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Updated: 18 अगस्त, 2016 10:18 PM
अशोक उपाध्याय
अशोक उपाध्याय
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21 जून को पूर्वांचल के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय के बाद सपा में भूचाल पैदा हो गया है. सपा के प्रांतीय प्रभारी और यूपी के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने इस विलय में बढ़-चढ़ के हाँथ बंटाया था और कौमी एकता दल के अध्यक्ष अफजाल अंसारी के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस विलय का औपचारिक ऐलान कर दिया. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नाराजगी जाहिर करते हुए इस विलय के मीडिएटर बलराम सिंह यादव को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया. फिर बोले 'हम मुख्तार जैसों को पार्टी में नहीं चाहते.' फिर सपा की सेंट्रल पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में फैसला हुआ है कि कौमी एकता दल का सपा में विलय नहीं होगा.

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कुछ दिनों के बाद बलराम यादव फिर से मंत्री बन गए. उसके बाद शिवपाल ने कहा, की अब तो अधिकारी तक मेरी बात नहीं मानते. इससे मैं बहुत दुखी हूं. पार्टी के लोग लगातार बेईमानी, अवैध कब्जा और लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं. अगर यह सब बंद नहीं हुआ तो मैं मंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा. शिवपाल के इस्तीफे की ‘धमकी’ के बाद मुलायम सिंह ने बीच में आते हुए अखिलेश के मंत्रियों को डांट लगाई, उन्होंने कहा कि अगर शिवपाल सिंह यादव हटे तो पार्टी की ऐसी-तैसी हो जाएगी.

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अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव

अब खबर आ रही है की कलह को शांत करने के लिए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भाई शिवपाल की बात मानते हुए एक बार फिर कौमी एकता दल का सपा में विलय कर सकते हैं. कौमी एकता दल पूर्वांचल के कुछ जिलों में खासा प्रभाव रखने वाला दल माना जाता है. पिछले विधान सभा चुनाव में इस दल ने 43 सीट पे अपने उम्मीदवार उतारे थें पर इसको केवल 2 जगह पर सफलता मिली थी.

मुख्तार अंसारी के पार्टी के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी का प्रथम परिवार के प्रमुख सदस्य लगता है दो-दो हाथ करने को भी तैयार हैं. शिवपाल सिंह यादव की नजर इसके मुस्लिम वोट बैंक पर थी और अखिलेश की नजर मुख़्तार अंसारी के अपराधिक इतिहास पर. चाचा शिवपाल पार्टी के वोट बढ़ाने की सोच रहें हैं तो भतीजा अपनी छवि सुधारने पर. दोनों ने इसको अपने मूंछ की लड़ाई भी बना लिया है. चाचा भतीजा की इस लड़ाई में मुलायम अब परोक्ष रूप से अपने भाई के साथ खड़े दिख रहे हैं. तो चाचा का विजयी होना अवस्यम्भावी लगता है.

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लेकिन क्या इस विलय से सपा को फायदा होगा? पार्टी का इतिहास बताता है की ऐसा बिलकुल नहीं होगा. 2012 चुनाव से ठीक पहले, शिवपाल यादव ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक बड़े माफ़िया डीपी यादव को इसी तरीक़े से पार्टी में शामिल किया था. इस फ़ैसले के अगले ही दिन अखिलेश यादव ने इसका ज़बरदस्त विरोध किया और पार्टी को इस फ़ैसले को वापस लेना पड़ा. लोगों में सन्देश गया की अखिलेश के समाजवादी पार्टी में अपराधी प्रव्रिति के लोगों के लिए कोई जगह नहीं है. इसके चलते सपा 2012 के विधान सभा चुनाव में अपनी सर्वश्रेठ प्रदर्शन कर पाई. पर उनके शासनकाल में आपराधिक पृस्ठभूमि के नेताओं को प्रश्रय दिया गया साथ ही साथ सरकार अपराध रोकने में भी विफल रही. ये छवि धूमिल होती गई. अगर मुख़्तार अंसारी की पार्टी का सपा में विलय हो जाता है तो ये छवि और तार-तार हो जाएगी. मुख़्तार अंसारी के खिलाफ 15 आपराधिक मामले लंबित हैं जिनमे से 4 हत्या के प्रयास के मामले हैं.

रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है की जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है. लगता है की सपा के इस महाभारत में विवेक को ताक पर रख दिया गया है. अगर समाजवादी पार्टी ये कदम बढाती है तो वह शायद ही अपनी सत्ता बचा पायगी. रावण को भी लगता था की वो अपराज्य है पर जब उसका विवेक मर गया तो उसकी भी लंका नहीं बची. तो क्या समाजवादी पार्टी अपनी सत्ता रूपी लंका को जलने से बचा पायेगी?

लेखक

अशोक उपाध्याय अशोक उपाध्याय @ashok.upadhyay.12

लेखक इंडिया टुडे चैनल में एडिटर हैं.

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