-बार के सियासी ड्रामे से भी थक चुके हैं. और, इसकी वजह से कांग्रेस को अच्छा-खासा नुकसान पहुंच चुका है. वहीं, किसान आंदोलन की बात करें, तो कैप्टन अमरिंदर सिंह शुरूआत से ही इसके सबसे बड़े समर्थक रहे हैं. तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ अमरिंदर सिंह ने अपनी आवाज को कभी भी कमजोर नहीं पड़ने दिया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद भी कैप्टन ने यही बयान जारी किया कि किसान आंदोलन को लेकर चर्चा की. कृषि कानूनों को समाप्त करने और एमएसपी पर गारंटी के साथ हल निकालने का अनुरोध किया.

दरअसल, पंजाब की 75 फीसदी आबादी सीधे तौर पर कृषि पर निर्भर है. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हर मौके पर किसानों का समर्थन किया था. इतना ही नहीं बीते महीने ही उन्होंने गन्ने का राज्य समर्थन मूल्य यानी एसएपी भी बढ़ाया था. जिसके बाद किसानों ने अमरिंदर सिंह की जमकर तारीफ की थी. किसान आंदोलन पर खालिस्तानी समर्थक होने के आरोपों पर कैप्टन ने मोदी सरकार से लेकर हरियाणा के अपने समकक्ष मनोहर लाल खट्टर तक को जमकर आड़े हाथों लिया था. अगर अमरिंदर सिंह भविष्य में कांग्रेस छोड़ने के बाद कोई सियासी दल बनाते हैं, तो निश्चित तौर पर उन्हें किसानों का समर्थन मिलेगा. लेकिन, अमित शाह से मुलाकात के बाद इस समर्थन की नींव दरक सकती है. हालांकि, उन्होंने अमित शाह की साथ की गई मुलाकात के बाद 'डैमेज कंट्रोल' के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की है. लेकिन, इसका उन्हें कोई खास फायदा होता नजर नहीं आ रहा है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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