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Updated: 18 मई, 2019 01:11 PM
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आम चुनाव का आखिरी दौर चल रहा है. पश्चिम बंगाल की नौ सीटों के लिए तो चुनाव प्रचार 24 घंटे पहले ही खत्म हो जाएगा, लेकिन बाकी 50 सीटों पर ये तय समय पर ही खत्म होगा.

वोटिंग का सातवां चरण आते आते लड़ाई दिलचस्प तो हुई ही है, पश्चिम बंगाल में तो गलाकाट प्रतियोगिता का रूप ले चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पश्चिम बंगाल में दो रैलियों से पहले यूपी में तीन कार्यक्रम हैं. बंगाल की रैली में तो ममता बनर्जी पर फोकस लाजिमी है, लेकिन यूपी की रैलियों में भी बगैर टीएमसी नेता के जिक्र के मोदी का भाषण पूरा नहीं हो रहा. ये भी नहीं कि ऐसा अभी हो रहा है, ये हाल शुरू से देखने को मिल रहा है. ऐसा क्यों? ऐसा क्या हो गया कि अचानक पश्चिम बंगाल में बवाल इतना बढ़ गया?

आखिर 2014 में ऐसा कुछ क्यों नहीं हुआ?

तब भी तो बीजेपी ऐसे ही चुनाव जीतना चाहती थी - और पश्चिम बंगाल की सीएम की कुर्सी पर ममता बनर्जी ही बैठी थीं!

पांच साल में ऐसा क्या हो गया?

पश्चिम बंगाल में हिंसा की ताजा घटनाओं की गंभीरता चुनाव आयोग के एक्शन से समझी जा सकती है. चुनाव आयोग ने पहली बार आर्टिकल 324 का इस्तेमाल करते हुए पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार 24 घंटे पहले ही खत्म करने का फरमान जारी कर दिया है. बिहार में बीजेपी की सहयोगी जेडीयू ने तो ममता बनर्जी सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है.

बंगाल में जारी बलाव पर बड़ी ही सटीक टिप्पणी एक रिटायर्ट टीचर की ओर से याई है. अपना नाम न बताने की शर्त पर उस रिटायर्ड शिक्षिका ने बीबीसी से बातचीत में कहा, 'हिंसा पर सभी पार्टियां सियासत कर रही हैं. भाजपा मजलूम बनकर, तृणमूल कांग्रेस बंगाल की संस्कृति की रखवाली बनकर और वामपंथी मोर्चा हिंसा का विरोधी बन कर सियासत कर रहे हैं.'

वैसे हालत तो ये है कि लड़ाई में सिर्फ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी ही नजर आ रहे हैं, वाम मोर्चा तो बस मीडिया में बयान दर्ज करा रहा है और कांग्रेस का तो कहीं नामोनिशां भी नजर नहीं आ रहा है. 2014 के चुनाव वोट शेयर के हिसाब से टीएमसी के बाद वाम मोर्चा ही नंबर दो पर था. बीजेपी ने लगता है वाम मोर्चा को ही बेंच मार्क मान लिया और अपने मिशन में लग गयी. अब लगता है बीजेपी वाम मोर्चा से बढ़त लेना चाहती है.

mamata banerjeeममता बनर्जी को यूपी के लोगों से ही मेहरबानी क्यों चाहिये?

चुनाव आयोग के एक्शन के बाद ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के अलावा दो राज्यों के मतदाताओं से मेहरबानी करने की अपील की - 'मोदी को हटाओ.' ये दोनों राज्य यूपी और बिहार हैं जहां के लोगों से ममता बनर्जी मुखातिब रहीं. अब ऐसा क्या खास बचा है यूपी और बिहार में? दोनों राज्यों में मिलाकर 21 सीटों पर वोटिंग बाकी है. ममता बनर्जी का जितना जोर यूपी पर दिखा, उतना पंजाब पर क्यों नहीं? पंजाब में भी तो 19 मई को ही वोटिंग होनी है और वो भी सभी 13 सीटों पर. क्या इसके पीछे पंजाब में कांग्रेस का शासन होना है, यूपी में बीजेपी और बिहार में बीजेपी-जेडीयू?

ममता बनर्जी के बयानों में एक और बात पर जोर दिखा - बाहरी लोग. ममता की नजर में बंगाल में बवाल करने वाले लोग बाहर के थे. ये ठीक है कि बीजेपी उम्मीदवार भारती घोष ने कहा था कि वो यूपी से लोगों को बुलवा कर ठीक करा देंगी - क्या ममता इसी बात को लेकर बाहरी लोगों की बात कर रही हैं और यूपी की ओर इशारा कर रही हैं? या ममता बनर्जी यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के भाषण से खफा है जिसमें उन्होंने बवाल करने वालों को यूपी स्टाइल में ठोक देने की बात कर रहे थे.

अभी अभी यूपी की एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी कह रहे थे, 'कुछ महीने पहले पश्चिमी मेदिनीपुर में मेरी रैली में तृणमूल ने अराजकता फैलाई गई थी. उसके बाद ठाकुरनगर में तो ये हालत कर दी गई थी कि मुझे अपना संबोधन बीच में छोड़कर मंच से हटना पड़ा था.'

याद कीजिए, 26 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में थे - और वहां पश्चिम बंगाल का खास तौर पर जिक्र कर रहे थे. बीजेपी कार्यकर्ताओं से प्रधानमंत्री मोदी अपने तरीके से पश्चिम बंगाल का सूरत-ए-हाल साझा कर रहे थे. मोदी ने समझाया था कि किस तरह बंगाल के बीजेपी कार्यकर्ता घर से जाते वक्त मां से सुबह बता कर जाते हैं कि वो बीजेपी के लिए काम करने जा रहे हैं - और लगे हाथ ये भी कह देते हैं कि अगर शाम तक नहीं लौटे तो मेरी जगह भाई को भेज देना.

ऐसी बातें मोदी के मुंह से 2014 में तो कभी सुनने को नहीं मिलीं. न तो यूपी के कार्यक्रमों में और न ही यूपी से बाहर. ऐसा का बदलाव हुआ कि पांच साल में बंगाल को लेकर बीजेपी का नैरेटिव पूरी तरह बदल गया - और पश्चिम बंगाल की कहानी मौका निकाल कर बार बार यूपी में सुनायी जाने लगी है. ममता बनर्जी तो पांच साल पहले भी उसी कुर्सी पर वैसे ही बैठी है - और बीजेपी भी एक बार फिर पूरे देश में चुनाव लड़ रही है!

यूपी के बाद मोदी का सबसे ज्यादा जोर बंगाल पर क्यों?

हैरानी तो तब होती है जब मायावती को कठघरे में खड़ा करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपनी कहानी में पिरो देते हैं. यूपी की ही एक रैली में मोदी ने कहा, 'जिस तरह ममता दीदी वहां पर यूपी बिहार और पूर्वांचल के लोगों पर निशाना साध रही हैं, मैंने सोचा था कि बहन मायावती इस पर ममता दीदी को जरूर खरी खोटी सुनाएंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्हें आपकी चिंता नहीं है, उन्हें कुर्सी का खेल खेलना है.' हैरान होने की बातें सिर्फ इतनी ही नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी के बाद देश में अगर कहीं सबसे ज्यादा रैली की है तो वो है - पश्चिम बंगाल.

पश्चिम बंगाल में 15 मई तक प्रधानमंत्री मोदी की कुल 15 चुनावी रैलियां हो चुकी हैं. चुनाव प्रचार की डेडलाइन खत्म होने तक दो और हो जायें तो संख्या 17 हो जाती है जहां से 42 सांसद चुने जाते हैं. यूपी में इसी तरह मोदी की कुल रैलियां 31 हो रही हैं जहां 80 संसदीय सीटें हैं.

ताज्जुब की बात ये नहीं है क्योंकि यूपी और बंगाल का रेशियो देखें तो रैलियां बराबर लगती हैं, मगर महाराष्ट्र की 48 सीटों के लिए मोदी ने सिर्फ 9 रैलियां की हैं - और नौ रैलियों में ही मोदी ने तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे चार राज्य निपटा दिये.

narendra modiमोदी बंगाल पर इतने मेहरबान क्यों?

बिहार में भी बंगाल से सिर्फ दो कम संसदीय सीटें यानी 40 हैं जिनके लिए मोदी ने सिर्फ 10 रैलियां की. 2018 में जिन तीन राज्यों में बीजेपी ने सत्ता गवां दी - मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को मिलाकर 65 सीटें हैं और वहां मोदी की सिर्फ 20 रैलियां आयोजित की गयीं.

ये आंकड़े तो साफ साफ बता रहे हैं कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी यूपी और पश्चिम बंगाल पर बराबर ही जोर दे रहा है. 2014 में बीजेपी को बंगाल में 2 सीटें मिली थीं. 2019 में अमित शाह ने 22 सीटों का लक्ष्य निर्धारित किया है. अमित शाह ने तो यूपी के लिए भी कहा है कि सीटें 74 भले हो जायें 72 नहीं होंगी. 2014 में बीजेपी और अपना दल को मिलाकर 73 सीटों पर जीत मिली थी.

यूपी में सपा-बसपा गठबंधन से फर्क तो पड़ेगा ये तय है. कांग्रेस को भले ही वोटकटवा के रोल में देखा जा रहा हो, लेकिन गठबंधन की वजह से नुकसान निश्चित माना जा रहा है. क्या बीजेपी यूपी के उसी नुकसान की भरपाई पश्चिम बंगाल से करना चाहती है?

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