राहुल-केजरीवाल का मंच पर करीब आना राष्ट्रीय मोर्चे की पहली पक्की सीढ़ी है
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के ठीक एक दिन पहले 10 दिसंबर को विपक्षी दलों की मीटिंग होने जा रही है. मीटिंग से पहले राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल का मंच साझा करना विपक्षी एकजुटता की मजबूती का संकेत है.
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2019 के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ महागठबंधन की तैयारी तेज हो चली है. ये महागठबंधन किसी ऐसे मोर्चे की शक्ल में हो सकता है जिसमें राजनीतिक दलों के साथ साथ कई दलों के गठबंधन भी शामिल हो सकते हैं.
ये संभावित महागठबंधन आगे चल कर तीसरा मोर्चा या राष्ट्रीय मोर्चा जिस नाम से भी जाना जाये, दिल्ली के जंतर मंतर पर इसकी पहली ऐसी झलक दिखी - जो मोर्चे के पक्के होने की पहली सीढ़ी कही जा सकती है.
2019 के लिए संभावित गठबंधन में अब तक सबसे बड़ा पेंच रहा है कांग्रेस नेतृत्व का आप नेता अरविंद केजरीवाल से परहेज. तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने ये परहेज खत्म करने की खूब कोशिश की लेकिन कभी बात बनती नहीं दिखी. जंतर मंतर पर पहली बार मंच पर एक साथ राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल की एक साथ एक वक्त पर मौजूदगी मोर्चे के वास्तव में शक्ल लेने और मजबूत हो सकने का पहला संकेत है. ये मौका मुहैया कराया है देश भर से आये किसानों ने.
कर्नाटक और कैराना से काफी आगे
ऐसा लगता है कर्नाटक से कैराना होते हुए विपक्षी एकजुटता अब दिल्ली पहुंच चुकी है. राहुल गांधी और टीडीपी नेता एन चंद्रबाबू नायडू का साथ साथ चुनाव प्रचार इसी का प्री-रोल था. राष्ट्रीय स्तर पर 2019 के लिए मोदी के खिलाफ मोर्चेबंदी की अगुवाई करने वाले नेताओं के नाम बदलते रहे हैं. पहले सोनिया गांधी, फिर ममता बनर्जी और शरद पवार के बाद इस काम में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू जुट गये हैं.
सवाल है कि क्या राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल का एक दूसरे के प्रति परहेज कम हो रहा है?
किसानों के बहाने ही सही, जंतर मंतर पर दोनों नेताओं का एक साथ मंच शेयर करना इस दिशा में कोई मामूली घटना नहीं लगती. पहुंचे तो दोनों नेता बेंगलुरू भी थे, मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के शपथग्रहण के मौके पर - लेकिन एक दूसरे से बचते पाये गये. तब ये भी समझा गया कि चूंकि दोनों एक ही होस्ट के कॉमन मेहमान थे इसलिए एक वक्त पर मौजूद रहे.
राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल इससे पहले भी जंतर मंतर पर हुए एक विरोध प्रदर्शन में एक साथ हिस्सा ले चुके हैं. इसी साल 5 अगस्त को मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम में लड़कियों के यौन शोषण के विरोध में तेजस्वी यादव ने प्रदर्शन का आयोजन किया था. इस प्रदर्शन में भी राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल दोनों ने शिरकत की थी, लेकिन अलग अलग वक्त पर. दोनों के आने जाने का समय टकराये नहीं इस बात का पूरा ध्यान आयोजकों की ओर से रखा गया था. शायद तब दोनों ने हिस्सेदारी की सहमति ही इसी आधार पर दी थी.
मोदी के खिलाफ मोर्चेबंदी की पहली तस्वीर
मंच पर राहुल गांधी और केजरीवाल साथ जरूर आये लेकिन पास नहीं. मंच पर सभी एक दूसरे का हाथ तो पकड़े हुए थे लेकिन राहुल और केजरीवाल के बीच में फारूक अब्दुल्ला और सीताराम येचुरी पूरा ब्रीदिंग स्पेस दे रहे थे.
किसानों की लड़ाई लड़ने का वादा करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, 'कोई भी सरकार किसान का अपमान करेगी... देश के युवा को बदनाम करेगी, देश की जनता उसे हटाकर रहेगी...'
अरविंद केजरीवाल भी पूरे फॉर्म में नजर आये. भाषण से पहले नारा लगाये और बोले, 'सारे दिल्ली वाले आज कह रहे हैं कि मोदी जी दिल्ली के लिए हानिकारक हैं. दिल्लीवालों से पूछ के देखो...'
आखिर कैसा होगा 2019 का विपक्षी मोर्चा?
2019 के प्रस्तावित मोर्चे के सहयोगी दलों की एक मीटिंग दिल्ली में रखी गयी है - 10 दिसंबर को. ध्यान देने वाली बात है कि 11 दिसंबर को पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आने हैं और उससे ठीक एक दिन पहले ये मीटिंग रखी गयी है.
कर्नाटक से दिल्ली वाया कैराना...
प्रस्तावित मोर्चा कैसा होगा और कौन कौन दल इसमें शामिल होंगे इन सारे सवालों के जवाब 29 नवंबर को संपादकों की प्रेस कांफ्रेंस में चंद्रूबाबू नायडू ने विस्तार से दिये. नायडू की मानें तो जिस राष्ट्रीय मोर्चे की कवायद चल रही है वो यूपीए और एनडीए से भी बड़ा हो सकता है.
टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के मुताबिक कांग्रेस की अगुवाई वाला यूपीए भी 2019 के राष्ट्रीय मोर्चे का हिस्सा होगा. नायडू ने बताया कि कोशिश ये भी है कि एनडीए में शामिल पार्टियों को भी न्योता दिया जाये. नायडू के इशारे को समझें तो इसमें उपेंद्र कुशावाहा की पार्टी भी हो सकती है और महागठबंधन में लौटने को आतुर नीतीश कुमार की जेडीयू भी.
नायडू का इशारा उन पार्टियों की भी तरफ है जो अब भी न तो यूपीए और न ही एनडीए किसी में भी शामिल हैं. ऐसी पार्टियों में बीएसपी, टीएमसी, समाजवादी पार्टी और नवीन पटनायक की बीजू जनता दल भी हो सकते हैं.
चंद्रबाबू नायडू का दावा है, 'सब कुछ साफ दिख रहा है. 2019 में एनडीए सरकार जाएगी और केंद्र में वैकल्पिक नॉन-एनडीए सरकार बनेगी.'
किसानों की लड़ाई लड़ने के बहाने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी जंतर मंतर के मंच से विपक्षी एकता की बात आगे बढ़ाई, 'हम सब की विचारधारा अलग है, लेकिन किसान और युवाओं के लिए हम एक हैं... चाहे कानून बदलना पड़े, सीएम बदलना पड़े, या पीएम बदलना पड़े, हम बदलेंगे...'
चंद्रबाबू नायडू का भी यही कहना है, 'पहले राजनीतिक बाध्यताएं थीं. अब लोकतांत्रिक बाध्यता है, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं को बचाने के लिए बीजेपी के अलावा बाकी सभी दलों को एकजुट कर रही है'
चंद्रबाबू नायडू की इन बातों को सबसे ज्यादा बल मिलता है, जंतर मंतर पर राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल की एक साथ मौजूदगी से - जो अब तक सबसे बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रही थी.
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