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Updated: 11 नवम्बर, 2022 07:56 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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ये तो बहुत पहले ही तय हो चुका है कि बीजेपी 2024 से पहले होने वाले सारे ही विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नाम पर लड़ेगी - और गुजरात का तो पहला ही हक बनता है. अब तक बीजेपी ऐसे प्रयोग उन राज्यों में ही किया करती थी जहां उसकी सरकार नहीं होती थी. ऐसे राज्यों में होने वाले चुनावों में बीजेपी मुख्यमंत्री का चेहरा बताने से भी बचती देखी जाती रही है.

गुजरात में 1 और 5 दिसंबर को दो चरणों में चुनाव होने जा रहे हैं और उसके लिए बीजेपी के उम्मीदवारों की पहली सूची घोषित भी कर दी गयी है. बीजेपी की ये लिस्ट चुनावी तैयारियों की व्यापक बंदोबस्त का बढ़िया नमूना लगती है - पहली सूची के माध्यम से बीजेपी ने अपने हिसाब से मोरबी हादसे पर बयान भी जारी कर दिया है और ये भी जताने की कोशिश की है कि सत्ता में वापसी के लिए वो कुछ भी करने को तैयार है.

मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल (Bhupendra Patel) को उनके इलाके घाटलोडिया विधानसभा सीट से ही चुनाव मैदान में उतारा गया है. पहले ये सीट यूपी की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल का चुनाव क्षेत्र हुआ करता था. आनंदी बेन के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद हुए चुनाव में उनकी ही सलाह पर भूपेंद्र पटेल को उत्तराधिकारी बनाया गया था. 2017 में पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री भी आनंदी बेन की सिफारिश पर ही बनाया गया - और आखिरी मुहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगायी थी.

भूपेंद्र पटेल को जब मुख्यमंत्री बनाया गया तो एक नाम खास तौर पर चर्चा में रहा - मनसुख मंडाविया का. गुजरात से आने वाले मनसुख मंडाविया फिलहाल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हैं. तब ये भी चर्चा रही कि चुनाव से पहले मनसुख मंडाविया ही भूपेंद्र पटेल की जगह ले सकते हैं. और अगर ऐसा न हुआ तो चुनाव बाद तो ये पक्का माना जा रहा था, लेकिन हाल की गतिविधियां बता रही हैं कि चुनाव बाद भी भूपेंद्र पटेल को कोई खतरा नहीं होने वाला है.

चुनाव नतीजों की बात अलग है, लेकिन अब ये मान कर चलना चाहिये कि भूपेंद्र पटेल की कुर्सी बाद के लिए भी पक्की कर दी गयी है - और सबसे बड़ी वजह है भूपेंद्र पटेल का पाटीदार समुदाय से होना. वैसे विजय रुपाणी को हटाकर 2021 में भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाये जाने की भी वजह यही रही.

अव्वल तो पाटीदार वोटर से बीजेपी को अब कोई खास डर भी नहीं रह गया होगा - क्योंकि पाटीदार अनामत आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल कांग्रेस होते हुए बीजेपी में पहले ही आ चुके हैं और उम्मीदवारों की पहली ही सूची में उनको जगह भी मिली हुई है.

ध्यान देने वाली बात ये है कि भूपेंद्र पटेल के रास्ते के कांटे पहले ही साफ कर दिये गये हैं. पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी और पूर्व डिप्टी सीएम नितिन पटेल का कैंडिडेट लिस्ट आने से पहले ही टिकट न दिये जाने की रिक्वेस्ट के मायने तो यही समझ में आते हैं.

बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में चर्चा तो सभी 182 सीटों पर हुई, लेकिन 160 उम्मीदवार ही घोषित किये गये - जाहिर है 22 सीटों पर कोई बड़ा ही बड़ा ही पेंच फंसा होगा. चुनाव समिति की मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल थे.

बीजेपी की पहली सूची देखने से लग रहा है कि गुजरात जीतने के लिए पार्टी ने बहुत कुछ बदल डाला है. बीजेपी की पहली सूची में हार्दिक पटेल सहित कांग्रेस से आये नेताओं, क्रिकेटर अजय जडेजा और हाल के मोरबी हादसे का असर भी देखा जा सकता है - और बड़ी बात ये है कि बीजेपी ने 38 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिये हैं.

मोरबी हादसे की सजा - और इनाम!

बीजेपी उम्मीदवारों की पहली सूची में एक खास प्रभाव जो नजर आ रहा है, वो है मोरबी हादसे का असर. गुजरात के मोरबी पुल हादसे में 135 लोगों की मौत हो गयी थी और हादसे के लिए किसी न किसी रूप में जिम्मेदार मानते हुए 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया.

bhupendra patel, narendra modi, amit shahबीजेपी उम्मीदवारों की लिस्ट बता रही है कि पार्टी गुजरात चुनाव को लेकर कितनी चिंतित है!

मोरबी हादसे की गाज स्थानीय बीजेपी विधायक बृजेश मेरजा पर भी गिरी है. बृजेश मेरजा गुजरात की भूपेंद्र पटेल सरकार में स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री भी हैं - लेकिन आने वाले चुनाव के लिए उनका टिकट काट दिया गया है. हादसे को लेकर गुजरात में सत्ताधारी बीजेपी राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर रही.

बृजेश मेरजा की जगह बीजेपी ने कांतिलाल अमृतिया को उम्मीदवार बनाया है. मोरबी हादसे के दौरान कांतिलाल अमृतिया को लोगों की जान बचाते हुए देखा गया था. कांतिलाल अमृतिया के नदी में छलांग लगाने की कहानी भी गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल जैसी ही लगती है. एक बार आनंदी बेन पटेल की कुछ छात्राएं नदी में डूबने लगी थीं और तभी उनको बचाने के लिए आनंदी बेन पटेल ने सीधे नदी में छलांग लगा दी थी.

ये आनंदी बेन पटेल की वो हिम्मत ही रही जिसने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान खींचा और उनको राजनीति में लाये - और आनंदी बेन को मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने पर गुजरात का मुख्यमंत्री बनाये जाने के पीछे भी उनकी हिम्मत देख कर हुआ भरोसा ही रहा.

कह सकते हैं कि अमृतिया को एक नेक काम का इनाम मिला है और मेरजा को इलाके का विधायक होने के नाते सजा मिली है, लेकिन सवाल है कि क्या बृजेश मेरजा ही अकेले मोरबी हादसे के लिए जिम्मेदार रहे - और बृजेश मेरजा की राजनीतिक बलि चढ़ा देने के बाद सरकार में बैठे बड़े और प्रभावी लोग पाप मुक्त हो जाएंगे?

मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को घाटलोडिया से उम्मीदवार बनाये जाने के अलावा जिन बड़े चेहरों को टिकट मिले हैं, उनमें किरीट सिंह राणा और कुंवर जी बाबरिया का नाम लिया जा सकता है. वैसे ही रिवाबा जडेजा को टिकट मिलना लोगों का ध्यान खींचने वाला है. रिवाबा जडेजा करीब तीन साल से बीजेपी की राजनीति में एक्टिव रही हैं, लेकिन उनकी खास पहचान क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी होना है - रिवाबा जडेजा को जामनगर विधानसभा सीट से बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है.

राजकोट के कारोबारी परिवार से आने वाली रिवाबा ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहीं. रिवाबा पहले राजपूतों की करणी से सेना से भी जुड़ी रहीं. 2016 में रवींद्र जडेजा से शादी के बाद 2019 में वो बीजेपी में शामिल हुईं - और तब से अक्सर बीजेपी के कार्यक्रमों में वो नजर आती रही हैं.

रिवाबा के बीजेपी ज्वाइन करने के कुछ दिन बाद ही रवींद्र जडेजा की बहन नैना कांग्रेस में शामिल हो गयी थीं - और अब चर्चा ये है कि जामनगर के मैदान में कांग्रेस नैना को उतार कर ननद-भौजाई की लड़ाई बना सकती है.

कांग्रेस से आए नेताओं को टिकट

जितने बीजेपी विधायकों के टिकट काटे गये हैं, उतने तो नहीं लेकिन पहली सूची में ऐसे अच्छे खासे नेताओं को जगह मिली है जो 2017 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे. 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थी, जबकि बीजेपी को 99 सीटों पर जीत हासिल हुई थी - 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 92 होता है.

कांग्रेस से बीजेपी में आकर टिकट पाने वाले सबसे बड़ा चेहरा तो हार्दिक पटेल ही हैं, जो वीरमगाम से कमल के चुनाव निशान पर मैदान में उतरने जा रहे हैं. पांच साल पहले हार्दिक पटेल गुजरात की राजनीति में एक ताकतवर युवा नेता हुआ करते थे, लेकिन राहुल गांधी के साथ कई दौर की बातचीत के बावजूद बात नहीं बन पायी और वो कांग्रेस से दूर ही रहे. हालांकि, कांग्रेस ने हार्दिक पटेल के साथ साथ जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर के प्रभाव का पूरा फायदा उठाया. तब के चर्चित तीनों युवा नेताओं में सिर्फ अल्पेश ठाकोर ने ही कांग्रेस ज्वाइन किया और चुनाव लड़ कर विधायक बने, लेकिन बाद में पाला बदल लिये. जिग्नेश मेवाणी ने तब निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, लेकिन अब भी कांग्रेस के साथ बने हुए हैं.

अभी कुछ ही दिन पहले बीजेपी में शामिल हुए विसावदर विधायक हर्षद रीबडिया भी बीजेपी से टिकट लेने में सफल रहे हैं. छोटा उदयपुर के विधायक आदिवासी नेता मोहन सिंह राठवा के बेटे राजेन्द्र सिंह राठवा को तो टिकट मिलना पक्का माना ही जा रहा था. ऐसे कई और भी कांग्रेस नेता हैं जिनको कांग्रेस से बीजेपी में आने का फायदा हुआ है.

38 विधायकों का टिकट काटा जाना

जैसे हिमाचल प्रदेश चुनाव को लेकर सूची आने से पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने पत्र लिख कर टिकट न दिये जाने की गुजारिश कर डाली थी, ठीक वैसा ही गुजरात में विजय रुपाणी और डिप्टी सीएम रहे नितिन पटेल ने किया है, या कह सकते हैं कराया गया है - हो सकता है ये दिल्ली की तरह राज्यों में भी मार्गदर्शक मंडल बनाये जाने की कवायद हो या फिर लंबे अरसे से शासन कर रही बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की काट का इंतजाम हो.

बीजेपी की पहली सूची आने से एक दिन पहले ही विजय रुपाणी और नितिन पटेल ने चुनाव लड़ने को लेकर अनिच्छा जतायी. विजय रुपाणी और नितिन पटेल के अलावा गुजरात सरकार में मंत्री रहे भूपेंद्र सिंह चूड़ासमा, प्रदीप सिंह जडेजा, सौरभ पटेल, विभावरी बेन दवे, कौशिक पटेल, वल्लभ काकडिया और योगेश पटेल जैसे नेताओं ने उम्मीदवारी घोषित होने से पहले ही अपने नाम वापस ले लिये.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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