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Updated: 14 अक्टूबर, 2016 02:29 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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पंजाब में आम आदमी पार्टी को फिलहाल एक चेहरे की दरकार है - एक अदद भरोसेमंद सिख चेहरा. आप ने गुरप्रीत घुग्गी को सामने लाकर सुच्चा सिंह छोटेपुर की भरपाई करने की कोशिश जरूर की लेकिन उनमें वो बात नहीं. पहले एक शिगूफा रहा कि अरविंद केजरीवाल खुद मैदान में उतर सकते हैं, लेकिन आप नेता अब लगातार ऐसी बातों से इंकार कर रहे हैं.

मौजूदा स्थिति ये है कि खूंटा गाड़ कर बैठने के बावजूद अरविंद केजरीवाल सियासी रेस में कांग्रेस से पिछड़े हुए हैं. ताजा प्री-पोल सर्वे इस बात का गवाह है.

ये सर्वे कुछ खास कहता है

इंडिया टुडे के सर्वे से तीन बातें साफ हैं. यूपी और पंजाब दोनों जगह एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर काम कर रहा है. दोनों ही जगह जिन पार्टियों को रेस में नंबर वन समझा जा रहा था वे दूसरे स्थान पर हैं - यूपी में मायावती की पार्टी बीएसपी और पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आप को सबसे आगे माना जा रहा था लेकिन सर्वे तो कुछ और ही कहता है. दोनों ही जगह चेहरे की अहमियत भी साफ तौर पर समझ आ रही है.

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पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह लोगों की पहली पसंद बताये जा रहे हैं - उन्हें 33 फीसदी लोग दोबारा सीएम के तौर पर देखना चाहते हैं. हालांकि, दस साल से उनकी पार्टी कांग्रेस सत्ता से बाहर है - और अब सत्ता हासिल करने के लिए देश के सबसे कामयाब चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को हायर किया गया है.

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जरूरत है, जरूरत है, सख्त जरूरत है एक...

सर्वे को देखें तो ऐसा नहीं है अरविंद केजरीवाल को पंजाब के संभावित मुख्यमंत्री के रूप में लोग पूरी तरह खारिज कर रहे हैं. विरोधियों द्वारा केजरीवाल को बार बार बाहरी बताये जाने के बावजूद बतौर सीएम वो 16 फीसदी लोगों की पसंद हैं. ये बात अलग है कि केजरीवाल पर मौजूदा सीएम प्रकाश सिंह बादल को लोगों की तरजीह मिली है. लाख एंटी-इंकम्बेंसी के बावजूद 25 फीसदी लोग अब भी बादल को पसंद कर रहे हैं.

केजरीवाल के विरोधी चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी-अकाली गठबंधन लोगों को बड़ी आसानी से समझा लेते हैं कि वो कभी भी पंजाब का पूरी तरह पक्ष नहीं ले सकते. इंडिया टुडे सर्वे पर चल रही टीवी बहसों में भी कांग्रेस और अकाली नेता केजरीवाल को सतलुज यमुना लिंक विवाद में घसीटते रहे. ये नेता लोगों को यही समझाना चाहते हैं कि जब भी पंजाब और हरियाणा में से किसी एक को चुनना होगा केजरीवाल पंजाब को छोड़ देंगे क्योंकि वो खुद हरियाणा से हैं. आम आदमी पार्टी इस मसले पर एक बार हरियाणा के पक्ष में बयान देकर फंस भी चुकी है. बोल कर घिर जाने के बाद आप नेता चुप्पी साध लिये थे.

एक चेहरे की सख्त जरूरत है

सर्वे में भी लोगों ने माना है कि पंजाब में ड्रग्स बड़ा मुद्दा है. केजरीवाल और उनकी टीम इसे जोर शोर से उठाते भी रहे हैं. यहां तक कि वे विवादों में घिरे बिक्रम सिंह मजीठिया को सत्ता में आते ही जेल भेजने की बात करते हैं. मौजूदा सरकार से खफा लोगों को केजरीवाल की यही बात अपील करती है. लेकिन सब कुछ के बावजूद खुद केजरीवाल का पंजाब से न होना या उनकी ओर से कोई सिख चेहरा दावेदार न होना उनके लिए मुसीबतें खड़ी कर रहा है.

आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक आप ने दिल्ली से ऑब्जर्वर बना कर भेजे गए 54 नेताओं को वापस बुलाना भी शुरू कर दिया गया है. इसकी खास वजह उन्हें स्वीकार्यता न मिलना बताया जा रहा है. हालांकि, पार्टी नेता कह रहे हैं कि ऑब्जर्वर का काम पूरा हो चुका है इसलिए वे लौट रहे हैं. सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट कहती है, "पार्टी सिख धर्म से जुड़ा और सिख धर्म की गहरी समझ रखने वाला चेहरा तलाश रही है." सिख चेहरे के सवाल पर भी आप नेता कहते हैं कि उनके पास पहले से ही एचएस फुल्का, जरनैल सिंह और गुरप्रीत घुग्गी जैसे सिख चेहरे हैं. हकीकत तो ये है कि इन चेहरों को सिख पंथ से जुड़े लोग गंभीरता से नहीं लेते.

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पंजाब में एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर के फायदे का बंटवारा आप और कांग्रेस के बीच हो रहा है. कांग्रेस के पास आप के मुकाबले कैप्टन अमरिंदर के रूप में क्रेडिबल फेस होने से उसे अधिक लाभ मिल रहा है.

निश्चित रूप से आम आदमी पार्टी को सुच्चा सिंह छोटेपुर की कमी कदम कदम पर खल रही होगी. आप को अभी तक छोटेपुर का विकल्प नहीं मिल सका है. नवजोत सिंह सिद्धू का चैप्टर तो तकरीबन क्लोज ही हो चुका है. बंद रास्ते ही नयी राह दिखाते हैं. आप को भी ऐसी ही उम्मीद होगी - और इसी बात का भरोसा.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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