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Updated: 07 मई, 2018 11:45 AM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा जब एक दूसरे की तारीफ कर रहे थे तो हर कोई बड़े चाव से सुन रहा था. न तो मोदी सम्मान की बात करते थकते लग रहे थे, न देवगौड़ा मोदी का बखान करते.

पहले कांग्रेस नेताओं ने जेडीएस को बीजेपी की बी टीम बताया. फिर मौका देख राहुल गांधी ने भी देवगौड़ा से पूछ ही लिया - आप हो किस तरफ, बता भी दो? अभी देवगौड़ा की ओर से कोई जवाब आता या फिर राहुल गांधी ही कोई और सवाल पूछते कि रिश्ते में ट्विस्ट आ गया.

हफ्ते भर के भीतर ही देवगौड़ा को लेकर मोदी सरेआम पलट गये - और कांग्रेस के साथ ही देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस का नाता जोड़ दिया.

ये रिश्ता क्या कहलाता है?

घरेलू मनोरंजन की दुनिया में एक टीवी सीरियल का नाम ही है - 'ये रिश्ता क्या कहलाता है?'

प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में हुए प्रशंसालाप के बीच ये अचानक ही प्रासंगिक हो गया लगता है. एकता कपूर के टीवी सीरियल में रिश्तों उलझाव बिलकुल सहज और आम बात है. कब कौन किसके बीच कहां किस ओर से टपक पड़े कोई नहीं जानता? कब कौन किसके साथ गलबहियां डाल कर घूमता दिखे कोई अंदाजा नहीं लगा सकता? लेकिन चुनावी रैलियों में कही गयी कोई बात को यूं ही कैसे समझा जा सकता है?

यहां तक कि ये मामला अगर सीआईडी के एसीपी प्रद्युम्न के सामने भी आता तो एक ही रिएक्शन होता - 'कुछ तो गड़बड़ है दया? अभिजीत जरा डॉक्टर सालुखे...'

narendra modiकौन सी खिचड़ी पक रही है...

महज चार दिन पहले तक देवगौड़ा को लेकर मोदी का कहते नहीं थक रहे थे कि उनके दिल्ली मिलने आने पर वो दौड़ कर घर और कार का दरवाजा खुद खोलना चाहते हैं. देवगौड़ा भी बोलते नहीं अघाते रहे कि मोदी बड़े ही स्मार्ट प्रधानमंत्री और कर्नाटक में हो रहे राजनीतिक परिवर्तन को वो अच्छी तरह समझ रहे हैं. देवगौड़ा का कहना रहा कि ये तो प्रधानमंत्री मोदी ही हैं जिनकी बदौलत वो संसद में बने हुए हैं और कुछ नेक काम कर पा रहे हैं. मगर, ऐसा क्या हुआ कि पलक झपकते ही देवगौड़ा की सारी खूबियां तमाम तरीके की कमियों में तब्दील हो गयीं?

कोई मामूली शख्स भी किसी के बारे में इतना जल्दी जल्दी अपने विचार नहीं बदल सकता? अगर ऐसा कोई करता है तो उसे शक की निगाह से देखा जाएगा. फिर दो बड़ी हस्तियों के बीच हो रहे सार्वजनिक संवाद को लेकर लोग भला क्या समझें?

आखिर किसका, किससे और कैसा समझौता है?

न तो मोदी और न ही देवगौड़ा ने बीजेपी और जेडीएस के बीच किसी तरह के गठबंधन की बात कबूल नहीं की थी, लेकिन ऐन चुनावी माहौल के दरम्यान दो आला नेताओें की बयानबाजी यूं ही तो नहीं हो सकती.

कर्नाटक चुनाव में हो रही हर तरह की गतिविधियों पर नजर रखने वाले राजनीति के जानकार भी मोदी के बयानों में बीजेपी का फायदा देख रहे थे. माना जा रहा था कि वोक्कालिगा वोट बैंक को लेकर देवगौड़ा के पक्ष में मोदी ऐसे बयान दे रहे हैं. मकसद ये माना गया कि राहुल गांधी द्वारा देवगौड़ा के अपमान की बात कर वोक्कालिगा लोगों को भड़काने की कोशिश हो रही है. वोक्कालिगा समुदाय के लोग कांग्रेस से भड़क कर वोट दूसरे को देते तो फायदा बीजेपी को होता ही, भले ही वो जेडीएस के ही खाते में चला जाता.

सहज तौर पर सवाल उठता है कि क्या वास्तव में देवगौड़ा भी मोदी के बयानों पर महज स्वाभाविक प्रतिक्रिया दे रहे थे? मोदी को स्मार्ट बताना और अटल से तुलना करना भी देवगौड़ा की एक आम इंसान जैसी प्रतिक्रिया रही? अगर ये कोई मामूली बात थी तो मोदी की तारीफों को लेकर पूछे गये सवालों के जवाब में देवगौड़ा मुस्कुरा कर भी काम चला सकते थे. मगर, वो तो अपने संसद बने रहने का भी क्रेडिट देने लगे. ये सब क्यों? मोदी के बयान पर देवगौड़ा का रिएक्शन. फिर मोदी का ये कहना कि 2014 में उनके प्रधानमंत्री बनने की स्थिति में देवगौड़ा तो आत्महत्या करने की बात कर रहे थे. चुनाव जीतने के लिए आतंकवादियों की मदद लेने की बात होने लगी. मोदी अब समझा रहे हैं कि कर्नाटक की जनता को कांग्रेस और जेडीएस के बीच साठगांठ के बारे में पता होना चाहिये. कांग्रेस द्वारा जेडीएस के मेयर के सपोर्ट की याद दिलाते हुए मोदी समझाते हैं कि दोनों लड़ने का दिखावा करते हैं और एक दूसरे का समर्थन भी करते हैं.

मोदी के नजरिये से सोचें तब तो यही लगता है कि राहुल गांधी भी देवगौड़ा की बातों से गुमराह हो गये थे. यही वजह रही होगी की कर्नाटक की जनता के नाम पर कांग्रेस के प्रति ही देवगौड़ा का स्टैंड जानना चाहते रहे होंगे.

प्रधानमंत्री मोदी अब कांग्रेस और जेडीएस के बीच गुपचुप समझौते की बात कर रहे हैं. कर्नाटक के लोगों को इससे से सावधान भी कर रहे हैं. जेडीएस की राजनीतिक हैसियत को भी खारिज करने की कोशिश कर रहे हैं.

hd devegowdaखता क्या हुई जो...

क्या इसे मोदी का भूल सुधार समझा जाना चाहिये? क्या मोदी को अचानक लगा कि दाव उल्टा पड़ रहा है तो अचानक ही उन्होंने आगे बढ़ने की बजाये यू-टर्न ले लेने की समझदारी दिखायी. ये क्यों न माना जाये कि जो बात तय रही वो किसी वजह से बिगड़ गयी? वैसे जो बात जेडीएस के लिए कांग्रेस को लेकर मोदी कह रहे हैं वही बीजेपी पर भी तो लागू होती है. है कि नहीं?

कहीं बीजेपी ही तो नहीं जेडीएस को लेकर कन्फ्यूज है? इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में इस सवाल के जवाब में अमित शाह कहते हैं, "सार्वजनिक तौर पर किसी की वरिष्ठता या किसी के अच्छे गुण की तारीफ करने का मतलब यह नहीं कि कोई समझौता है. सार्वजनिक जीवन का मतलब ये नहीं कि किसी की अच्छी चीजों की तारीफ ही न की जाए."

बेशक, ऐसा ही होना चाहिये, लेकिन सवाल उठता है कि ऐसा सिद्धारमैया को लेकर कभी क्यों नहीं हुआ? और क्या राहुल गांधी और सोनिया गांधी में आज तक ऐसी कोई अच्छी बात ही नहीं नजर आयी कि अच्छे दिनों में भी तारीफ के दो शब्द बोले जा सकें?

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