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Updated: 24 जनवरी, 2019 08:32 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे तो दूसरी तरफ सारे बीजेपी विरोधी. तब लालू प्रसाद ने कहा था कि मोदी को हराने के लिए वो सांप का जहर तक पीने को तैयार हैं.

12 जनवरी को यूपी गठबंधन की घोषणा करते हुए मायावती ने भी उसी अंदाज में कहा कि वो केंद्र की मोदी सरकार को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए लखनऊ के गेस्ट हाउस कांड को भूलने को तैयार हैं.

आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिकस्त देने के लिए अब अरविंद केजरीवाल भी कुछ हद तक वैसी ही बात करने लगे हैं. केजरीवाल का कहना है कि वो मोदी को रोकने के लिए वो कांग्रेस को भी सपोर्ट करने को तैयार हैं.

सवाल ये है कि बीजेपी और कांग्रेस को एक जैसा बताने वाले अरविंद केजरीवाल का हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? ऐसा क्या हुआ कि केजरीवाल को कांग्रेस बीजेपी से अच्छी लगने लगी है?

अब तो कांग्रेस भी चलेगी

दिसंबर, 2018 के आखिर में आम आदमी पार्टी ने पांच राज्यों में चुनाव अकेले लोक सभा चुनाव लड़ने की घोषणा की थी. ये राज्य हैं - दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गोवा और चंडीगढ़. बताया गया कि पांचों राज्यों की सभी 33 सीटों पर आप के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे. दिल्ली में लोक सभा की 7 सीटें, हरियाणा में 10 सीटें, पंजाब में 13 सीटें, गोवा में 2 सीटें और चंडीगढ़ की एक सीट है.

आप ने चुनाव अकेले लड़ने की बात जरूर की थी लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ महागठबंधन के नाम पर साफ तौर पर कुछ भी नहीं कहा था. बीच में खबर आयी कि लोक सभा चुनाव में कांग्रेस और आप के बीच दिल्ली में गठबंधन की कोशिश चल रही है. उसी दौरान दिल्ली की कमान अजय माकन से हट कर पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के हाथों में पहुंच गयी.

गठबंधन को लेकर शीला दीक्षित तो गोल मोल बात करती रहीं, लेकिन तभी अरविंद केजरीवाल की ओर से ऐसी सारी संभावनाएं एक झटके में खारिज कर दी गयीं. खबर रही कि गठबंधन की बात काफी आगे बढ़ चुकी थी. इतनी आगे की कांग्रेस ने राजीव गांधी के भारत रत्न को लेकर हुए विवाद को कांग्रेस ने कोई तूल नहीं दिया. अब माना जा रहा है कि सिख दंगों को लेकर कांग्रेस के साथ गठबंधन से केजरीवाल पीछे हट गये. खासकर तब जब सज्जन कुमार को सजा हो गयी - और जगदीश टाइटलर के बचाव में शीला दीक्षित खड़ी हो गयीं.

लेकिन अरविंद केजरीवाल के रूख में अब एक और बदलाव देखने को मिल रहा है. कोलकाता में हुई यूनाइटेड इंडिया रैली में अरविंद केजरीवाल ने कहा था - 'कुछ भी करो 2019 में मोदी शाह की जोड़ी सत्ता में दोबारा नहीं आनी चाहिये'. फिलहाल केजरीवाल दिल्ली में यूनाइटेड इंडिया की रैली कराने की तैयारी में हैं.

अरविंद केजरीवाल ने आप सपोर्टर अमित मिश्रा के ट्वीट को रीट्वीट किया है, जिसमें लिखा है - "मोदी - शाह के अलावा जो भी PM बनेगा उसको समर्थन देंगे".

arvind kejriwal tweet'अब तो कुछ भी करो...'

दिल्ली वक्फ बोर्ड के एक प्रोग्राम में भी ऐसी ही बातें सुनने को मिलीं. अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी में आप विधायक अमानुल्लाह खान ने लोगों से कहा - 'आप लोग दिल्ली में आम आदमी पार्टी को वोट दे दो, बाद में कांग्रेस के प्रधानमंत्री को समर्थन देना पड़े तो देंगे.'

लोकसभा चुनाव के लिए मुस्लिम समुदाय के बीच वोट की गुहार लगाते हुए अमानुल्लाह खान ने इस मामले में समाजवादी पार्टी का उदाहरण दिया. आप विधायक का कहना रहा कि जिस तरह समाजवादी पार्टी यूपी में लड़ रही है वैसे ही आम आदमी पार्टी दिल्ली में चुनाव लड़ेगी. कहने का मतलब जिस तरह समाजवादी पार्टी यूपी में कांग्रेस से दूरी बनाकर चुनाव लड़ रही है, आप ने भी वही रास्ता अपनाया है.

बाद में केजरीवाल का भी इसी बात पर जोर रहा कि आम चुनाव में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को हराना है - और उनके अलावा पीएम कोई भी बने, जो भी बनेगा आम आदमी पार्टी उसको पूरा समर्थन देगी.

केजरीवाल शुरू से ही ऐसे थे या धीरे धीरे बदले हैं?

2014 के आम चुनाव के वक्त सोशल मीडिया पर कई तरह के मीम बनाये गये थे जिनमें तीन किरदार होते थे - फेकू, पलटू और पप्पू. राहुल गांधी तो खुद ही कह चुके हैं कि बीजेपी के लोग उन्हें पप्पू समझते जरूर हैं लेकिन वो उनसे वैसी नफरत नहीं करते. विरोधी दलों के नेताओं के जरिये ही ये तीनों टर्म मार्केट में आये थे जिसमें नरेंद्र मोदी के लिए फेकू और अरविंद केजरीवाल के लिए पलटू का इस्तेमाल होने लगा था.

तब से लेकर अरविंद केजरीवाल भी राजनीति में काफी आगे बढ़ चुके हैं और इस दौरान उनकी कई सारी खूबियां एक एक करके सामने आने लगी हैं.

sharad pawar, kejriwalपहले तो सब मिले हुए थे, लेकिन अब...

कोलकाता की यूनाइटेड इंडिया रैली को ध्यान से देखें तो अरविंद केजरीवाल को अब उन लोगों से कोई परहेज नहीं जिनके खिलाफ शोर मचाकर वो राजनीति में दाखिल हुए. कोलकाता के मंच पर केजरीवाल न सिर्फ शरद पवार के हाथ मिलाये खड़े देखे गये, बल्कि उससे पहले दोनों व्हाट्सऐप जोक पर साथ में ठहाके लगा रहे थे. ये वही केजरीवाल हैं जो बिहार चुनावों के बाद ममता बनर्जी द्वारा बुलायी गयी एक मीटिंग में इसलिए नहीं गये थे क्योंकि वो शरद पवार के घर पर बुलायी गयी थी. ज्यादा दिन नहीं हुए जब केजरीवाल दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान नितिन गडकरी की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि केजरीवाल के ही पूर्ति घोटाले के आरोप लगाने पर नितिन गडकरी बीजेपी के दोबारा अध्यक्ष बनने से रह गये. ये केजरीवाल ही हैं जो लालू प्रसाद के साथ गले मिलने पर सफाई दी कि वो खुद नहीं मिले बल्कि आरजेडी नेता उनका हाथ खींच कर गले पड़ गये. अब वो सभी नेताओं से माफी मांग कर सारे गिले शिकवे भी दूर कर चुके हैं.

एक स्वाभाविक सा सवाल बनता है कि अरविंद केजरीवाल का जो रूप अभी देखने को मिल रहा है वो शुरू से ही है या गुजरते वक्त के साथ उसमें बदलाव दर्ज होता गया है?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में शीला दीक्षित को हराने के बाद अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से ही पहली बार सरकार बनायी थी, लेकिन बाद के दिनों में कांग्रेस नेतृत्व और केजरीवाल एक दूसरे को फूटी आंख देखने को तैयार नहीं थे. अब अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार यानी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के तौर पर सपोर्ट करने से कोई गुरेज नहीं है - ये पॉलिटिक्स है जो सब कराती है, लेकिन ये पब्लिक भी है जो सब जानती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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