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Updated: 10 जून, 2022 07:33 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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दिल्ली पुलिस की इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रेटजिक ऑपेरशंस (IFSO) यूनिट ने भड़काऊ और नफरत भरी टिप्पणी मामले में दो एफआईआर दर्ज की हैं. एक एफआईआर में AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी और यति नरसिंहानंद समेत 31 लोगों को नामजद किया गया है. तो, दूसरी एफआईआर में पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी करने वाली भाजपा की निलंबित नेता नूपुर शर्मा के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. खैर, इस मामले में अभी तक अन्य लोगों की ओर से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई है. लेकिन, एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने एफआईआर में अपना नाम देखकर ओवैसी ने सिलसिलेवार 11 ट्वीट कर अपना गुस्सा जाहिर किया है. 

खैर, दिल्ली पुलिस की एफआईआर की बात करें. तो, संभव है कि ज्ञानवापी मामले पर कई टीवी डिबेट में शामिल हुए असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ इसी दौरान कोई भड़काने वाली टिप्पणी करने के लिए मामला दर्ज किया गया होगा. दिल्ली पुलिस का बयान फिलहाल यही बताता है. तो, यह समझना मुश्किल नहीं है कि आखिर असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ एफआईआर क्यों दर्ज की गई है? लेकिन, ओवैसी ने अपने ट्वीट में कई जगह 'बैलेंसवाद' का भी जिक्र किया है. तो, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या असदुद्दीन ओवैसी खुद को यति नरसिंहानंद के बराबर रखने से खफा हैं?

Asaduddin Owaisi annoyed at equating himself with Yati Narsinghanand Saraswatiअसदुद्दीन ओवैसी अपने 11 ट्वीट में माहिर वकील की तरह मुस्लिम पक्ष की ओर से की गई टिप्पणियों को छिपा जाते हैं.

ओवैसी के ट्वीट्स का विश्लेषण:

ओवैसी वकील हैं, फिर FIR को समझने में समस्या क्या है: असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि उन्हें नही पता कि उनके खिलाफ एफआईआर क्यों हुई? सीधी सी बात है कि नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल का जुर्म क्या है, ये भारत के साथ ही दुनिया के कई इस्लामिक देशों को मालूम चल चुका है. तो, क्या जरूरी है कि जिस टिप्पणी को लेकर दुनियाभर में बवाल मचा हुआ है, उसे एफआईआर में जगह दी जाए. असदुद्दीन ओवैसी समेत जिन 31 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. उन सभी लोगों के बयान या सोशल मीडिया ट्वीट लोगों के सामने हैं. ओवैसी के खिलाफ ऐसी ही किसी टिप्पणी पर मामला दर्ज किया गया होगा. 31 लोगों की हर एक भड़काऊ टिप्पणी को एफआईआर में लिखवाकर क्या दिल्ली पुलिस को भी ओवैसी अपने ही बराबर में लाकर खड़ा करना चाहते हैं?

देरी के कारणों को दिल्ली पुलिस कोर्ट में बताएगी: दिल्ली पुलिस की कार्रवाई को देरी से और कमजोर प्रतिक्रिया बताने वाले असदुद्दीन ओवैसी शायद ये भूल रहे हैं कि नूपुर शर्मा ने अपनी कथित टिप्पणी हदीस के संदर्भ को लेते हुए की थी. दुनियाभर के मुसलमान हदीसों को मानते हैं. खुद असदुद्दीन ओवैसी भी तीन तलाक जैसे मामलों में हदीस और शरिया जैसी बातों का संदर्भ देने से नहीं चूके हैं. इस मामले में देरी और कमजोर प्रतिक्रिया का सवाल नजर नही आता है. क्योंकि, अरब देशों की ओर से आपत्ति जताने के साथ ही नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल के बयानों से भाजपा ने किनारा करते हुए कार्रवाई की थी. और, कड़ी कार्रवाई के लिए ही नूपुर शर्मा समेत सभी लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है.

भड़काऊ बयानों पर कार्रवाई बैलेंसवाद क्यों नहीं है: असदुद्दीन ओवैसी ने यति नरसिंहानंद के बयानों का इस्लाम का अपमान बताया है. लेकिन, ओवैसी ये बताना भूल गए कि जिन लोगों के नाम भी इस लिस्ट में हैं. उन सभी ने भड़काऊ और नफरती बातों का सोशल मीडिया से लेकर कई जगहों पर प्रदर्शन किया है. दिल्ली पुलिस की कार्रवाई हिंदू और मुस्लिम का भेद करने के बजाय धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वालों के खिलाफ है. और, इसमें यति नरसिंहानंद जैसे कट्टर हिंदुत्ववादियों को भी नहीं बख्शा गया है. दिल्ली पुलिस 'बैलेंसवाद' सिंड्रोम से पीड़ित नजर नहीं आती है. क्योंकि, जिस तरह से पैगंबर का अपमान किया गया था. उसी तरह शिवलिंग के साथ ही नूपुर शर्मा के लिए भी कई आपत्तिजनक बातें कही गई हैं.

नफरती तकरीर करने वाले मौलाना 'इस्लाम' से बेदखल माने जाएंगे क्या: ओवैसी का कहना है कि हेट स्पीच देने वाले प्रवक्ता और धर्म गुरूओं के भाजपा से करीबी संबंध हैं. खैर, कट्टर हिंदुत्व की बात करने वाला यति नरसिंहानंद भाजपा के कौन से कार्यक्रमों में बुलाया जाता है? या उसके पास भाजपा का कौन सा पद है? असदुद्दीन ओवैसी ने यति नरसिंहानंद को भाजपा से जोड़ने की कोशिश की है. लेकिन, उन मौलानाओं पर चुप हैं, जो टीवी डिबेट्स में शिवलिंग को फव्वारा समेत न जाने क्या-क्या बताने में जुटे हुए थे. क्या 'सिर तन से जुदा' समेत भड़काऊ तकरीर करने वाले मौलानाओं को इस्लाम से बेदखल करने की ताकत असदुद्दीन ओवैसी के पास है? ओवैसी ये नहीं कह सकते हैं कि ये तमाम मौलाना मुस्लिम नहीं हैं या इनका इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है.

भारत में केवल मुस्लिम होने पर जेल नहीं होती: असदुद्दीन ओवैसी ने विक्टिम कार्ड खेलते हुए कहा है कि मुस्लिम छात्रों, पत्रकारों, एक्टिविस्ट को केवल मुसलमान होने की वजह से जेल में डाल दिया जाता है. लेकिन, हाल ही में वाराणसी संकटमोचन मंदिर और कैंट स्टेशन में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के लिए आतंकी वलीउल्लाह को मिली फांसी की सजा पर भी ओवैसी का बयान यही रहेगा. कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग कर रहे आतंकियों को लेकर भी क्या ओवैसी का स्टैंड यही रहेगा? उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे छात्र सीएए विरोधी दंगों के मुख्य आरोपी हैं. असदुद्दीन ओवैसी को उनकी पैरवी करने का हक है. लेकिन, इन लोगों को जेलों में मुस्लिम होने की वजह से नहीं बंद किया गया है.

क्या भाजपा को वोट देने वाले भी कट्टरपंथी हैं: ओवैसी का कहना है कि हिंदुत्व संगठनों की ओर से हेट स्पीच और अतिवादी संस्कृति को बढ़ावा देते हैं. और, इसके लिए ओवैसी ने भाजपा को मिल रही लोकसभा सीटों का और योगी आदित्यनाथ को मिले सीएम पद का उदाहरण दिया है. क्या असदुद्दीन ओवैसी कहना चाहते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में भाजपा को वोट देकर सत्ता में पहुंचाने वाले सभी मतदाता कट्टरपंथी हैं? कोई हिंदुत्ववादी नेता बनने के नाम पर अपराध करेगा, तो क्या इसके लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? अगर ऐसा है, तो इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैलाने वालों को लेकर असदुद्दीन ओवैसी भी कठघरे में खड़े किए जा सकते हैं.

मोदी मामले पर ईमानदार हैं, तभी शांत: असदुद्दीन ओवैसी का मानना है कि पीएम मोदी इस मामले में ईमानदार नही हैं. लेकिन, जब दिल्ली पुलिस नफरती और भड़काऊ बयानों को लेकर ओवैसी की मांग के ही हिसाब से कार्रवाई कर रही है. तो, उन्हें किस बात पर समस्या हो रही है? मामले की गंभीरता को देखते हुए जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों की ओर से बयानबाजी की गई हो, पीएम मोदी की कही कोई भी बात किसी भी पक्ष को चुभ सकती थी. तो, उनके चुप रहकर संविधान और कानून के हिसाब से काम करने को गलत नहीं कहा जा सकता है. असदुद्दीन ओवैसी के ट्वीट्स को देखकर साफ है कि उनके भड़कने की वजह यति नरसिंहानंद के बराबर में उनको रखने के कारण ही है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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