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Updated: 10 अगस्त, 2022 04:44 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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महाराष्ट्र में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा के साथ विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन किया था. लेकिन, विधानसभा चुनाव के बाद उद्धव ठाकरे ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ महाविकास आघाड़ी गठबंधन की सरकार बना ली. उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद भी मिल गया. लेकिन, करीब ढाई साल बाद उद्धव ठाकरे को शिवसेना में हुई बगावत का सामना करना पड़ा. लेकिन, इस बगावत के पीछे की वजहें ही सबसे अहम रहीं. जो आज नहीं तो कल 8वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने जा रहे नीतीश कुमार के सामने भी उठ सकती हैं. क्योंकि, नीतीश कुमार का गठबंधन अब आरजेडी और कांग्रेस के साथ हो रहा है. जो महागठबंधन के तौर पर पहले भी एक बार टूट चुका है. उस समय भी जेडीयू नेता नीतीश कुमार के सामने महागठबंधन छोड़ भागने के अलावा कोई रास्ता नही बचा था. और, भाजपा के जेडीयू पर किए जा रहे सियासी हमलों से ये साफ हो रहा है कि भाजपा ने नीतीश कुमार को भी 'उद्धव ठाकरे' बनाने की ठान ली है.

BJP Nitish Kumar Bihar Uddhav Thackeray RJD JDUनीतीश कुमार को भाजपा के सियासी हमलों से इतर आरजेडी के आंतरिक हमलों से भी लगातार खतरा बना रहेगा.

शराबबंदी कानून: आरजेडी कार्यकर्ताओं पर कैसे नकेल कसेंगे 'सत्ता कुमार'?

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे भले ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. लेकिन, गृह मंत्रालय को महाविकास आघाड़ी सरकार के सूत्रधार रहे एनसीपी चीफ शरद पवार अपनी पार्टी के खाते में डलवा लिया था. और, महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारियों का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था. ठीक उसी तरह बिहार में भी आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के सामने महागठबंधन की सरकार बनाने से पहले गृह मंत्रालय को आरजेडी के खाते में रखने की शर्त रख दी थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो गृह मंत्रालय मिलने के बाद पुलिस पर सीधा नियंत्रण तेजस्वी यादव के तौर पर आरजेडी का ही होगा. और, पुलिस शायद ही बिहार की सबसे बड़ी पार्टी और सरकार में शामिल आरजेडी से मिलने वाले आदेशों को टाल सकेगी.

इसका खामियाजा सियासी तौर पर जेडीयू और नीतीश कुमार को भुगतना पड़ेगा. क्योंकि, नीतीश कुमार और जेडीयू अब तक जिस शराबबंदी कानून को अपनी उपलब्धि के तौर पेश करते आ रहे हैं. अब वही उनकी गले की फांस बन सकता है. क्योंकि, जेडीयू के हाथ अभी भी शराब की अवैध तस्करी से जुड़ी बड़ी मछलियों से दूर ही हैं. दरअसल, बिहार में शराब तस्करी एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है. जिसके तार सियासी दलों के सफेदपोशों से भी जुड़े हुए हैं. वैसे भी सरकार में आने से पहले आरजेडी नेता तेजस्वी यादव समेत पूरी पार्टी शराबबंदी कानून को लेकर नीतीश कुमार को घेरती रही है. खुद तेजस्वी यादव ने ही शराबबंदी कानून में प्रस्तावित संशोधनों पर आपत्ति जताई थी. तेजस्वी ने आशंका जताई थी कि इस कानून का निजी दुश्मनी निकालने के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है. वैसे, इस तरह के बयान के जरिये तेजस्वी यादव किन लोगों की ओर इशारा कर रहे थे, ये सोचने वाली बात है.

गौर करने वाली बात ये भी है कि बीते साल दिवंगत पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के करीबी रहे आरजेडी नेता रामायण चौधरी को शराब तस्करी के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था. और, रामायण चौधरी की आरजेडी और तेजस्वी यादव से करीबी सबके सामने ही है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो नीतीश कुमार को शराबबंदी के नाम पर मिलने वाला बिहार की महिलाओं का वोट सीधे तौर पर खतरे में पड़ गया है. क्योंकि, गृह मंत्रालय को अपने हाथ में रखते हुए तेजस्वी यादव इसका इस्तेमाल बिहार में अपने स्थानीय स्तर के नेताओं को मजबूत करने में लगाएंगे. संभव है कि इसके चलते बिहार में शराबबंदी को एक बड़ा झटका लगेगा.

सजायाफ्ता लालू की आरजेडी को भ्रष्टाचार से कैसे दूर रख पाएंगे?

जिस तरह से महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे का नाम महाविकास आघाड़ी सरकार के दौरान किसी भ्रष्टाचार के मामले में नहीं आया था. लेकिन, एनसीपी के नेताओं अनिल देशमुख और नवाब मलिक समेत कई नेताओं के खिलाफ वसूली, भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आरोपों में जेल की हवा खाने पहुंच गए थे. इसकी वजह सबसे ज्यादा नुकसान शिवसेना की छवि को ही पहुंचा था. अब बात बिहार में हुई हालिया सियासी उथलपुथल की हो, तो ऐसा लग रहा है कि बिहार की राजनीति के चाणक्य कहलाने वाले नीतीश कुमार इस बार गच्चा खा गए हैं. क्योंकि, जेडीयू ने उस आरजेडी के साथ गठबंधन किया है, जिसके कद्दावर नेता और पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव इन दिनों चारा घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों में सजायाफ्ता हैं.

संभव है कि बिहार के नेताओं पर कुछ समय बाद ईडी या अन्य सरकारी एजेंसियां किसी जांच को तेज गति दें. और, अगर इस मामले में किसी आरजेडी या कांग्रेस नेता पर शिकंजा कसता है. तो, उद्धव ठाकरे की तरह ही नीतीश कुमार को भी इन नेताओं के पक्ष में बयानबाजी करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. क्योंकि, महागठबंधन में उनके पास सिर्फ 45 विधायक ही हैं. और, आरजेडी के पास 79 विधायक हैं. लिखी सी बात है कि नीतीश कुमार को अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए वो सब करना पड़ेगा, जो आरजेडी की ओर से आदेश किया जाएगा. वरना महागठबंधन की सरकार ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएगी. और, जब खुद लालू प्रसाद यादव ही सजायाफ्ता अपराधी हों. तो, आरजेडी के अन्य नेताओं से क्या ही आकांक्षा रखी जा सकती है.

शीर्ष नेतृत्व में बदलाव की मंशा को कैसे रोकेंगे?

जिस तरह से महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे ने एनडीए का साथ छोड़कर भाजपा को साइडलाइन कर दिया था. उसी तरह बिहार में भी जेडीयू ने भाजपा को राजनीतिक रूप से अस्थिर कर दिया है. लेकिन, महाराष्ट्र में भाजपा ने अंतत: शिवसेना में बगावत का बीज बो ही दिया था. तो, इस बात में शायद ही कोई दो राय होगी कि बिहार में एनडीए गठबंधन से पलटी मारने के बाद नीतीश कुमार को सियासी रूप से हाशिये पर पहुंचाना ही भाजपा का नया लक्ष्य होगा. भले ही आरसीपी सिंह सरीखे महत्वाकांक्षी नेताओं को किनारे लगाना नीतीश कुमार के लिए बाएं हाथ का खेल हो. लेकिन, पार्टी में उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता हैं. जो वक्त की नजाकत को देखते हुए किसी भी समय नीतीश कुमार की तरह ही पलटी मारने को तैयार बैठे हैं.

वैसे, जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा का हालिया ट्वीट भी इसी ओर इशारा करता है कि वह चाहते हैं नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में ही ध्यान लगाएं. और, इस ट्वीट के हिसाब से बिहार के मुख्यमंत्री का पद उपेंद्र कुशवाहा अपने लिए ही चाहते होंगे. वैसे भी उपेंद्र कुशवाहा को जेडीयू में बीते साल ही एंट्री मिली थी. इससे पहले वो भी नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक चुके हैं. बिहार के 9 फीसदी कुशवाहा समुदाय का नेतृत्व करने वाले उपेंद्र कुशवाहा को महाराष्ट्र की तरह ही एकनाथ शिंदे बनाने में शायद ही भाजपा को बहुत ज्यादा समय लगेगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भाजपा ने नीतीश कुमार को 'उद्धव ठाकरे' बनाने की ठान ली है. और, देर-सवेर भगवा दल इसमें कामयाब हो भी सकता है. क्योंकि, बिहार की राजनीति में संभावनाओं की कोई कमी नहीं है. और, नीतीश कुमार इसका जीता-जागता उदाहरण हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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