New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 17 अगस्त, 2018 01:31 PM
  • Total Shares

अटल बिहारी वाजपेयी इस देश की राष्ट्रीयता के प्राणतत्व थे. भारत क्या है, अगर इसे एक पंक्ति में समझना हो तो अटल बिहारी वाजपेयी का नाम ही काफी है. वे लगभग आधी शताब्दी तक हमारी संसदीय प्रणाली के बेजोड़ नेता रहे. अपनी वक्तृत्व क्षमता से वे लोगों के दिलो में बसते थे. उनकी वाणी पर सरस्वती विराजमान थी. वे उदारता के प्रणेता थे.

समता समरसता की अलख जगाने वाले साधक थे. वे एक ऐसे युग मनीषी थे, जिनके हाथों में काल के कपाल पर लिखने, मिटाने का अमरत्व था. पांच दशक के लंबे संसदीय जीवन मे देश की राजनीति ने इस तपस्वी को सदैव पलकों पर बिठाए रखा. एक ऐसा तपस्वी जो आजीवन राग-अनुराग और लोभ-द्वेष से दूर राजनीति को मानव सेवा की प्रयोगशाला सिद्ध करने में लगा रहा.

atal bihari vajpaye, amit shahअमित शाह ने दी पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि

अटल जी का जीवन आदर्शमयी प्रतिभा का ऐसा इंद्रधनुष था जिसके हर रंग में मौलिकता की छाप थी. पत्रकार का जीवन जिया तो उसके शीर्षस्थ प्रतिमानों के हर खांचे पर कुंदन की तरह खरे उतरे. राष्ट्रधर्म, वीर अर्जुन, पांचजन्य जैसे पत्रों को उनकी प्रमाणिकता और लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचाया. कवि की भूमिका अपनाई तो उदारमना चेतना की समस्त उपमाएं बौनी कर दीं. अंतःकरण से गाया. श्वासों से निभाया. कभी कुछ मांगा भी तो बस इतना-

“मेरे प्रभु!

मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना

गैरों को गले न लगा सकूं

इतनी रुखाई कभी मत देना.”

उनके भीतर का राजनेता हमेशा शोषितों और वंचितों की पीड़ा से तड़पता रहा. उनके राजनीतिक जीवन की बस एक ही दृष्टि रही कि एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकें जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो. वे इसी आदर्श के लिए जिए. इसी की खातिर मरे. जीवन मे न कुछ जोड़ा, न घटाया. सिर्फ दिया. वो भी निस्पृह हाथों से. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीन दयाल उपाध्याय के आदर्शों की फलित भूमि पर उन्होंने राजनीति के जो अजेय सोपान गढ़े वो आज ऐसी लकीर बन चुके हैं जिन्हें पार करने का साहस स्वयं काल के पास भी नही.

देश के सवा सौ करोड़ से ज्यादा लोगों के ‘अटल जी’ यानी अटल बिहारी वाजपेयी हमारी इस राजनीति से कहीं ऊपर थे. मन, कर्म और वचन से राष्ट्रवाद का व्रत लेने वाले वे अकेले राजनेता थे. देश हो या विदेश अपनी पार्टी हो या विरोधी दल सभी उनकी प्रतिभा के कायल थे. सिर्फ़ बीसवीं सदी के ही नहीं वे इक्कीसवीं सदी के भी सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय वक्ता रहे.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अटल बिहारी वाजपेयी में भारत का भविष्य देखा था. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि ‘वे एक दिन भारत का नेतृत्व करेंगे. डा.राममोहर लोहिया उनके हिंदी प्रेम के प्रशंसक थे. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उन्हें संसद में ‘गुरुदेव’ कह कर ही बुलाते थे. डा.मनमोहन सिंह ने न्यूक्लियर डील के दौरान 5 मार्च 2008 को संसद में उन्हें राजनीति का भीष्म पितामह कहा था. इस देश में ऐसे गिनती के लोग होंगे, जिन्हें जनसभा से लेकर लोकसभा तक लोग नि:शब्द होकर सुनते थे.

ग्वालियर के शिंदे की छावनी से 25 दिसंबर 1924 को शुरू हुआ अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक सफर, पत्रकार संपादक, कवि, राजनेता, लोकप्रिय वक्ता से होता भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा था. उनकी यह यात्रा बेहद ही रोचक और अविस्मरणीय रही. तीन बार देश के प्रधानमंत्री बनने वाले अटल बिहारी वाजपेयी सही मायनों में पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे. यानी अब तक बने प्रधानमंत्रियों से इतर न तो वे कभी कांग्रेस में रहे, न नही कांग्रेस के समर्थन से रहे. वो शुद्ध अर्थों में कांग्रेस विरोधी राजनीति की धुरी थे. पंडित नेहरु के बाद वे अकेले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने लगातार तीन जनादेशों के बाद प्रधानमंत्री का पद पाया.

भारतीय राजनीति के इस सदाबहार नायक ने विज्ञान से एम.ए. करने के बाद पत्रकारिता की और तीन समाचार पत्रों ‘राष्ट्रधर्म’, ‘पांचजन्य’ और ‘वीर अर्जुन’ का संपादन भी किया. वाजपेयी जी देश के एक मात्र सांसद थे, जिन्होंने देश की  छह अलग- अलग सीटों से चुनाव जीता था. हाजिर जवाब वाजपेयी पहले प्रधानमंत्री थे, जो प्रधानमंत्री बनने से पहले लंबे समय तक नेता विरोधी दल रहे. भारतीय राजनीति के विस्तृत कैनवास को अटल जी ने सूक्ष्मता और व्यापकता से समझा. वे उसके हर रंग को पहचानते थे. इसलिए प्रभावी रुप से उसे बिखेरते थे. वे ऐसे वक्ता थे जिनके पास इस देश के सवा सौ करोड़ श्रोताओं में से सबके लिए कुछ न कुछ मौलिक था. इसीलिए गए साठ वर्षों से देश उनकी ओर खींचता चला गया.

अटल जी के शासनकाल में भारत दुनिया के उन ताकतवर देशों में शुमार हुआ, जिनका सभी लोहा मानने लगे. पोखरण में परमाणु विस्फोटों की श्रृंखला से हम दुनिया के सामने सीना तान सके. प्रधानमंत्री रहते उन्होंने ‘भय’ और ‘भूखमुक्त’ भारत का सपना देखा था. बतौर विदेशमंत्री उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में पहली बार हिंदी को गुंजाया था. अटल जी जीवन भर इस घटना को अपना सबसे सुखद क्षण मानते रहे. जिनेवा के उस अवसर को आज भी भारतीय कूटनीति की मिसाल कहा जाता है जब भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व करते हुए आतंकवाद के सवाल पर वाजपेयी जी ने पाकिस्तान को अलग- थलग कर दिया था. तब देश के प्रधानमंत्री पी.वी नरसिंह राव थे. ये उनकी ही सोच थी जो संकीर्णताओं की दहलीज पारकर चमकती थी और सीधा विश्व चेतना को संबोधित करती थी कि मन हार कर मैदान नहीं जीते जाते. न मैदान जीतने से मन जीते जाते हैं. ये बात उन्होंने तब कही थी जब 14 साल बाद भारतीय टीम पाकिस्तान के ऐतिहासिक क्रिकेट दौरे पर गई थी.

वे देश के चारों कोनों को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी अविस्मरणीय योजना के शिल्पी थे. नदियों के एकीकरण जैसे कालजयी स्वप्न के द्रष्टा थे. मानव के रूप में महामानव थे. असंभव की किताबों पर जय का चक्रवर्ती निनाद करने वाले मानवता के स्वयंसेवक थे. उनकी स्मृतियों को नमन. अटल जी को कोटि-कोटि नमन.

(यह लेख सबसे पहले अमित शाह के फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुआ है)

ये भी पढ़ें -

क्‍या वाकई अटलजी और मोदी के रिश्तों में कड़वाहट थी?

वाजपेयी के राजधर्म' को निभाने का मोदी के लिए आखिरी मौका

वाजपेई का 56 इंच का सीना दिखाती है पोखरण की कहानी

लेखक

अमित शाह अमित शाह @amitshah.official

लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय