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Updated: 05 अगस्त, 2016 05:11 PM
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योगेंद्र यादव ने अभी अपनी नयी पार्टी का नाम नहीं बताया है - इसलिए अभी उसे 'आप 2.0' मान कर चला जा सकता है. नयी पार्टी के गठन की घोषणा 2 अक्टूबर को होनी है.

योगेंद्र यादव ग्रुप का दावा रहा है कि आम आदमी पार्टी उस मकसद से पूरी तरह भटक गई जिसको लेकर उसकी स्थापना की गई थी. नयी पार्टी उसी मकसद को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगी, लेकिन क्या ये सब इतना आसान है?

केजरीवाल के अधूरे ख्वाब

राजनीति के चलते रामलीला आंदोलन के आखिरी दौर में टीम अन्ना में दो फाड़ हो गया था. राजनीतिक पार्टी बनाने के नाम पर अन्ना हजारे और किरण बेदी सहित कई लोगों ने उस ग्रुप से दूरी बना ली जो अरविंद केजरीवाल के आइडिया से इत्तेफाक रखता था. बाद में उसे टीम केजरीवाल भी कहा जाने लगा.

टीम केजरीवाल में योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण प्रमुख सदस्य रहे जिन्होंने अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर एक खूबसूरत सियासी सपना देखा. कुछ ही महीनों में सपने देखने का तरीका बदलने लगा क्योंकि ऐसे लोगों की तादाद बढ़ने लगी. नया नया सपने देखने वाले इतने असरदार हो गये कि पुराने लोगों को किनारे लगा दिया.

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नतीजा ये हुआ कि जो सपने अरविंद केजरीवाल, योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने देखे थे - वे अधूरे रह गये. आम आदमी पार्टी से निकाले जाने के बाद भी योगेंद्र यादव लगातार एक्टिव रहे और पिछले साल - 14 अप्रैल, 2015 को 'स्वराज अभियान' नाम से एक नया संगठन बनाया था. स्वराज अभियान को ही अब राजनीतिक शक्ल देने की कोशिश है. स्वराज अभियान के नेताओं का कहना है कि देश के छह राज्यों और 100 से ज्यादा जिलों में संगठन की चुनी हुई यूनिट खड़ी की जा चुकी है.

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अधूरे ख्वाबों का संघर्ष...

नई पार्टी बनाने की घोषणा के वक्त योगेंद्र यादव ने कहा, "मैंने चार साल पहले भी ऐसा ही राजनीतिक स्वच्छता को लेकर एक सपना देखा था, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने उस पार्टी को वन मैन शो बनाकर रख दिया."

मकसद वही, कोशिश नई

आम आदमी पार्टी की स्थापना व्यवस्था परिवर्तन के मकसद से हुआ था जिसमें सबसे ऊपर जनलोकपाल का गठन रहा और भ्रष्टाचार मुक्त शासन देना. लेकिन केजरीवाल के मिशन मोदी-मोदी के शोर में बाकी चीजें लगता है मीलों पीछे छूट गयी हैं.

योगेंद्र यादव की बातों से अभी तो यही लग रहा है कि वो खास सोच वाले लोगों के साथ मिल कर उसी अधूरे सपने को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं.

योगेंद्र यादव कहते हैं, ''हमारे पार्टी बनाने का मतलब है कि देश में सच्चे और ईमानदार लोग जहां भी मिलेंगे उन्हें जोड़ना होगा - और ऐसे लोगों को एक साथ जोड़कर हम वैकल्पिक राजनीति की मिसाल पेश करेंगे.''

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वैसे यादव ने स्वराज अभियान के जरिये इसे साफ करने की कोशिश भी की है. नई पार्टी में भी पारदर्शिता बनी रहे ये सोच कर स्वराज अभियान को पहले से ही RTI के दायरे में रखा है - और इसके लिए एक जन सूचना अधिकारी की भी नियुक्ति की गयी है.

योगेंद्र यादव गुट का मानना रहा कि आम आदमी पार्टी में आंतरिक लोकपाल नाम मात्र का रह गया था, इसलिए जवाबदेही के लिए स्वराज अभियान में आंतरिक लोकपाल बनाया गया है जिसके तीन सदस्य - कामिनी जायसवाल, सुमित चक्रवर्ती और नूर मोहम्मद है.

चुनौतियां हजार हैं

केजरीवाल के ख्वाब अधूरे रह गये हों या उन्होंने अपने ख्वाब मॉडिफाई कर लिये हों या फिर उनके असली ख्वाबों की तब किसी को हवा ही नहीं लगी हो. ऐसा भी तो हो सकता है कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को साथ लेने के लिए केजरीवाल मिल कर सपने देखने की बात किये हों - जबकि असल में उनकी कोई और रणनीति रही हो.

संभव है ऐसा ही अन्ना हजारे के साथ आंदोलन की रणनीति करने वक्त भी बातें हुई हों. क्योंकि उस वक्त अन्ना हो साथ लेना था. बहरहाल, अगर योगेंद्र यादव उस अधूरे ख्वाब को पूरा करने का इरादा रखते हैं तो उनके सामने हजार चुनौतियां मुहं फैलाये खड़ी हैं. सबसे बड़ी समस्या एक चेहरे की है.

किसी दौर में केजरीवाल के सामने भी ये समस्या खड़ी हुई, तभी उन्होंने अन्ना को आंदोलन का फेस बनने के लिए राजी किया - और उनके साथ साथ बाकियों को भी जोड़ा. तब की बात और थी. धीरे धीरे वो वक्त भी आया जब केजरीवाल खुद भी एक भरोसे का चेहरा बन गये. ऐसा नहीं कि रामलीला आंदोलन से पहले केजरीवाल कोई अजनबी थे, रमन मैगसेसे अवॉर्ड विजेता सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में लोग उन्हें अच्छे से जानते थे.

लेकिन इन सबके बावजूद केजरीवाल क्राउड पुलर नहीं थे - आज वही स्थिति योगेंद्र यादव के साथ है. टीवी पर लोग उनकी बाइट चले तो चैनल उनकी बात पूरी होने के बाद ही बदलेंगे. अगर किसी सेमिनार में या पब्लिक मीटिंग में उनका भाषण चल रहा हो तो लोग पूरी शिद्दत से सुनेंगे - लेकिन उनके नाम पर भीड़ भी जुट पाएगी कहना मुश्किल होगा.

यानी योगेंद्र यादव, प्रशांत किशोर और प्रोफेसर आनंद को सबसे ज्यादा एक अन्ना हजारे की दरकार है - भले ही वो अन्ना हजारे ही क्यों न हों, एक बार फिर से.

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