New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 17 अक्टूबर, 2022 06:11 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
  • Total Shares

कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को लेकर चल रही वोटिंग से पहले शशि थरूर ने ट्वीट किया कि 'कुछ लड़ाइयां हम इसलिए भी लड़ते हैं कि इतिहास याद रख सके कि वर्तमान मूक न था.' इसके बाद थरूर ने अंग्रेजी में एक ट्वीट किया. जिसमें लिखा था कि 'कुछ लोग हार से बचने के लिए सुरक्षित खेलते है. लेकिन, अगर आप केवल सुरक्षित खेलेंगे, तो आप जरूर हारेंगे.' कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव से पहले शशि थरूर के ये ट्वीट क्या इशारा कर रहे हैं, इस पर आगे चर्चा करेंगे. लेकिन, उससे पहले ये जानना जरूरी है कि शशि थरूर ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बनने के साथ ही पार्टी आलाकमान यानी गांधी परिवार को चुनौती दे डाली थी. ये अलग बात है कि थरूर ने गांधी परिवार के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया. लेकिन, सियासी गलियारों में यही चर्चा थी कि मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने खड़े होकर शशि थरूर ने गांधी परिवार के खिलाफ बगावत का आगाज किया है. 

दरअसल, कांग्रेस से गुलाम नबी आजाद की विदाई के बाद वरिष्ठ पार्टी नेता और सांसद शशि थरूर ने पार्टी अध्यक्ष के लिए दावेदारी कर सबको चौंका दिया था. शशि थरूर की उम्मीदवारी इसलिए भी चौंकाने वाली थी, क्योंकि वह असंतुष्ट गुट जी-23 के नेता हैं. वैसे, शशि थरूर के सामने मल्लिकार्जुन खड़गे का पलड़ा ज्यादा भारी नजर आता है. क्योंकि, खड़गे पर कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार की ओर से उतारे गए अघोषित 'आधिकारिक उम्मीदवार' का टैग पहले ही लग चुका है. इसके बावजूद थरूर ने खड़गे के सामने नामांकन किया. और, अब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए वोटिंग से पहले थरूर ट्वीट कर मूक न रहने सुरक्षित खेल न खेलने जैसी बातें कर रहे हैं. जो सीधे तौर पर गांधी परिवार के खिलाफ ही मानी जाएंगी.

वैसे, इन ट्वीट को देखकर ऐसा लग रहा है कि शशि थरूर अपने एग्जिट प्लान पर काम कर रहे हैं. क्योंकि, अब तक कांग्रेस में रहते हुए गांधी परिवार को चुनौती देने वाले सभी नेताओं को आखिरकार पार्टी छोड़नी ही पड़ती है. और, गुलाम नबी आजाद इसके सबसे ताजातरीन उदाहरण हैं. खैर, शशि थरूर के एग्जिट प्लान पर बात करने से पहले उनके कुछ बयानों पर नजर डालना जरूरी है.

Shashi Tharoor Twitterशशि थरूर ने कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव से पहले अपने बेबाक बयानों से गांधी परिवार को परोक्ष रूप से निशाने पर तो ले ही लिया है.

शशि थरूर ने अब तक क्या कहा?

- जिन्हें लगता है कि पार्टी में सबकुछ ठीक है, वो मुझे वोट न दें. जो लोग बदलाव चाहते हैं, वो मुझे जिताएं.

- बड़े-बड़े नेता उस तरफ नजर आ रहे हैं. और, मेरे साथ कार्यकर्ता खड़े हैं.

- कांग्रेस में विकेंद्रीकरण की व्यवस्था होनी चाहिए. ताकि, सारे निर्णय दिल्ली से ही न लिया जाएं.

- 2024 में कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार का फैसला सहयोगी दलों से चर्चा के बाद ही लिया जाना चाहिए.

क्या है थरूर का एग्जिट प्लान?

शशि थरूर तकरीबन हर राज्य में एक बात निश्चित तौर से दोहराते रहे हैं कि 'उनसे गांधी परिवार ने वादा किया है कि वे तटस्थ रहेंगे.' और, शशि थरूर ये क्यों कह रहे हैं, इसको समझना इतना भी मुश्किल नहीं है. दरअसल, थरूर के कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन के बाद से ही अब तक दिए गए बयानों पर नजर डालें. तो, साफ हो जाता है कि उनके निशाने पर परोक्ष रूप से गांधी परिवार ही रहा है. और, अगर कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में शशि थरूर की हार होती है. जो पहले से ही तय है. तो, गांधी परिवार पर कांग्रेस को अपने इशारों पर चलाने के आरोप और पुख्ता हो जाएंगे. क्योंकि, राहुल गांधी ने जब अपनी ही सरकार के अध्यादेश को संसद में फाड़ा था. तो, भी सियासत के साथ जनता में यही संदेश गया था कि भले ही मनमोहन सिंह पीएम हों. लेकिन, सत्ता का रिमोट गांधी परिवार के हाथों में ही है.

वैसे, मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी यह नहीं माना जाएगा कि पार्टी से जुड़े तमाम फैसले वो गांधी परिवार को नजरअंदाज कर लेंगे. इस स्थिति में शशि थरूर की बयानबाजी पर परोक्ष रूप से मुहर लगेगी. और, कांग्रेस आलाकमान का मल्लिकार्जुन खड़गे के जरिये पार्टी पर अपना प्रभाव और पकड़ बनाए रखने का सपना पूरा करने में दिक्कतें आना तय है. वहीं, जिस बेबाकी के साथ शशि थरूर अभी से 2024 को लेकर बयान दे रहे हैं. वो कांग्रेस आलाकमान के लिए मुश्किल बढ़ाने वाला ही होगा. क्योंकि, 2024 से पहले संयुक्त विपक्ष की कोशिशों में कांग्रेस की ओर से एकमात्र शर्त सिर्फ राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने की होगी. और, शायद ही कोई सहयोगी सियासी दल कांग्रेस की आज की हालत को देखते हुए इसके लिए तैयार होगा.

अब अगर शशि थरूर की भाजपा में एंट्री का बात करें, तो यह थरूर के साथ ही भाजपा के लिए भी फायदेमंद सौदा हो सकता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां मल्लिकार्जुन खड़गे अपनी सीट नहीं बचा सके थे. शशि थरूर ने केरल के तिरुवनंतपुरम की सीट से जीत हासिल की थी. हालांकि, शशि थरूर मास लीडर के तौर पर पहचान नहीं रखते हैं. लेकिन, उन्हें बुद्धिजीवी वर्ग का बड़ा नेता माना जाता है. और, अगर भाजपा में उनकी एंट्री हो जाती है. तो, वह केरल समेत दक्षिण के राज्यों में भाजपा के लिए अच्छी-खासी लॉबिंग कर सकते हैं. वैसे भी जी-23 नेता के तौर पर थरूर को कांग्रेस से आज नहीं तो कल अलविदा कहना ही पड़ेगा. लेकिन, उनके हालिया बयानों को देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि वो 2024 से पहले अपना रास्ता तैयार कर ही लेंगे.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय