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Updated: 26 मार्च, 2017 12:22 PM
सुनील बाजारी
सुनील बाजारी
  @skbazari
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इस समय पूरे मीडिया में योगी जी ही छाए हुए हैं, ये बहुत कुछ वैसा ही है जैसा कि लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी जी के साथ हुआ था.. तब 'मोदी मोदी' था आज 'योगी योगी' है. लेकिन इस तरह की लहर ये बताती है कि जनता बहुत जल्दी अपने 'हीरोज़' बदल देती है.

पर योगी आदित्यनाथ में कुछ बात है. लगता है कि इनकी लहर पीएम मोदी से आगे जाएगी. मेरी इस सोच के पीछे जो कारण है वो बड़ा साफ है. मोदी के साथ-साथ कैमरा चलता है, जबकि योगी ने अब तक मीडिया में कोई खास रुचि नहीं दिखाई है. ये अंतर वैसा है जैसा कि 'प्रयोगशाला' और 'जंग के मैदान' में होता है. जनता ने मोदी को परिवर्तन के विकल्प के रूप में चुना था, और इतना भरोसा जताया कि उनकी आंधी में बाकी सारा विपक्ष उड़ गया (हालांकि लगता नहीं कि इस देश में विपक्ष जैसा कुछ बचा भी है). उधर योगी ऐसी किसी भी लहर का हिस्सा नहीं थे. संघ और बीजेपी के नेताओं ने उनपर भरोसा जताया और उन्होंने सत्ता संभाल ली, लेकिन पहले ही सप्ताह में जिस तरह से काम की शुरूआत योगी आदित्यनाथ ने की है, लगता है कि 2019 को जीतने के लिए भी संघ, बीजेपी और मोदी को योगी के नाम का सहारा लेना होगा. यानी किसी भी स्थिति में 2019 के लिए तो बीजेपी को पूरी तरह से नए पोस्टर छपवाने ही पड़ेंगे.

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जिन बातों को लेकर संघ और बीजेपी के नेताओं ने नरेंद्र मोदी को पीएम बनाया था वो तमाम खूबियां योगी आदित्यनाथ में हैं, बल्कि यूं कहें कि योगी मोदी जी से दो कदम आगे हैं, तो गलत नहीं होगा. हार्डलाइनर मोदी हैं तो उनसे ज्यादा कट्टर छवि योगी की है, मोदी हिंदुत्व का चेहरा हैं, तो योगी हिंदूत्व के पर्याय हैं. मीडिया ने जिस तरह से मोदी जी को उठाया था उसी तरह से योगी जी को भी हाथों-हाथ लिया है. यहां एक फर्क है जब मीडिया ने नरेंद्र मोदी को उठाया था तो देश की राजनीति में एक शून्य की स्थिति थी लेकिन जब योगी सुर्खियों में आए तो उनसे पहले मीडिया, राजनीति सभी के केंद्र में मोदी थे, लेकिन उनके आते ही मोदी-मोदी की जगह सारा वातावरण 'योगीमय' हो गया.

अब बात प्रशासन एवं प्रबंधन की करें तो जिस तरह से पीएम मोदी ने शुरूआत की थी तकरीबन वैसी ही शुरूआत योगी की है. दोनों ने सफाई की बात की, लेकिन योगी ने सरकारी दफ्तरों में डेकोरम मेंटेन करने की भी बात की, बल्कि शुरूआत ही कर दी, रोज बाकायदा छापेमारी भी हो रही है. कानून व्यवस्था को लेकर जिस पैमाने पर पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है वो यकीनन एक बेहतरीन शुरूआत है. एक और बात, कत्लखाने बंद कराने की बात यदि किसी पार्टी के मेनिफेस्टो से बाहर आई है तो उसका कारण भी केवल योगी आदित्यनाथ ही हैं.

योगी आदित्यनाथ का चयन पीएम नरेंद्र मोदी के राजनैतिक जीवन का सबसे बड़ा दांव तो है, लेकिन अब वो दांव नरेंद्र मोदी के खिलाफ जाता दिखाई पड़ रहा है. पीएम मोदी ने उनके साथ दो डिप्टी लगा दिये, कैबिनेट बनाने के लिए उन्हें बार-बार के चक्कर भी लगाने पड़े, लेकिन आखिर में योगी ने अपनी कार्यशैली से सबकुछ अपने बस में कर लिया और अधिकांश महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रख लिये, यानी सब कंट्रोल में है.

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मेरा अभिप्राय ये है कि योगी से एक बेहतर प्रशासक होने की उम्मीद की जा सकती है लेकिन मोदी ने जो भी वादे किये थे वो सारे योगी के सीएम बनते ही खत्म हो गए. आपको याद होगा कि एनडीए राम मंदिर की कीमत पर बना था. एनडीए बनने के बाद कभी भी बीजेपी के किसी बड़े नेता ने खुले तौर पर राम मंदिर के पक्ष में बात नहीं की थी, लेकिन यूपी में पूर्ण बहुमत मिलते ही एक ऐसे व्यक्ति के हाथों में सत्ता दे दी गई जो खुले तौर पर राम मंदिर की बात करता है, जिसकी छवि कट्टर हिंदूवादी की है. यानी बीजेपी ने साफ कर दिया है कि अब उसे घटक दलों की ज़रूरत नहीं रह गई है.

अब इन परिस्थितियों में योगी आदित्यनाथ के होते हुए संघ और बीजेपी को भी अपने एजेंडे के लिए किसी की भी ज़रूरत नहीं है, मोदी की भी नहीं. जाहिर सी बात है कि अब संघ की नजर में भी 2019 के लिए योगी से बेहतर नाम कोई हो ही नहीं सकता, भई जब चेहरा खुद है तो मुखौटे की क्या ज़रूरत है.

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लेखक

सुनील बाजारी सुनील बाजारी @skbazari

लेखक टीवी पत्रकार हैं

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