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Updated: 28 जुलाई, 2021 10:41 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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आजादी के बाद से ही देश का अंतरराष्ट्रीय और आंतरिक नक्शा बदलता रहा है. पाकिस्तान और चीन से युद्ध में कश्मीर और अक्साई चिन जैसा बड़ा हिस्सा देश के नक्शे से कट गया. वहीं, आजादी के बाद नए राज्यों के गठन से देश के आंतरिक नक्शे में भी लगातार बदलाव हुए. इन नए राज्यों के गठन के साथ ही 'सात बहनें' कहे जाने वाले पूर्वोत्तर के राज्यों के बीच सीमा विवाद के बीज भी पड़ गए थे. दरअसल, पूर्वोत्तर राज्यों के बीच सीमा विवाद आजादी के बाद समय-समय पर असम राज्य से कुछ हिस्सों को अलग कर नए राज्यों का रूप दिए जाने जितना पुराना है. भारत में नगालैंड (1963), मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा (1972), सिक्किम (1975) और अरुणाचल प्रदेश व मिजोरम (1987) नए राज्यों के तौर पर सामने आए. हाल ही में असम और मिजोरम के बीच हुए सीमा विवाद में भड़की हिंसा के दौरान 6 पुलिसकर्मियों की मौत के बाद एक बार फिर से ये सीमा विवाद चर्चाओं में आ गए हैं.

इस घटना के बाद असम और मिजोरम के मुख्यमंत्रियों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इस मामलों को सुलझाने की अपील की है. हालांकि, बीते हफ्ते ही सीमा विवाद को लेकर अमित शाह ने पूर्वोत्तर के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी. इसके बावजूद असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद चरम पर पहुंच गया. वैसे, राज्य की सीमाओं को लेकर असम का विवाद केवल मिजोरम से ही नहीं है. असम से काटकर बनाए गए मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड की सीमाओं पर भी इसी तरह की हिंसक झड़पें होती रही हैं. इससे पहले भी पूर्वोत्तर राज्यों के सीमा विवाद को आपसी सुलह से समाप्त करने के कई प्रयास किए गए हैं. लेकिन, ये सभी विफल रहे हैं. आजादी के बाद से अब तक की केंद्र सरकारें राज्यों को उनकी सीमाओं को मानने के लिए तैयार नहीं कर सकी हैं. दशकों से केंद्र और राज्य सरकारों की उदासीनता की वजह से पूर्वोत्तर राज्यों में सीमा विवाद अब एक बड़ी समस्या बन गया है.

असम से काटकर बने राज्य 1875 के बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन अधिनियम के अनुसार तय की गई ऐतिहासिक सीमा को लागू करने की वकालत करते हैं.असम से काटकर बने राज्य 1875 के बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन अधिनियम के अनुसार तय की गई ऐतिहासिक सीमा को लागू करने की वकालत करते हैं.

इन राज्यों से है असम का सीमा विवाद

हर राज्य के गठन के समय एक संवैधानिक सीमा तय की जाती है. इन राज्यों के लिए भी ऐसा ही किया गया था. लेकिन, मिजोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्य 1875 के बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन अधिनियम के अनुसार तय की गई ऐतिहासिक सीमा को लागू करने की वकालत करते हैं. वहीं, असम हमेशा से ही संवैधानिक सीमा को मानने का पक्षधर रहा है. मिजोरम की बात करें, तो असम के साथ मिजोरम 164.6 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. 1875 के अधिनियम को आधार बनाकर मिजोरम की ओर से दावा किया जाता है कि असम ने उसकी 1,318 वर्ग किमी की जमीन पर अवैध कब्जा किया हुआ है. सीमा के पास स्थित कई इलाकों पर मिजोरम अपना दावा करता है. वहीं, मेघालय और असम के बीच सीमा से लगे 12 इलाकों को लेकर विवाद है. असम और मेघालय के बीच लगभग 884 किलोमीटर लंबी सीमा है. मेघालय सरकार इस विवाद को सुलझाने के लिए सीमा आयोग के गठन की मांग कर रहा है.

नगालैंड की बात करें, तो असम के साथ इस राज्य की करीब 512 किलोमीटर की सीमा सटी हुई है. आजादी के बाद सबसे पहले बने इस राज्य और असम की सीमा पर कई दशकों से केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती है. नगालैंड और असम के बीच भी हिंसक झड़पें होती रही हैं. अनुमान के अनुसार, इन हिंसक घटनाओं में अब तक करीब 100 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं, अरुणाचल प्रदेश की 800 किमी से ज्यादा की सीमा असम से सटी हुई है. इन दोनों राज्यों के बीच भी सीमा पर अतिक्रमण को लेकर हिंसक झड़पें होती रहती हैं. इस सीमा विवाद को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई की जा रही है. लेकिन, अभी तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकल सका है. केंद्र सरकार की ओर से भी इस विवाद को निपटाने के प्रयास किए जा रहे हैं. इन सभी राज्यों के बीच सीमा का सही से निर्धारण नहीं करना ही इस समस्या की असल जड़ है.

संवैधानिक सीमा और ऐतिहासिक सीमा

1875 में ब्रिटिश सरकार ने बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन अधिनियम के तहत असम के कुछ जिलों को जनजातियों की संस्कृति और पहचान को सुरक्षित करने के लिए संरक्षित घोषित किया था. इस अधिनियम के तहत पहाड़ी इलाकों को मैदानी इलाकों से अलग कर दिया गया. साथ ही इन जगहों पर जाने के लिए इनर लाइन परमिट (ILP) की जारी किए जाने लगे. नए राज्यों के गठन के बाद भी अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर में यह परमिट प्रणाली लागू रही. ये इनर लाइन परमिट सिस्टम एकतरफा है. इनर लाइन परमिट के बिना असम को कोई भी व्यक्ति इन चार राज्यों में बिना परमिट के नहीं जा सकता है. लेकिन, इन राज्यों के लोगों को असम में प्रवेश करने के लिए इस परमिट की जरूरत नहीं होती है.

केंद्र सरकार चाहे, तो निकल सकता है हल

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठक में मेघालय के नेताओं ने इस विवाद को 2022 से पहले खत्म करने की मांग की थी. असम की राज्य सरकार अपनी जमीन का हिस्सा देने को तैयार नहीं है. लेकिन, अगर केंद्र की भाजपा सरकार इस मामले में मजबूत इच्छाशक्ति से काम करे, तो इसका हल निकल सकता है. दरअसल, केंद्र और असम राज्य दोनों जगह ही भाजपा की सरकार है. अगर केंद्र सरकार किसी तरह से असम राज्य की सरकार को विवादित इलाकों को इन राज्यों को देने के लिए तैयार कर लेती है, तो इस विवाद का हल चुटकियों में निकल सकता है. हालांकि, यह एक जटिल प्रक्रिया है. लेकिन, सीमा आयोग का गठन कर केंद्र सरकार इस विषय पर पहल कर सकती है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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