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Updated: 26 नवम्बर, 2019 06:19 PM
सुजीत कुमार झा
सुजीत कुमार झा
  @suj.jha
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महाराष्ट्र की राजनीति का असर बिहार पर भी पड़ सकता है. आने वाला समय में बीजेपी और आरजेडी एक सरकार में शामिल हों इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है. हांलाकि इसपर राजनैतिक जानकार कहते हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है, कुछ भी हो सकता है. लेकिन बिहार में बीजेपी और आरजेडी एक होंगे तो दोनों की राजनीति पर इसका असर पड़ेगा. फिलहाल जिन विचारधाराओं को लेकर दोंनों पार्टियों में मेल नहीं हो सकता उसमें सबसे प्रमुख है कि बीजेपी आरजेडी को भ्रष्टाचारी पार्टी मानती है लेकिन महाराष्ट्र में एनसीपी के नेता अजित पवार से गठजोड़ के बाद यह कोई मुद्दा नहीं है. रही बात आरजेडी के बीजेपी को साम्प्रदायिक पार्टी कहने की, तो इसमें कुछ समय जरूर लग सकता है. लेकिन देश के हालात को देखते हुए यह ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता. क्योंकि इसका उदाहरण बिहार में ही केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी से लिया जा सकता है.

तभी तो महाराष्ट्र की राजनीति पर तेजस्वी यादव ने अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार दी है कि बिहार में भी रातों रात सत्ता परिवर्तन हुआ था. तेजस्वी यादव ने कहा कि 'अगर हम नीति और सिद्धांतों के साथ समझौता कर लेते तो आज सुशील मोदी जिस पद पर हैं उसी पद पर होते और राजद का कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री होता, लेकिन मैंने और मेरी पार्टी ने सिद्धांत और नीति से समझौता नहीं किया.' समझौता नहीं किया लेकिन प्रयास तो चल रहा था उस समय की जो परिस्थियां थीं तभी तो नीतीश कुमार ने रातों रात सरकार बनाने का दावा पेश किया था.

bihar politicsराजनीति में विचारधारा और सिद्धांत राजनैतिक दल अपनी अपनी सुविधा के अनुसार तय करते हैं

बिहार में भ्रष्ट्राचार के मुद्दे को लेकर ही नीतीश कुमार ने आरजेडी का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी. उस समय तेजस्वी यादव पर कई शेल कम्पनियों के मालिक होने, आय से अधिक सम्पति और बेनामी सम्पति रखने आरोप लगे थे. सीबीआई की रेड भी पड़ी, ईडी का केस भी हुआ लेकिन इन मामलों के ढाई साल गुजर जाने के बाद भी अभी तक कुछ नहीं हुआ. इन मामलों में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और उनकी बेटी तथा राज्यसभा सासंद मीसा भारती भी आरोपी हैं.

नीतीश कुमार ने तब के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से पब्लिक डोमेन में अपना पक्ष रखने के लिए कहा था लेकिन तेजस्वी यादव ने भ्रष्ट्राचार के मुद्दे को लेकर कभी अपनी सफाई नहीं दी. उनका यही कहना था कि उनके परिवार को फंसाया जा रहा है. और इस पूरे प्रकरण में वर्तमान उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का बहुत बड़ा हाथ था. लगातार प्रेस कान्फ्रेंस करके लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के द्वारा भ्रष्टाचार से अर्जित अकूत बेनामी सम्पति का पर्याप्त प्रमाण और दस्तावेज के साथ उजागर किया. जिसकी वजह से सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल कर दी और ईडी ने भी लालू परिवार के 29 भूखंडों को जब्त कर लिया था.

लेकिन इसके बाद से इस मामले की रफ्तार धीमी हो गई, या कर दी गई. आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के चारा घोटाले मामले में जमानत पर छूटने की पूरी संभावना बन रही है. माना जा रहा है कि बीजेपी का एक धड़ा लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार की भरपूर मदद कर रहा है ताकि नीतीश कुमार को काबू में रखा जा सके. बीजेपी की शर्त यही है कि अगर किसी कारणवश जेडीयू बीजेपी से अलग होती है तो आरजेडी जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव न लड़ सके. क्योंकि इन दोनों के मिलकर चुनाव लड़ने से बीजेपी कमजोर हो जाती है, जैसा कि 2015 के विधानसभा चुनाव में हुआ था.

राजनीति में विचारधारा और सिद्धांत राजनैतिक दल अपनी अपनी सुविधा के अनुसार तय करते हैं. सांप्रदायिक पार्टी शिवसेना कांग्रेस के साथ मिलते ही सेकुलकर हो जाती है. और कोई भ्रष्टाचार का चाहे कितना भी बड़ा आरोपी हो बीजेपी के साथ चला गया तो वो साधु हैं. और ये सिर्फ महाराष्ट्र की कहानी नहीं है बल्कि पूरे देश में राजनैतिक दलों का यही हाल है.

नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के आरोपी लालू यादव से समझौता किया लेकिन उनके बेटे तेजस्वी यादव के भ्रष्ट्राचार को वो बर्दाश्त नहीं कर पाए और गठबंधन तोड़ दिया. इसी तरह गुजरात दंगों की वजह से 2003 में रामविलास पासवान एनडीए छोड़कर सेकुलर बन गए, लेकिन जब परिस्थितियां बदलीं तो फिर 2014 में बीजेपी के साथ आ गए. अब बिहार में जनता को सिर्फ बीजेपी और आरजेडी गठबंधन का इंतजार है. हांलाकि 1990 में जब बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार बनी थी तब बीजेपी ने उनकी सरकार को समर्थन दिया था. ये बात अलग है कि रथ यात्रा के दौरान एनके आडवाणी को गिरफ्तार करने के बाद से बीजेपी और लालू प्रसाद यादव के रास्ते जो अलग हुए वो आजतक जारी हैं.

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सुजीत कुमार झा सुजीत कुमार झा @suj.jha

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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