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Updated: 22 सितम्बर, 2018 06:51 PM
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मायावती और ममता बनर्जी - दोनों के ही नाम विपक्षी गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में अचानक उभरे. जब चर्चा चली तो मायावती कई मामलों में ममता बनर्जी पर भारी पड़ती भी दिखीं. अब जब मायावती ने छत्तीसगढ़ में अजित जोगी से हाथ मिला लिया है और मध्य प्रदेश में अकेले उतरने का ऐलान कर दिया है. मजबूर कांग्रेस बस मन मसोस कर रह गयी है. फिर भी कांग्रेस निराश नहीं है. अब वो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से हाथ मिलाने की कोशिश में लग गयी है.

पश्चिम बंगाल कांग्रेस में राहुल गांधी ने जो ताजा बदलाव किया है उसके पीछे सबसे बड़ी वजह ममता बनर्जी ही मानी जा रही हैं. वैसे क्या गारंटी है कि ममता मान जाएंगी और मायावती की तरह कांग्रेस को गठबंधन के लिए मना नहीं कर देंगी.

कांग्रेस में फेरबदल के पीछे ममता की भूमिका

सामान्य रूप से देखें तो कांग्रेस नेतृत्व ने पश्चिम बंगाल में भी बिहार की तरह ही बस बदलाव किया है. बिहार में कोई स्थाई अध्यक्ष नहीं था. अब मदन मोहन झा को कमान सौंप दी गयी है. पश्चिम बंगाल में अधीर रंजन चौधरी को 2014 के आम चुनाव से पहले ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था. अधीर रंजन चौधरी करीब पांच साल पूरे कर चुके हैं - और उनके कामकाज के तौर तरीके से अधिकांश नेता नाराज बताये जा रहे थे. मगर, नेताओं की नाराजगी ही इतनी महत्वपूर्ण होती तो पंजाब और हरियाणा से लेकर मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित कई राज्यों में कई बार नेतृत्व परिवर्तन हो चुका होता.

mamata banerjee, rahul gandhiमायावती के बाद अब ममता की बारी...

राहुल गांधी ने अधीर रंजन चौधरी को हटाकर सीनियर नेता सोमेन मित्रा को पश्चिम बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया है. अधीर रंजन चौधरी को चुनाव अभियान की जिम्मेदारी दी गयी है.

कहते हैं अधीर रंजन चौधरी को बीजेपी, विशेष रूप से मुकुल रॉय से उनकी नजदीकी नुकसानदेह साबित हुई है. कांग्रेस आला कमान अधीर रंजन चौधरी से इसलिए भी नाराज बताया जा रहा है क्योंकि मुकुल और बीजेपी के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर बनाये हुए थे. अगर कभी कोई बयान देना होता तो भी अधीर रंजन चौधरी बचते नजर आते रहे.

दूसरी तरफ, ममता के प्रति अधीर रंजन चौधरी बेहद सख्त स्टैंड अपनाये हुए थे. 2016 के विधान सभा चुनाव में ममता की तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच किसी तरह के समझौते के खिलाफ अधीर रंजन चौधरी खुल कर खड़े देखे गये. ममता बनर्जी उस दौरान कई बार सोनिया गांधी से मिली थीं. तब ममता की कोशिश यही रही कि कांग्रेस भले ही तृणमूल से गठबंधन न हो लेकिन वो लेफ्ट से तो कतई हाथ न मिलाये. मगर, ऐसा हो न सका. हुआ वही जो ममता नहीं चाहती थीं और अधीर रंजन चौधरी को जो पसंद था.

अब अगर कांग्रेस आगे के लिए ममता बनर्जी के साथ कोई समझौता करना चाहती है तो अधीर रंजन चौधरी उसमें दीवार बन कर खड़े हो जाते रहे. एक और खास बात ये है कि उनकी जगह बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये गये सोमेन मित्रा टीएमसी से ही कांग्रेस में आये हुए हैं.

अधीर रंजन चौधरी सबको साथ लेकर चलने में तो लड़खड़ा ही रहे थे, ऊपर से पश्चिम बंगाल प्रभारी गौरव गोगोई से उनकी कभी बनी ही नहीं. गौरव गोगोई की राहुल गांधी से करीबी भी किसी से छिपी हुई नहीं है. याद करें तो देखेंगे कि गौरव गोगोई को भी तरजीह मिलने से असम के बड़े नेता हिमंता बिस्वा सरमा नाराज हुए और बीजेपी में जा मिले.

ममता कांग्रेस से गठबंधन क्यों करेंगी

2019 में ममता बनर्जी के कांग्रेस से गठबंधन की कोई वजह नहीं दिखायी देती है. ममता बनर्जी भला क्यों अपने हिस्से की सीटें किसी और के साथ शेयर करेंगी. ममता की तो कोशिश होगी कि 2019 में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतें और केंद्र में जो भी भूमिका हासिल हो उनका दबदबा कायम रहे.

राहुल गांधी क्यों भूल रहे हैं कि ममता बनर्जी ऐसे माहौल में विधानसभा चुनाव जीतीं थी जब उनके कई साथी नेताओें पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. ममता ने सिर्फ अपने बूते न सिर्फ उन सबको चुनाव जितवाया बल्कि मंत्री भी बनाया. अभी तो वो गैर-कांग्रेसी विपक्षी खेमे में प्रधानमंत्री पद की पसंदीदा उम्मीदवार हैं. हालांकि, वो ये नहीं चाहतीं कि 2019 के लिए किसी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाये.

टीएमसी के साथ गठबंधन को लेकर कोई भी सपना पालने से पहले कांग्रेस को ममता की रणनीति अच्छी तरह समझ लेनी चाहिये. ममता वैसे गठबंधन के पक्ष में कतई नहीं हैं जैसा कांग्रेस चाहती है. कांग्रेस हर राज्य में क्षेत्रीय पार्टियों से सीटें शेयर करना चाहती है. ममता का सीधा सपाट फॉर्मूला है - जो जहां मजबूत स्थिति में है पूरी ताकत से लड़े और बीजेपी के उम्मीदवारों को जैसे भी हो सके हराये. इस सिलसिले में ममता पहले ही बता चुकी हैं कि कांग्रेस को कर्नाटक में, आरजेडी को बिहार में और समाजवादी पार्टी-बीएसपी को यूपी में मिल कर बीजेपी को हराने की कोशिश करनी चाहिये.

कोशिश में तो कभी कोई बुराई नहीं होती, लेकिन जिस रास्ते ममता बनर्जी चल रही हैं उसमें पश्चिम बंगाल में तो कांग्रेस के साथ चलने के बिलुकल भी आसार नहीं लगते.

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