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Updated: 20 फरवरी, 2022 10:50 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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करहल में वोटिंग से दो दिन पहले बीजेपी का पूरा अमला अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) पर टूट पड़ा था. बीजेपी की तरफ से अखिलेश यादव पर बेहद संगीन इल्जाम लगाया गया - आतंकवादियों को बचाने का.

जैसे यूपी चुनाव में बीजेपी ने अखिलेश यादव को आतंकवाद के नाम पर टारगेट किया, ऐन उसी वक्त पंजाब चुनाव में अरविंद केजरीवाल भी निशाने पर रहे. अखिलेश यादव को टारगेट करने के लिए जहां अहमदाबाद ब्लास्ट केस के सजायाफ्ता से कनेक्शन जोड़ने की कोशिश हुई, अरविंद केजरीवाल पर कुमार विश्वास के आरोपों के आधार पर धावा बोल दिया गया. पंजाब में तो मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के पत्र पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गंभीरता से जांच कराने का आश्वासन भी दे रखा है.

अखिलेश यादव पर हमले का नेतृत्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) ने किया, दो दिल्ली में भी बीजेपी के चुनाव कैंपेन के दौरान नारे लगा रहे थे - "देश के गद्दारों को" और फिर समर्थकों और पब्लिक की तरफ से कोरस गूंज रहा था, "गोली मारो..."

2020 के दिल्ली चुनाव के दौरान विवादित बयानबाजी के लिए चुनाव आयोग ने अनुराग ठाकुर के कैंपेन पर पाबंदी भी लगा दी थी - और बीजेपी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट से बाहर भी कर दिया था.

पहले भी, 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी की तरफ से अरविंद केजरीवाल के गोत्र पर सवाल उठाये गये थे - और ये उसी साल के बिहार चुनाव से पहले की बात है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार के डीएनए में खोट जैसी खामी खोज डाली थी. फिर जो हुआ सबको मालूम ही है.

दिल्ली चुनाव में तो हालत ये हो गयी कि अरविंद केजरीवाल को सरेंडर वाले अंदाज में ही बयान जारी करना पड़ा. आतंकवादी कहे जाने पर अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कांफ्रेंस बुलायी और तमाम बातों के बाद बोले, 'अगर आप मुझे अपना बेटा समझते हो, तो सिर्फ झाड़ू को वोट दे देना - और अगर मुझे आतंकवादी समझते हो तो कमल पर वोट दे देना.'

यूपी में अनुराग ठाकुर ने रैलियों में लोगों से नारे तो नहीं लगवाये, लेकिन तेवर दिल्ली वाला ही रहा. दिल्ली में भी स्टार कैंपेनर रहे योगी आदित्यनाथ तो मुख्यमंत्री ही हैं, बस दिल्ली वाले प्रवेश वर्मा इस मामले में जोर नहीं दिखा. शायद इसलिए भी क्योंकि किसान आंदोलन के बाद जाटों की नाराजगी दूर करने की जिम्मेदारी उनको मिली हुई थी - वो अमित शाह के साथ रहे.

अब तो ऐसा लगता है अनुराग ठाकुर को यूपी का सह प्रभारी भी ऐसे ही चुनाव कैंपेन को ध्यान में रख कर बनाया गया होगा. वैसे बीजेपी के यूपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान हैं.

अब तक तो यही देखने को मिला है जब भी नेताओं को ऐसे निशाने पर लिया गया है, सभी फायदे में रहे हैं. ये भी नहीं भूलना चाहिये कि दिल्ली चुनाव के नतीजे आने के बाद अमित शाह ने एक इंटरव्यू में माना था कि अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी बताना बीजेपी को भारी पड़ा. अमित शाह ने कहा भी था, 'विपक्ष ने उसे मुद्दा बना दिया - लेकिन सवाल तो ये है कि बार बार दांव उलटा पड़ने के बाद बीजेपी नेतृत्व ने सबक क्यों नहीं लिया?

अखिलेश भी, केजरीवाल जैसे!

जब करहल सहित यूपी के 16 जिलों की 59 सीटों पर वोट डाले जा रहे थे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरदोई की रैली में कहा, 'आज यूपी में तीसरे चरण का चुनाव हो रहा है... ऐसा लग रहा है कि पहले दो चरण में भाजपा को अभूतपूर्व आशीर्वाद मिला है, उस रिकॉर्ड को तीसरे चरण में तोड़ने का जनता ने मन बना लिया है.'

अपनी चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने अहमदाबाद ब्लास्ट के बहाने आतंकवाद का जिक्र किया और अखिलेश यादव कैसे नेता हैं, ये अपने तरीके से समझाने की पूरी कोशिश भी की, 'यहां समाजवादी पार्टी का जो चुनाव सिंबल है ना... साइकिल उस पर अहमदाबाद में बम रखे गये थे... तब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था.'

माना जा रहा है कि तीसरे चरण में जो वोटिंग हो रही है वो अखिलेश यादव के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं और प्रधानमंत्री का इशारा भी उसी वोटर की तरफ था, 'आज मैं इसका जिक्र इसलिए कर रहा हूं क्योंकि कुछ ऐसे ही आतंकियों के प्रति राजनीतिक दल मेहरबान रहे हैं - ये देश की सुरक्षा के लिए खतरे की बात है.'

yogi adityanath, akhilesh yadav, anurag thakurअखिलेश यादव को टारगेट किया जाना भी अजय मिश्रा टेनी के बचाव अभियान का ही हिस्सा लगता है

अगर प्रधानमंत्री मोदी के पंजाब की रैलियों में भाषण सुने तो बातें वही लगती हैं, सिर्फ नेता और पार्टी का नाम बदल जाता है. पंजाब चुनाव में कुमार विश्वास को मां सरस्वती का सपूत बताते हुए देश के प्रति उनके कर्तव्यों के निर्वहन की दुहाई देते हुए अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का जिक्र हो रहा था - और उत्तर प्रदेश में अहमदाबाद ब्लास्ट का किस्सा सुनाते हुए अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी की चर्चा हो रही थी.

दरअसल, गुजरात के 2008 के अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस में स्पेशल कोर्ट ने 49 दोषियों को सजा सुनायी है - 38 को फांसी और 11 को उम्रकैद की सजा सुनायी गयी है. यूपी में अहमदाबाद ब्लास्ट की चर्चा की वजह ये है कि सजायाफ्ता आतंकियों में से कई आजमगढ़ के रहने वाले हैं - आजमगढ़ पर वैसे भी बीजेपी का खास जोर है क्योंकि अखिलेश यादव वहां से सांसद हैं. अहमदाबाद धमाकों में 56 लोगों की मौत हो गई थी - और 200 से अधिक लोग घायल हुए थे.

अखिलेश यादव को अहमदाबाद ब्लास्ट के नाम पर बीजेपी को टारगेट करने का मौका इसलिए भी मिल गया है क्योंकि आतंकियों में से एक शादाब अहमद का बेटा भी है - मोहम्मद सैफ. हुआ ये है कि शादाब अहमद की अखिलेश यादव के साथ एक तस्वीर सामने आयी है - और बीजेपी के लिए टूट पड़ने का इससे बढ़िया बहाना भला क्या हो सकता है.

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर अखिलेश यादव के शादाब अहमद की तस्वीर दिखाते हुए जोरदार अटैक किया था. अनुराग ठाकुर ने नारेबाजी के अंदाज में कहा, 'अखिलेश ने ठाना है, आतंकियों को बचाना है.'

अनुराग ठाकुर पूछ रहे थे, 'ये कब ठान लिया था? 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के मेनिफेस्टो में सीधे-सीधे लिखा था... मुस्लिम युवाओं के खिलाफ जो आतंकवाद के चार्जेज हैं, उन्हें वापस लेंगे,' और पार्टी के हवाले से दावा किया, 'कहा था कि जिन लोगों ने ये चार्ज लगाये हैं, ऐसे पुलिसवालों के खिलाफ उनकी सरकार कार्रवाई करेगी.'

प्रधानमंत्री तो रैली में समाजवादी पार्टी का ही नाम ले रहे थे, अनुराग ठाकुर ने तो सीधे अखिलेश यादव से पूछा, '49 में से एक मोहम्मद सैफ समाजवादी पार्टी के नेता शादाब अहमद का बेटा है - आखिर अखिलेश यादव चुप क्यों हैं?'

अनुराग ठाकुर ने कहा, 'ये फोटो उनको तब के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ दिखा रहा है... क्या अखिलेश यादव ने बिरयानी खिलाने के लिए बुलाया था?'

तीसरे चरण की वोटिंग की पूर्वसंध्या पर योगी आदित्यनाथ ने पीलीभीत की रैली में अहमदाबाद ब्लास्ट के फैसले को लेकर कहा, 'सीरियल ब्लास्ट में 38 आतंकवादियों को सजा हुई... फांसी की सजा भी दी गई... आजीवन कारावास की भी सजा दी गई... उनमें से उत्तर प्रदेश के भी कुछ आतंकी थे - एक आतंकवादी का परिवार तो समाजवादी पार्टी का प्रचार कर रहा है.'

बीजेपी के हमलों पर अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया बता रही है कि न तो वो बचाव की कोशिश कर रहे हैं, न ही काउंटर अटैक के लिए रिएक्ट कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल की तरह अखिलेश यादव इस मामले को ज्यादा तूल देने के पक्ष में नहीं दिखे हैं. जो कुछ कह रहे हैं, वो बस इग्नोर करने जैसा है.

बीजेपी के आक्रामक अंदाज में लगाये गये आरोपों पर अखिलेश यादव कहते हैं, 'मैं कई दिनों से कह रहा हूं कि अगर कोई झूठ फैलाने का काम कर रहा है तो वो है बीजेपी. बीजेपी के नेता झूठ के अलावा कुछ नहीं बोलते... बीजेपी सबसे ज्यादा झूठ बोलने वाली बड़ी पार्टी है.'

अखिलेश यादव का बीजेपी से काउंटर सवाल है, 'अगर बीजेपी ईमानदार है तो लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचलने वाले दोषियों पर कब उनका बुलडोजर चलेगा? - और ये सवाल भी बिलकुल वाजिब लगता है.

शादाब अहमद और टेनी महाराज में क्या फर्क है: मुख्तार अंसारी को सपा गठबंधन के टिकल के लिए NOC देने में अखिलेश यादव की मददगार भी बीजेपी ही लगी थी. जिस दलील के साथ बीजेपी लखीमपुर खीरी केस में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र उर्फ टेनी महाराज का बचाव करती आ रही है, ठीक उसी रास्ते पर चलते हुए अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को मऊ विधानसभा सीट से टिकट को मंजूरी दे दी थी.

लखीमपुर खीरी में फॉर्च्यूनर से किसानों को कुचलने के मामले में अजय मिश्रा का बेटा आशीष मिश्रा मुख्य आरोपी है - और अभी कुछ ही दिन पहले जमानत पर जेल से छूटा है.

akhilesh yadav, shadab ahmedअखिलेश यादव के साथ शादाब अहमद वाली इसी तस्वीर को लेकर बीजेपी आक्रामक हो गयी है

बेटे के लखीमपुर केस में फंसने के बाद से ही विपक्ष अजय मिश्रा को मोदी कैबिनेट से हटाने की मांग करने लगा था. असर ये हुआ कि अजय मिश्रा सरकारी कामकाज तो करते रहे, लेकिन चुनाव के दौरान लुक छिप कर ही पार्टी के लिए काम करते पाये गये.

अजय मिश्रा को मोदी कैबिनेट से हटाये न जाने को लेकर बीजेपी की दलील ये रही कि आखिर बेटे के अपराध के लिए पिता को सजा क्यों मिले?

और कोई बुराई भी नहीं है इसमें. दलील के हिसाब से तो अहमदाबाद केस में सजा पाने वाले आतंकवादी के पिता को भी उसके अपराध की सजा नहीं मिलनी चाहिये - लेकिन फिर भी बीजेपी की तरफ से हर कोई शोर मचा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उसमें शामिल हैं.

अजय मिश्रा टेनी तो किसानों की हत्या के मुख्य आरोपी के पिता हैं - लेकिन ऐसा तो है नहीं कि अखिलेश यादव के बेटे को अहमदाबाद ब्लास्ट केस में सजा हुई हो?

क्या शादाब अहमद के साथ तस्वीर होने की वजह से अखिलेश यादव को आतंकवाद का संरक्षक मान लेना चाहिये?

अगर ऐसा ही है तो बीजेपी की लखनऊ रैली में अजय मिश्रा टेनी के अगल बगल खड़े अमित शाह और योगी आदित्यनाथ की तस्वीर देखने के बाद किसी की क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिये भला?

योगी और अखिलेश में फर्क कैसे समझें?

चुनावी रैलियों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अखिलेश यादव की पार्टी को 'तमंचावादी पार्टी' कहते रहे हैं और 10 मार्च को चुनाव नतीजे आने के बाद कभी देख लेने तो कभी गर्मी शांत करने जैसे अंदाज में धमकाते भी रहे हैं. यूपी चुनाव कैंपेन के तहत योगी आदित्यनाथ उन्नाव के भगवंत नगर में अखिलेश यादव के मंसूबे पर भी सवाल उठाते हैं.

योगी आदित्यनाथ आरोप लगाते हैं कि अखिलेश यादव ने अपने शासनकाल में अयोध्या और बनारस में ब्लॉस्ट करने वाले आतंकवादियों के मुकदमे वापस लेने का काम किया है - और फिर रैली में मौजूद लोगों का ध्यान खींचते हुए आगाह करते हैं, 'अनुमान लगाइए इनके मंसूबे क्या हैं? समाजवादी पार्टी अपने आपको सच्चे समाजवादी कहती है, लेकिन ये तमंचावादी है - और सोच इनकी परिवारवादी है.'

मुकदमे वापस लेना क्या कहलाता है: सीतापुर में योगी आदित्यनाथ समझाते हैं, 'देखिये समाजवादी पार्टी पहले से ही बदनाम रही है... याद करिये जब 2012 में सपा की प्रदेश में सरकार बनी थी, अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने थे... 2013 में दर्जनों मुकदमे वापस लेने का कुत्सित प्रयास किया गया था - जिनका संबंध आतंकी घटनाओं से था.'

अखिलेश यादव के खिलाफ अपने आरोपों की ये सिलसिला जारी रहता है, 'अयोध्या में राम जन्मभूमि, संकटमोचन मंदिर पर हमला रहा हो या गोरखपुर के सीरियल ब्लास्ट रहे हों - कानपुर और बिजनौर के ब्लास्ट के जिम्मेदार जितने भी आतंकी तत्व थे, सभी का मुकदमा वापस लेने का प्रयास सपा ने किया था.'

जाहिर है जैसे को तैसा ही मिलता है - और ये भी कोई नये सिरे से नहीं हो रहा है. समाजवादी पार्टी की तरफ से भी दिसंबर, 2017 में योगी आदित्यनाथ और 14 अन्य के खिलाफ 1995 के केस में यूपी सरकार के केस वापस लेने को लेकर सवाल उठाया जाता रहा है.

यूपी में बीजेपी की सरकार बनने के 9 महीने बाद की बात है. तब, अखिलेश यादव ने कहा था, 'अब समझ में आया कि मुकदमा वापसी का कानून क्यों बनाया है - क्योंकि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों पर गंभीर धाराओं में मुकदमे हैं.'

तब योगी आदित्यनाथ निवेशकों के सम्मेलन के लिए मुंबई पहुंचे थे और कहा था, 'ये 20 हजार मुकदमे वे हैं जो अनावश्यक हैं... वर्षों से लंबित पड़े हुए हैं... सामान्य हैं. 107/16 से जुड़े जो मुकदमे हैं उन सभी मामलों को हमलोग वापस लेने जा रहे हैं.'

हाल ही में अखिलेश यादव ने चुटकी लेते हुए कहा था, 'जीवन में एक ही मुकदमा लगा और वो भी योगी आदित्यनाथ ने तब लगवाया जब मैं किसानों के लिए निकला... बाबा मुख्यमंत्री ने कोरोना वाली धारा लगा दी!'

कांग्रेस भले ही अलग चुनाव लड़ रही हो, लेकिन राहुल गांधी के ट्वीट से तो यही लगा कि वो भी समाजवादी पार्टी के लिए वोट मांग रहे हों - क्योंकि ये तो यूपी की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को भी मालूम है कि 10 मार्च को अपने हिस्से में क्या आने वाला है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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