New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 06 जुलाई, 2018 08:33 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

अमित शाह यूपी के तूफानी दौरे पर हैं. शाह के इस दौरे में बाय-डिफॉल्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी तकरीबन साथ ही साथ होते हैं. अगर कहीं साथ नहीं होते तो पहले ही पहुंच कर जरूरी इंतजामात का जायजा जरूर ले लेते हैं. गोरखपुर से कैराना कांड तक जो होना था वो तो हो ही गया. आगे कोई और गड़बड़ न हो इसलिए योगी अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ रहे.

शाह के इन दौरों का मकसद तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर महीने होने वाले यूपी दौरे के लिए नींव रखना है, लगे हाथ वो बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को 2019 में फतह के लिए टिप्स भी दे रहे हैं - मगर, सबसे अहम है मुलायम और मायावती के घरों पर भगवा फहराने का मंत्र. जाहिर है यूपी के अनौपचारिक महागठबंधन से चिंता और चुनौती तो बढ़ा ही दी है.

'न 73, न 72 - अबकी बार पूरे 74'

'अबकी बार यूपी में पूरे 74'. मिर्जापुर और वाराणसी के बाद आगरा में भी अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को यही समझाने की कोशिश की. कहीं कोई कन्फ्यूजन न रह जाये इसलिए शाह ने साफ तौर पर समझाया कि 74 का मतलब सिर्फ और सिर्फ 74 - न 73 न 72. 2014 के आम चुनाव में बीजेपी को यूपी की 80 सीटों में से 73 मिली थीं. 2019 में भी ये नंबर कायम रह सकेगा, इस पर शक जताया जा रहा है. कार्यकर्ताओें का मनोबल कम न हो इसलिए शाह उनके सामने 'टारगेट - 74' का लक्ष्य रख रहे हैं.

amit shahशाह की पहली पाठशाला लगी मिर्जापुर में...

शाह की बातों से ये तो लगता है कि बीजेपी चिंतित तो है लेकिन समाजवादी पार्टी और बीएसपी के जोड़ का तोड़ भी निकाल चुकी है. अब तक बीजेपी नेतृत्व का जोर बूथ लेवल कार्यकर्ताओं और पन्ना प्रमुखों पर देखने को मिलता रहा, अब विस्तारकों पर ज्यादा जोर लग रहा है.

महागठबंधन के प्रभाव को बेअसर करने का नुस्खा

बीजेपी कार्यकर्ताओं की मीटिंग में शाह समझाने के लिए आंकड़ों की भी मदद ले रहे हैं - और छोटी से छोटी बातों पर गौर करने को कहते हैं. कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करने के साथ ही वो अहम मसलों पर ताकीद भी करते रहते हैं.

1. अबकी बार 51% से कम नहीं: 2014 के आम चुनाव में बीजेपी को कुल 42.6 फीसदी वोट मिले थे - और समाजवादी पार्टी और बीएसपी के संयुक्त वोट 42.2 फीसदी रहे. अगर 2019 में दोनों साथ चुनाव लड़ते हैं तो मुकाबला बराबरी पर रहेगा. वैसे दोनों के बीच मिल कर बीजेपी को चुनौती देने का आधार भी यही है. 2014 में अलग अलग समाजवादी पार्टी को 22.4 और बीएसपी को 19.8 फीसदी वोट मिले थे.

बीजेपी की चिंता ये है कि 2017 में वो अपना वोट परसेंटेज कायम नहीं रख पायी, जबकि समाजवादी पार्टी ने 6 फीसदी और बीएसपी ने 3 फीसदी का इजाफा कर लिया.

तीन साल बाद बीजेपी विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत के साथ जीती जरूर लेकिन उसका वोट शेयर 42.2 से लुढ़क कर 41.6 फीसदी पर पहुंच गया. जहां तक समाजवादी पार्टी और बीएसपी दोनों के मिले हुए वोट शेयर की बात है तो वो 2017 में 50.5 पहुंच गया था.

amit shahबनारस के बाद आगरा की बैठक में निर्णायक हुंकार : अबकी बार, 51% दरकार. यही वजह है कि अमित शाह ने 74 सीटों के साथ साथ 51 फीसदी वोट शेयर का लक्ष्य रखा है. आंकड़ों पर चर्चा के बाद शाह समझाते हैं कि अगर 51 फीसदी वोट हासिल कर लिये तो विपक्ष की चुनौती खत्म. मगर, ये सब इतना आसान भी तो नहीं.

2. वोटर लिस्ट पर नजर रखना जरूरी: बीजेपी नेतृत्व मानता है कि वोटर लिस्ट पर भी कड़ी नजर रखना बेहद जरूरी है. वोटर लिस्ट के सत्यापन के लिए बीजेपी ने डोर टू डोर और मैन टू मैन प्रोग्राम बनाया है. बीजेपी का आईटी सेल भी सोशल मीडिया के जरिये मैन टू मैन तक पहुंच बनाने के लिए काम करेगा.

3. बूथ स्तर पर दो-दो टीमें होंगी: बूथ स्तर पर दो तरह की टीमें सक्रिय की जाएंगी. एक टीम तो पार्टी के परंपरागत वोटर के साथ संवाद कायम रखने की कोशिश करेगी. दूसरी टीम उन लोगों से संपर्क और संवाद स्थापित करने की कोशिश करेगी जो अब तक बीजेपी से दूरी बनाये हुए हैं. वैसे आरएसएस के कार्यकर्ताओं के जिम्मे भी तो यही काम होता है.

4. कार्यकर्ता लोगों से सीधे कनेक्ट रहने की कोशिश करें: कार्यकर्ताओें से कहा जा रहा है कि वे लोगों की समस्याओं के समाधान में सक्रिय भूमिका निभाये. कार्यकर्ता खुद भी सरकार द्वारा कराये जा रहे विकास के कामों से जुड़ने की कोशिश करें, ताकि संदेश जाये कि उनकी कोशिश से ही काम हो रहा है.

मिर्जापुर, वाराणसी और आगरा में भी अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को ये सारे टिप्स दिये और बताया कि अगर इस पर अमल हो गया तो समझो मायावती और अखिलेश यादव के घरों पर बीजेपी का झंडा फहराया जा सकता है.

5. जातीय समीकरण न बनने देने पर जोर: यूपी में महागठबंधन बनने पर बड़ी चिंता ये है कि कहीं दलित, मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग साथ मिल कर सपोर्ट न कर दे. अगर ऐसा हुआ तो सबसे ज्यादा नुकसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हो सकता है. कैराना का नतीजा इसकी सबसे सही मिसाल है. बीजेपी की कोशिश होगी कि किसी भी सूरत में ऐसे समीकरण न बनने पायें.

शाह बीजेपी कार्यकर्ताओं को साफ करना चाहते हैं कि अगर इन बातों पर ध्यान दिया जाये तो विपक्ष को शिकस्त देना मुश्किल नहीं होगा. बाकी बातों के साथ साथ शाह एक और मंत्र देना नहीं भूलते - 'आपसी मतभेद भूल जाएं और मिलजुल कर काम करें.'

इन्हें भी पढ़ें :

मोदी की अयोध्या से दूरी योगी को युवा 'लौह पुरुष' बनाने की तैयारी लगती है

'लक्ष्मणपुरी' मांग कर भाजपा ने साबित कर दिया कि 2019 में धर्म ही मुद्दा होगा

मगहर पहुंचे काशी के सांसद PM मोदी का कबीर से 'संपर्क फॉर समर्थन'!

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय