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Updated: 28 दिसम्बर, 2018 06:50 PM
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पतंजलि वाले बाबा रामदेव का कुदरत के साथ शुद्ध-देशी-रोमांस रिश्ता है और टैगलाइन इसका सबूत है - प्रकृति का आशीर्वाद. बाबा रामदेव योग गुरु से भले ही बिजनेस गुरु बन गये हों, लेकिन क्या वो किसान विरोधी हो सकते हैं?

ये ठीक है कि बाबा रामदेव कभी फास्ट फूड के खिलाफ अलख जगाते थे और एक दिन अचानक नूडल्स बेचने लगे. पतंजलि के नूडल्स बेचना शुरू किया तो मार्केट में जैसे कोहराम ही मच गया. जींस का विरोध करते थे, जींस बनाने भी लगे. गीता उपदेश है - परिवर्तन संसार का नियम है. गीता को कौन नहीं मानता, राहुल गांधी भी तो दुहाई देते ही हैं.

बाबा को किसान तो पसंद हैं!

मुश्किल से महीना भर हुआ होगा. बाबा रामदेव फूड समिट में हिस्सा लेने रांची पहुंचे थे. बाबा रामदेव बोले सरकार को ऐसी पहल करनी चाहिये कि किसानों को आंदोलन की जरूरत ही न पड़े. सरकार को खुद किसानों की चिंता करनी चाहिये. किसानों के प्रदर्शन को लेकर पत्रकारों के सवाल के जबाव में बाबा रामदेव ने कहा, 'किसान देश की आत्मा हैं... मैं किसान का बेटा हूं... किसानों की जो भी जायज मांगे हैं, उन्हें मोदी सरकार को माननी चाहिए.'

'2050 तक भारत को विश्व में सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बना देना है,' के उद्घोष के साथ बाबा रामदेव ने भरोसा दिलाया - 'जहां तक झारखंड के किसानों की बात है तो यहां उनके उत्पादों को लागत के सवा से डेढ़ गुना अधिक मूल्य पर पतंजलि खरीदेगा.'

झारखंड के ग्लोबल एग्रीकल्चर एंड फूड समिट में बाबा रामदेव ने कहा, 'किसान बाजार की चिंता ना करें. किसानों से दूध, जैविक खेती से उपजी चीजें और मधु पतंजलि खरीद लेगी.'

करीब साल भर पहले जुलाई, 2017 की बात है. घोषणा हुई, 'पतंजलि संस्थान उत्तराखंड के किसानों से एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कृषि उत्पादन खरीदेगा.' ये घोषणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ एक मीटिंग के दौरान बाबा रामदेव और उनके बिजनेस पार्टनर आचार्य बालकृष्ण ने की थी.

फायदे में किसानों के साथ साझेदारी से परहेज क्यों?

राजनीति की बात और है - और बिजनेस की और. वैसे ये बाद बाबा रामदेव से बेहतर कौन समझ और अनुभव कर सकता है. समझने में मुश्किल हो तो बाबा रामदेव के हाल के बयानों को थोड़ा गूगल करके पढ़ लीजिए. खुद बाबा रामदेव अपनी बातों से कन्फ्यूजन दूर कर देंगे.

baba ramdevकिसानों के प्रति सिर्फ सरकार नहीं कारोबारियों के भी कुछ कर्तव्य होने चाहिये या नहीं?

उत्तराखंड के बॉयोडाइवर्सिटी बोर्ड ने बाबा रामदेव की कंपनी से किसानों को कारोबार में हुआ फायदा शेयर करने को कहा था. बॉयोडाइवर्सिटी एक्ट के तहत बोर्ड ने दिव्य फार्मेसी को 2014-15 के सवा चार अरब रुपये के राजस्व में से कंपनी के दो करोड़ 40 लाख रुपये की हिस्सेदारी को कानूनी दायित्व के तौर पर किसानों के साथ साझा करने को कहा था.

बोर्ड के आदेश के खिलाफ दिव्य फार्मेसी में उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार याचिका में कहा गया था कि दिव्य फार्मेसी पूरी तरह से भारतीय कंपनी है और उसे 2002 के कानून के तहत मुनाफा साझा न करने की छूट मिलनी चाहिए. हाईकोर्ट ने बॉयोडाइवर्सिटी बोर्ड के आदेश को सही ठहराते हुए दिव्य फार्मेसी की याचिका खारिज कर दी.

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में जैव विविधता कानून 2002 का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय कंपनियों को भी इस तरह के मामलों में विदेशी फर्मों की तरह ही पेश आना चाहिये - क्योंकि वो कारोबार के लिए प्राकृतिक संसाधानों का भरपूर इस्तेमाल करती हैं. ऐसी स्थिति में कंपनियों को किसानों और आदिवासियों के साथ अपना प्रॉफिट शेयर करना चाहिये.

बेशक जैविक संसाधन जिस जगह होते हैं, कोर्ट ने कहा, वो उसी देश या क्षेत्र विशेष की संपत्ति होते हैं, लेकिन - साथ ही, ये उन लोगों की संपत्ति भी होते हैं, जिन्होंने बरसों से उनका संरक्षण किया होता है.

हाल ही में, एक टीवी इंटरव्यू में किसानों के प्रति सरकारी रवैये को लेकर सवाल पूछा गया. बाबा रामदेव का जवाब था - 'सभी पार्टियां केवल किसान पर बात करती हैं. चौधरी चरण सिंह को छोड़ दिया जाए तो किसान का दर्द समझने वाला कोई प्रधानमंत्री नहीं बना.'

बाबा रामदेव के हालिया बयानों के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके मोहभंग को लेकर सवाल हुआ तो भी जवाब में किसान शामिल दिखे, 'राजनीति आज भी जाति पर आधारित है. ये अन्य देशों में नहीं है. कोई भी हो सभी जाति के राजनीति करते हैं. किसान एकजुट हो जाएं तो सबकुछ बदल सकता है.'

स्वदेशी का हिमायती एक योग गुरु, भला किसानों का विरोधी कैसे हो सकता है? खुद को किसान का बेटा बताने वाले. देश के किसानों के प्रति ऐसा भाव रखने वाले बाबा रामदेव आखिर उनके हितों के विरोधी कैसे हो सकते हैं - ये बात उनके प्रशंसकों के लिए निराशाजनक हो सकती है. यकीन नहीं होता, पर उत्तराखंड हाईकोर्ट में बाबा रामदेव की कंपनी दिव्य फार्मेसी की ओर से दी गयी दलीलें संदेह जरूर पैदा करती हैं.

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