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Updated: 15 नवम्बर, 2019 10:39 PM
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महाराष्ट्र में राज्यपाल के सरकार बनाने (Government Formation) के बुलावे पर बीजेपी का रिएक्शन तो ऐसा ही देखने को मिला है. फिर तो ये समझना जरूरी हो जाता है कि बीजेपी नेतृत्व ऐसा क्यों कर रहा है? ये जानने के लिए पहले ये समझना होगा कि क्या महाराष्ट्र में बीजेपी के पास वाकई सरकार बनाने का कोई रास्ता नहीं बचा था? मगर, ऐसा तो है नहीं. बीजेपी के आगे आने पर कांग्रेस तो नहीं लेकिन NCP 2014 की तरह सपोर्ट करने को तैयार ही सकती थी. फिर भी बीजेपी ने सरकार बनाने की सार्वजनिक तौर पर कोई कोशिश नहीं दिखायी तो उसकी क्या वजह हो सकती है.

ऐसा लगता है बीजेपी ने महाराष्ट्र में सरकार न बना कर शिवसेना को कठघरे में खड़ा तो किया ही है, साथ साथ NDA के साथी दलों को सख्त संदेश देने की कोशिश की है.

NDA के साथियों को बीजेपी का संदेश

अमित शाह ने नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का नेता घोषित कर सभी साथियों को मैसेज देने की कोशिश की थी लेकिन किसी ने सुना नहीं. झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election) में भी महाराष्ट्र की सियासी हलचल साफ साफ देखी जा रही है. शिवसेना की ही तरह बीजेपी की गठबंधन सहयोगी आजसू (AJSU) ने भी टकराव का ही रास्ता चुन लिया है. चुनाव बाद तो जो होगा वो अलग है, आजसू ने तो पहले ही मोल-भाव शुरू कर दिया है. आजसू ने बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था और अभी वो झारखंड की रघुवर दास सरकार में हिस्सेदार भी है.

एनडीए में सिर्फ एक राष्ट्रीय पार्टी है बीजेपी जबकि सारी सहयोगी पार्टियां क्षेत्रीय हैं, लिहाजा जिस राज्य में जो पार्टी मजबूत है बीजेपी उसके साथ मिल कर चुनाव लड़ती है. ये स्थिति महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में प्रमुख रूप से देखने को मिलती है.

jharkhand nda infightingझारखंड NDA में सामने आया महाराष्ट्र से बड़ा घमासान

झारखंड में आजसू तो गठबंधन के बावजूद बीजेपी के खिलाफ शिद्दत से चुनाव लड़ रहा है. एनडीए के दूसरे सहयोगी दल जेडीयू और एलजेपी भी मैदान में कूद पड़े हैं. एनडीए के साथियों का बीजेपी को आंख दिखाना यूं ही नहीं है - वे जानते हैं कि ऐसा करके आने वाले दिनों में वे सीटों के मामले में बेहतर डील कर सकते हैं.

NDA दलों के चुनावी झगड़े का मैदान बना झारखंड

झारखंड में जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने मझगांव विधानसभा सीट से अपना नामांकन दाखिल किया है - लेकिन ज्यादा टकराव लोहरदगा सीट पर देखने को मिल रहा है. आजसू की मांग थी कि लोहरदगा सीट उसे दी जाये लेकिन BJP ने यहां कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत को अधिकृत उम्मीदवार बनाया है. अब सुखदेव भगत और मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव आमने सामने होंगे. सुखदेव भगत के खिलाफ आजसू नीरू शांति भगत को मुकाबले में खड़ा कर दिया है.

आजसू और बीजेपी के बीच झगड़े के दो किरदार सुखदेव भगत और नीरू शांति भगत ही हैं. सुखदेव भगत लोहरदगा से मौजूदा विधायक हैं जो चुनाव से पहले पाला बदल कर बीजेपी में शामिल हो गये.

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित लोहरदगा सीट से 2014 में आजसू उम्मीदवार कमल किशोर भगत चुनाव जीते थे. एक केस में विधायक कमल किशोर भगत को सजा हुई इसलिए सदस्यता चली गयी तो उपचुनाव हुआ. कमल किशोर भगत से चुनाव हार चुके सुखदेव भगत ने उनकी पत्नी नीरू शांति भगत को शिकस्त दे दी. आजसू का दावा है कि लोहरदगा उसकी परंपरागत सीट रही है.

बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा के खिलाफ भी आजसू का उम्मीदवार चुनाव मैदान में कूद पड़ा है. चक्रधरपुर में आजसू ने बीजेपी के लक्ष्मण गिलुवा के खिलाफ रामलाल मुंडा को उम्मीदवार बनाया है.

लोहरदगा तो नहीं लेकिन बीजेपी ने आजसू के लिए हुसैनाबाद सीट छोड़ दी, फिर भी पार्टी अध्यक्ष सुदेश महतो ने छतरपुर सीट से बीजेपी के बागी राधाकृष्ण किशोर को टिकट दे दिया. छतरपुर से बीजेपी की अधिकृत उम्मीदवार पुष्पा देवी हैं.

पहले चरण के मतदान में दो सीटों लोहरदगा और छतरपुर में तो दोनों दल आमने सामने होंगे ही आगे कम से कम 7 सीटों पर ऐसे ही फ्रेंडली मैच की संभावना साफ दिखायी दे रही है. दोनों दलों के बीच तनातनी के चलते बीजेपी बची सीटों पर उम्मीदवारों की सूची फाइनल नहीं कर पा रही है, जबकि आजसू ने लोहरदगा, छतरपुर और चक्रधरपुर की तरह सिंदरी, मांडु, सिमरिया और चंदनकियारी में भी अपने अलग उम्मीदवार उतार दिये हैं.

न तो बीजेपी-आजसू गठबंधन के स्टेटस को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा हुई है और न ही एक दूसरे के खिलाफ कोई खुल कर कुछ बोल रहा है - हां, बगैर नाम लिए नेताओं को निशाने पर लेकर खूब हमले हो रहे हैं.

2014 में बीजेपी ने आजसू और लोक जनशक्ति पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा और सरकार बना ली. तब नीतीश कुमार एनडीए से अलग हुआ करते थे इसलिए जेडीयू भी अपने बूते मैदान में डटी रही लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली. जेडीयू ने इस बार सभी 81 सीटों पर और एलजेपी ने 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा पहले ही कर रखी है.

जेडीयू महासचिव केसी त्यागी का तो कहना है कि झारखंड में एनडीए बचा ही नहीं है. आपसी समन्वय और तालमेल की कमी के चलते सभी पार्टियां अलग अलग चुनाव लड़ रही हैं.

एक टीवी इंटरव्यू में केसी त्यागी कहते हैं, 'शिव सेना, जेडीयू और अकाली दल एनडीए के संस्थापक दल हैं. अब पहले की तरह एनडीए की मीटिंग नहीं होती है. वैचारिक विषयों पर तालमेल और प्रयास भी नहीं होता... कोई एजेंडा इस समय अस्तित्व में नहीं है.'

असल बात तो ये है कि आम चुनाव में बीजेपी को छोड़ किसी भी सहयोगी दल को जीत का पक्का यकीन नहीं था - और यही वजह रही कि सभी ने मोदी लहर में जहां भी जितना भी मौका मिला उछल उछल कर गोते लगाये. अब सबको पता है कि आम चुनाव का फॉर्मूला विधानसभा में नहीं चलता. महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजों ने इसे साबित भी कर दिया है. ऐसे में आजसू से लेकर जेडीयू और एलजेपी सभी को लगने लगा है कि विधानसभा चुनाव में तो वे ही क्षेत्रीय होने के नाते भारी पड़ेंगे - इसलिए अभी से रंग दिखाने लगे हैं.

24 अक्टूबर, 2019 को चुनाव नतीजे आने के बाद से महाराष्ट्र की राजनीति पर पूरी तरह खामोश रहे अमित शाह अब जाकर खुल कर सामने आये हैं. शिवसेना की मांग को अस्वीकार्य बता कर वो एनडीए के साथी दलों को भी संदेश दे रहे हैं कि ऐसी जुर्रत तो कतई न करें - लेकिन अभी तक तो ऐसा नहीं लगा है कि कोई सुन भी रहा है.

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