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Updated: 12 अगस्त, 2016 09:26 PM
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बात ये उस राजधर्म की नहीं जो कभी अटल बिहारी वाजपेयी ने नरेंद्र मोदी खातिर सलाहियत में कहा था - क्योंकि गुजरते वक्त के साथ वे बातें बहुत पीछे छूट चुकी हैं. बात ये उस राजधर्म की है जो वाजपेयी ने जम्मू कश्मीर को लेकर कहे थे - कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत. जम्मू-कश्मीर में महीने भर से ज्यादा वक्त से जारी हिंसा और कर्फ्यू के दरम्यान वाजपेयी की बातें बार बार चर्चा का हिस्सा बन रही हैं.

वाजपेयी का राजधर्म

प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने जम्मू कश्मीर दौरे में वाजपेयी विजन की बात जिक्र जरूर करते हैं और उसी को घाटी में अमन चैन का सबसे कारगर उपाय भी बताते रहे हैं.

विपक्षी नेता भले ही अपनी राजनीतिक मजबूरी के चलते इसे ये कहते हुए खारिज कर दे - वाजपेयी की बातें मोदी के मुहं से शोभा नहीं देतीं, वो अलग बात है.

खुद जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी वाजपेयी फॉर्मूले पर फिर से अमल की कोशिशों की हिमायती नजर आती रही हैं - क्योंकि उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद भी वाजपेयी फॉर्मूले के मुरीद रहे. महबूबा कहती भी रही हैं कि जब उनके पिता मोदी से हाथ मिला रहे थे तो लगा जैसे करोड़ों लोगों से हाथ मिला रहे हों.

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महबूबा कश्मीर के लोगों को यही बता रही हैं कि बीजेपी के साथ मिल कर सरकार बनाने का निर्णय बिलकुल सही था. खुद मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर महबूबा ने यही जताने की कोशिश की है कि उनके पिता की तरह उनका भी फैसला कहीं से भी गलत नहीं है. भले ही उन पर सुरक्षा बलों के हाथों मारे गये नौजवानों के परिवारों को रोने के लिए कंधा देने से लेकर नागपुर से कंट्रोल होने तक के इल्जाम लगते रहें - फिर भी, वो लोगों को पॉलिटिकली हैंडल करने की कोशिश तो कर ही रही हैं - 'किसी की कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी.' बुरहान वानी के मारे जाने के बाद फैली हिंसा पर महबूबा का यही बयान था.

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जम्मू कश्मीर पर सभी दल एकमत

हाल में गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात के बाद भी महबूबा ने जोर देकर कश्मीर में अमन के लिए वाजपेयी फॉर्मूले पर फिर से विचार कर आगे बढ़ने की ही बात की थी.

लेकिन क्या वाजपेयी फॉर्मूला अब भी कारगर होगा. मोदी ने भी शपथ के मौके पर पाक पीएम को बुलाने से लेकर काबुल से सीधे दिल्ली आने की बजाये रास्ते बदल कर लाहौर में नवाज शरीफ को बधाई देने पहुंचे थे.

अब इसके बावजूद अगर पाक शराफत नहीं दिखा रहा तो क्या फिर से लाहौर बस में ही सवार होकर जाएं, ये बात बहुत जमती तो नहीं है. तो क्या अब भी पाकिस्तान से वाजपेयी की जबान में ही बात करने की जरूरत है या फिर नवाज के तथाकथित शराफत वाले अंदाज में - क्योंकि वक्त के साथ हर फॉर्मूला आउटडेटेड हो जाता है.

मोदीफाईड राजधर्म

राजनाथ सिंह का कहना है कि अब जम्मू-कश्मीर नहीं बल्कि पीओके पर बात होगी. निश्चित तौर पर होनी चाहिए - और बातों के भूत जब लातों से नहीं मानते तो दूसरे रास्ते भी अख्तियार करने चाहिये. बाकी मामलों में भले ही ये थोड़ा अटपटा लगे लेकिन पाकिस्तान के रवैये को देखते हुए ये मुहावरा बेहद सटीक लग रहा है. फिलहाल ये भी सोचने की जरूरत नहीं है कि मोदी सरकार के म्यांमार ऑपरेशन को लेकर कितनी और किस तरह की कंट्रोवर्सी हुई.

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बात देश की आने पर विपक्ष भी सरकार का पूरे मन से साथ देगा. जीएसटी पर कांग्रेस और नीतीश कुमार का मोदी को मिला साथ ताजा मिसाल है. उसके बाद तो संसद के दोनों सदनों ने भी एक मत होकर जम्मू कश्मीर पर प्रस्ताव पास कर ही दिये हैं.

प्लस प्वाइंट ये है कि मोदी की पार्टी जम्मू कश्मीर में महबूबा के साथ साझीदार भी है - और वो भी बातचीत से बात नहीं बनने पर मोदी की बात जरूर मानेंगी.

एक अच्छी बात और है - अभी अमेरिका कुर्सी पर बराक ओबामा ही बैठे हैं - बिलकुल अपने बराक, बाद में क्लिंटन कोई और ट्रंप कार्ड पेश करें या खुद डोनल्ड मौजूदा स्टैंड से यू टर्न ले बैठें.

मौका बढ़िया है. मोदी सरकार को कश्मीर के मामले में वाजपेयी का राजधर्म जरूर निभाना चाहिये - मोदीफाईड ही सही, चलेगा.

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