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Updated: 10 अप्रिल, 2018 07:24 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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राजनीति में रंग का बहुत महत्व है. तभी तो, जिसके हाथों में सत्ता जाती है, पूरे राज्य को उसी रंग में ढालने की कोशिशें शुरू हो जाती हैं. कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों यूपी का भी है, जिसके भगवाकरण की कोशिशें लगातार जारी हैं. पहले तो मुख्यमंत्री की कुर्सी, तौलिये, पर्दे और सोफे पर केसरिया रंग चढ़ाया गया और अब दलित चेहरा माने जाने वाले अंबेडकर भी केसरिया हो गए हैं, जो अब तक नीले दिखाई देते थे. यूं तो हर सरकार ही सत्ता में आने के बाद अपने हिसाब से चीजों को रंगना शुरू कर देती है, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने तो दलित चेहरों को भी भगवा रंग में रंगना शुरू कर दिया है.

भीमराव अंबेडकर, उत्तर प्रदेश, योगी आदित्यनाथ, भाजपा, बसपा

अंबेडकर कैसे हुए केसरिया?

यूपी में बदायूं जिले के दुगरैया गांव में शुक्रवार रात को भीमराव अंबेडकर की एक मूर्ति को तोड़ दिया गया. बताया जा रहा है कि उस समय वहां पर पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. जब स्थानीय लोगों ने मूर्ति तोड़े जाने के खिलाफ प्रदर्शन किया तो रविवार को नई मूर्ति लगा दी गई, लेकिन इस बार अंबेडकर जी का रंग नीले से बदलकर भगवा हो गया था. समाजवादी पार्टी के विधायक और प्रवक्ता सुनील सिंह सजन ने कहा है कि भाजपा की सरकार सब कुछ भगवा कर देना चाहती है, लेकिन इससे उन्हें कोई फायदा नहीं होगा. हालांकि, बाद में बसपा नेता हिमेंद्र गौतम ने मूर्ति को फिर से नीले रंग में रंगवा दिया. दिलचस्प बात ये है कि जब भगवा रंग में अंबेडकर की मूर्ति को स्थापित क्या गया था, उस समय भी हिमेंद्र गौतम मौजूद थे. आपको बता दें कि कुछ समय पहले ही अंबेडकर के नाम के साथ 'राम जी' आधिकारिक रूप से जोड़ा गया है, जिसे भी भाजपा द्वारा भगवाकरण करने से जोड़ कर देखा जा रहा है.

यूपी की 'रंग-आ-रंग' राजनीति

यूपी की राजनीति में रंग हमेशा से ही अहम रहा है. जिस तरह से इन दिनों योगी आदित्यनाथ हर चीज का भगवाकरण करते दिख रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे समाजवादी पार्टी की सरकार में हर ओर लाल और हरे रंग करने का दौर चला था. बसों-एंबुलेंस से लेकर नोटिस बोर्ड, स्कूली बच्चों के बाटें जाने वाली चीजें जैसे बैग, लैपटॉप आदि का रंग लाल और हरा कर दिया था. यहां तक कि साइकिल पथ को भी लाल रंग से रंग दिया. जब सत्ता मायावती के हाथ थी, तब उन्होंने भी साइन बोर्ड, सजावट की लाइटें, फुटपाथ पर लगी ग्रिल, सरकारी डायरी, कैलेंडर, बसें और यहां तक कि सड़कों के डिवाइडर तक को नीले रंग से रंगवा दिया था.

दूसरे राज्यों में भी होती है रंगों की राजनीति

ऐसा नहीं है कि यूपी अकेला ऐसा राज्य है जहां पर रंग की राजनीति हो रही है. अगर पश्चिम बंगाल चले जाएं तो वहां तृणमूल कांग्रेस का नीला और सफेद रंग हर ओर देखने को मिल जाएगा. बसों, सड़कों, फ्लाईओवर, रोड डिवाइडर और पार्क जैसी जगहों को तो नीले और सफेद रंग में रंगा ही जा चुका है, साथ ही सभी जिले के प्राथमिक विद्यालयों पर भी नीला और सफेद रंग चढ़ाने की तैयारी है. वहीं तमिलनाडु का रुख करते हुए अगर दिवंगत जयललिता की बात करें तो हरा रंग उनका पसंदीदा था. वह अक्सर हरे रंग की साड़ी पहनती थीं, उनकी अंगूठी में लगा पत्थर भी हरा था, यहां तक कि छठी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद जब वह राज्यपाल से मिलीं तो उन्हें हरे रंग का ही गुलदस्ता भी भेंट किया. इतना ही नहीं, 5 दिसंबर 2016 को उनके निधन के बाद अंतिम समय के सफर में भी उन्हें हरे रंग की साड़ी पहनाई गई थी.

कौन सी पार्टी का क्या रंग है?

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)- केसरिया

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस)- आसमानी नीला

बहुजन समाज पार्टी (बसपा)- गहरा नीला

भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीआई)- लाल

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी)- गहरा हरा

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी)- नीला

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी (एनसीपी-एम) - लाल

पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीपी)- हरा

आम आदमी पार्टी- आसमानी नीला

जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू)- हरा

शिवसेना- केसरिया

तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी)- पीला

जाति और धर्म से कैसे है रंग का संबंध?

अगर कोई दलित है, तो उसका पसंदीदा रंग नीला होगा और अगर कोई हिंदू है तो उसका पसंदीदा रंग भगवा होगा. दलितों का नीला रंग भीमराव अंबेडकर के नीले कोट से लिया गया है और हिंदुओं का भगवा रंग श्रीराम के केसरिया झंडे से निकला है. यानी ये रंग पार्टी की विचारधारा के साथ-साथ एक खास समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने का काम भी करते हैं. यही कारण है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी सत्ताधारी पार्टी के रंग में रंग जाती है और हर ओर एक ही रंग दिखाई देने लगता है.

दलित अंबेडकर को लेकर भिड़ रही हैं पार्टियां

दलित चेहरा माने जाने वाले भीमराव अंबेडकर को लेकर कई राजनीतिक पार्टियां भिड़ गई हैं. बहुजन समाज पार्टी अंबेडकर को नीले रंग में देखना चाहती है, लेकिन भाजपा अंबेडकर का भगवाकरण करने में जुटी है. वहीं एनसीपी चाहती है कि अंबेडकर का रंग लाल हो. सवाल ये है कि आखिर अंबेडकर को लेकर इतनी खींच-तान हो क्यों रही है. दरअसल, अंबेडकर एक दलित चेहरा थे और सभी दलितों को अंबेडकर के नाम पर लुभाने की कोशिश का ही नतीजा है कि हर पार्टी अंबेडकर को अपने रंग में रंगना चाहती है. आपको बता दें कि 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल 17 फीसदी आबादी दलित है.

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सत्ता बदलते ही क्यों बदल जाते हैं रंग?

सवाल तो उठना लाजमी है कि आखिर जब किसी राज्य की सरकार बदलती है तो उसी के साथ-साथ चीजों के रंग बदलना क्यों शुरू हो जाते हैं? इसका पहला और सबसे अहम कारण तो ये है कि पार्टियां इस तरह से अपने प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देती हैं. हर पार्टी ने खुद को एक अलग रंग में ढाल रखा है. ऐसे में लोगों को हर ओर दिखने वाले रंग से ही ये अंदाजा हो जाता है कि किस सरकार ने वो काम किया है. वहीं दूसरी ओर इसका सीधा संबंध जाति और धर्म से भी है.

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