New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 11 मार्च, 2022 05:59 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
  • Total Shares

यूपी चुनाव नतीजे तकरीबन साफ हो चुके हैं. और, सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में दो-तिहाई सीटें पाकर भाजपा सत्ता में वापसी कर रही है. लेकिन, यूपी चुनाव 2022 की राह भाजपा के लिए इतनी आसान नहीं रही है, जितनी यूपी चुनाव नतीजों में नजर आ रही है. दरअसल, इस बार के यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में सीधी सियासी जंग भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच ही रही. और, समाजवादी पार्टी ने जातीय समीकरणों को साधने के लिए गठबंधन का दांव खेला. साथ ही साथ लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचले जाने की घटना, हाथरस रेप कांड, उन्नाव रेप कांड और सोनभद्र में दलित नरसंहार के मामलों को पुरजोर तरीके से उठाकर योगी आदित्यनाथ सरकार को घेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी.

आसान शब्दों में कहा जाए, तो इन सभी मामलों के सहारे समाजवादी पार्टी समेत पूरे विपक्ष ने भाजपा की योगी सरकार को बैकफुट पर लाने की कोशिश की. लेकिन, इन सीटों पर सामने आए नतीजों ने कहानी को पूरी तरह से बदल दिया है. लखीमपुर खीरी की सभी आठों सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है. वहीं, हाथरस की तीन विधानसभा सीटों में से दो पर जीत दर्ज की है. भाजपा इस जिले की जो एक सादाबाद सीट हारी है, वह पिछले विधानसभा चुनाव में भी नहीं जीत सकी थी. उन्नाव जिले की 6 विधानसभा सीटों में से 6 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की है. वहीं, सोनभद्र जिले की चारों सीटों पर भी भाजपा ने जीत हासिल की है. ये चुनाव नतीजे पूरी तरह से चौंकाने वाले माने जा सकते हैं. क्योंकि, इन जिलों में सियासी माहौल पूरी तरह से भाजपा के खिलाफ नजर आ रहा था.

BJP win lakhimpur kheri unnao sonbhadra hathrasसीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा ने इन जिलों में एक नई ही कहानी गढ़ दी.

लखीमपुर खीरी ने किसान विरोधी छवि को तोड़ा : पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैले किसान आंदोलन का असर तराई क्षेत्र लखीमपुर खीरी में फैला था. दरअसल, इस क्षेत्र को सिख आबादी के लिहाज से मिनी पंजाब के नाम से जाना जाता है. साथ ही यहां किसानों की संख्या भी काफी ज्यादा है. लखीमपुर खीरी में किसान आंदोलन को एक निर्णायक मुद्दा माना जा रहा था. क्योंकि, प्रदर्शन कर रहे किसानों पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे मोनू के द्वारा कथित तौर पर कार चढ़ा देने के आरोपों से भाजपा नेतृत्व यहां बुरी तरह से जूझ रहा था. हालांकि, योगी आदित्यनाथ सरकार के तत्काल एक्टिव मोड में आने से इस घटना का से माहौल नहीं भड़का. हालांकि, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से लेकर तमाम पार्टियों के नेताओं ने वहां जाकर 'आग में घी डालने' में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन, लखीमपुर खीरी की सभी सीटों पर मिली जीत दिखाती है कि किसानों के लिए किसान आंदोलन कोई मुद्दा था ही नहीं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो किसान सत्तारूढ़ दल भाजपा के साथ ही खड़े दिखे.

हाथरस ने महिला विरोधी छवि को किया ध्वस्त : हाथरस में दलित लड़की के साथ हुई रेप और हत्या मामले में पुलिस-प्रशासन ने मामले को संभालने की हरसंभव कोशिश की. लेकिन, लखीमपुर खीरी की तरह ही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने हाथरस पहुंचकर इस मामले को योगी सरकार की महिला विरोधी छवि बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया. आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद रावण ने भी माहौल बिगाड़ने के पूरे प्रयास किए. लेकिन, योगी सरकार की तत्परता से मामला शांत बना रहा. और, कानून-व्यवस्था पूरी तरह से कंट्रोल में रही. एक इंटरव्यू में खुद योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 'प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के नाते मेरा काम वहां भड़क सकने वाले माहौल को रोकना था. नाकि, इस मामले पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना. कानून ने अपना काम किया था. और, दोषी जेल में हैं.'

उन्नाव में कानून-व्यवस्था पर अडिग दिखी भाजपा : उन्नाव जिले के बहुचर्चित रेप कांड की पीड़िता की मां आशा सिंह को कांग्रेस ने यूपी चुनाव 2022 में प्रत्याशी के तौर पर उतारा था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो उन्नाव रेप कांड को भी भाजपा के साथ जोड़कर विपक्षी दलों ने राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की. क्योंकि, उन्नाव रेप मामले में आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर भाजपा के पूर्व विधायक रहे हैं. खैर, इस मामले में भी योगी सरकार निष्पक्ष तरीके से कानून के रास्ते पर आगे बढ़ी. और, कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर एक फिर खुद को कही ज्यादा मजबूत साबित किया. कहीं न कहीं उन्नाव रेप मामले में आगे की कार्रवाई में किसी भी तरह की हीला-हवाली न करने से महिला विरोधी और अपराधियों का साथ देने वाले जैसे आरोप हवा हो गए.

सोनभद्र ने नकारा दलित विरोधी नैरेटिव : भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की ओर से हमेशा से ही ये नैरेटिव तैयार किया गया है कि पार्टी दलित विरोधी रही है. बात अखिलेश यादव की हो या प्रियंका गांधी की, ये दोनों ही नेता भाजपा पर दलितों का शोषण करने के आरोप लगाते रहे हैं. 2019 में सोनभद्र जिले के उम्भा गांव में 112 बीघे जमीन को लेकर दबंगों की ओर से की गई अंधाधुंध फायरिंग में 11 आदिवासियों की मौत के मामले पर भी जमकर राजनीति की गई थी. घटना के बाद कांग्रेस की यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी पीड़ित परिवारों से मिलने पहुंची थीं. इस नरसंहार के बाद योगी सरकार ने पीड़ितों के न्याय दिलाने में कमी नहीं रखी. इतना ही नहीं, योगी सरकार ने मृतक आश्रितों से लेकर घायलों तक को अलग-अलग मदों में आर्थिक सहायता दी थी. साथ ही गांव के विकास के लिए 340 करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया था. गांव में हर परिवार को 10-10 बीघा जमीन का पट्टा, आवास, शौचालय, बिजली, पेयजल के तमाम योजनाएं दी गईं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो शोषित वर्ग तक कल्याणकारी योजनाओं को पहुंचाकर भाजपा ने इस नैरेटिव को खत्म किया है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय