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Updated: 04 अप्रिल, 2023 05:11 PM
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ना भी हुआ तो जीपीटी-4 सरीखे एआई टूल उन पर इस कदर दबाव बनाये रखेंगे कि वे जो भी काम कर रहे हैं वह तेज गति से हो और अधिक उत्पादक हो. वे उत्कृष्टता के पैमाने को बढ़ा देंगे सीईओ के लिए और एक प्रकार से अत्यधिक दक्षता के युग का सूत्रपात होगा. बड़ी प्रसिद्ध हिंदी कहावत है गुरु गुड़ ही रहा, चेला शक्कर हो गया ! पता ही नहीं चलेगा कब नॉन ह्यूमन दिमाग ने, जिसे ह्यूमन ने ही बनाया है, हमें रिप्लेस कर लिया है.

आखिर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्या है ? मानव निर्मित टेक उद्योग का तिलिस्म है और टेक मानव हैं कि खूब समझा दे रहे हैं कि भविष्य में हम 'मेटैवर्स' में रहेंगे, वेब 3 पर अपने वित्तीय बुनियादी ढांचे का निर्माण करेंगे और 'कृत्रिम बुद्धिमत्ता' के साथ अपने जीवन को सफल बनाएंगे. ये तीनों ही शब्द मृगतृष्णा सरीखे हैं जिनका क्रिएटर मानव ही है. लेकिन अब मानव निर्मित एआई ही आम लोगों की वर्क स्टाइल को प्रतिस्पर्धात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है. और इसी बात ने सोच को जन्म दिया है कि आखिर हद क्या होगी ? क्या हमारे सारे काम एआई कर देगा ? क्या हमारे टेक सुपर एआई को हम मानवों से ज्यादा तेज, समझदार, और संख्या में ज्यादा नहीं बना देंगे ? क्या समाज का वो ताना बाना ध्वस्त नहीं हो जाएगा जिसमें हम सब एक दूसरे पर निर्भर हैं ? और जब पारस्परिक निर्भरता ही नहीं रहेगी तो एहसास खत्म ही हुआ समझें ना !

Artificial Intelligence, Technology, Robot, Chat GPT, Science, Human, Job, Unemploymentतमाम टेक दिग्गज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के रिस्पांसिबल और एथिकल डेवलपमेंट की मांग कर रहे हैं

और इसी डर के लिए एलन मस्क, एप्पल को फाउंडर, स्काइप को फाउंडर, अनेकों यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आदि चेता रहे हैं. वे आग्रह कर रहे हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर हो रहे बड़े बड़े प्रयोगों को रोका जाए. उनका डर है कि कहीं एआई इस कदर बेकाबू ना हो जाए कि इसका निर्माता ही इसे काबू में ना रख पाए और डर निर्मूल भी नहीं है. मशीनों के गाइडेंस में काम करने की शुरुआत हो चुकी है. चीन में एक गेमिंग कंपनी NetDragon Websoft ने अपनी एक सब्सिडियरी का CEO एक AI बेस्ड रोबोट को बनाया है. एआई वकील, एडवाइजर बनाये जा रहे है.

कहने को लॉजिक अच्छा है कि ऐसा प्रोडक्टिविटी और इफिशिएंसी बढ़ाने के लिए किया जा रहा है. लेकिन इंसानों के बराबर इंटेलिजेंस वाले एआई ही भविष्य के लिए खतरे की घंटी है. जरूरत है द्रोणाचार्यों (इन एआई निर्माताओं) पर बंदिशें लगाने की क्योंकि सभी धनुर्धरों से एकलव्य सरीखे आदर्श की कल्पना ही बेमानी है. चूंकि ना तो कोई मशीन सोच सकती है और ना ही कोई सॉफ्टवेयर स्वतः इंटेलीजेंट है, समय रहते सोचना इनके मेकर्स को हैं. 'सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली' वाली कहावत ही चरितार्थ हो रही है जब कतिपय टेक दिग्गज ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के रिस्पांसिबल और एथिकल डेवलपमेंट की मांग कर रहे हैं, अपील कर रहे हैं.

दरअसल चैटजीपीटी और गूगल के बार्ड के बाजार में आने के बाद से यह चर्चा और जोर से हो रही है. चैटजीपीटी का प्रयोग स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों के अलावा बहुत सारे कामों के लिए होने लगा है. फिर चैटजीपीटी जैसे एआई वाले टूल के आने के बाद इसके खिलाफ टूल बनाने वाले लोग भी काफी सक्रिय हो चुके हैं और उन्होंने भी अपने अपने टूल विकसित कर लिए हैं. इसी बीच ओपनएआई ने चैटजीपीटी के एक अपडेट मॉडल की भी घोषणा कर दी है.

जी हां, वही चैटजीपीटी, जिसका उपयोग प्रोफेशनल्स ईमेल, ब्लॉग पोस्ट लिखने के लिए भी करने लगे हैं. मान लीजिये चैटजीपीटी अगर कोई कार है तो इसका नया भाषा मॉडल जीपीटी-4 ज्या शक्तिशाली इंजन वाला मॉडल कहा जा सकता है. पुराना चैटजीपीटी लिखित स्टफ को सिर्फ पढ़ सकता था ; नया चैटजीपीटी आपके हमारे फ्रिज में रखी सामग्री को देख कर बता सकता है कि डिनर में क्या बनाना है, क्या बन सकता है. एआई पॉवर्ड राइटिंग असिस्टेंट हो गए हैं.

जब चैटजीपीटी की अग्नि परीक्षा हुई थी, तक़रीबन फेल हो गया था ; लेकिन इसके नए संस्करण को तो 90 फीसदी अंक मिल गए. इसके लांच होने के कुछ ही घंटों में लोगों ने इसका इस्तेमाल वेबसाइट बनाने, स्केच बनाने से लेकर डेटिंग वेबसाइट पर साथी तलाशने तक के लिए किया. सो निःसंदेह लांच एंटरटेनिंग रहा. भविष्य क्या होगा, देखना दिलचस्प होगा ! एक बार फिर ओपनएआई ने खुलासा नहीं किया है कि जीपीटी-4 को प्रशिक्षित करने में क्या और किस डाटा को इस्तेमाल किया है.

तो यहां भी गर्त ही है कि मॉडल, अनजाने ही सही, कैसे यूजर को गलत सूचना दे सकता है ? फिर भी व्यापक दृष्टिकोण यही है उच्च कुशलता के नए युग की शुरुआत हो चुकी है. अब प्रोफेशनल्स को अधिक चतुराई के साथ तेज गति से परफॉर्म करना होगा यदि उन्हें अपना अस्तित्व बचाना है तो ! मॉर्गन स्टेनली ने तो पिछले साल से ही जीपीटी-4 का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, जिसने इसे अपने विश्लेषकों के कैपिटल मार्केट, वेल्थ केटेगरी, उद्योगों और अन्य विषयों पर किये गए हजारों रिसर्च पेपर्स के आधार पर प्रशिक्षित किया है ताकि कंपनी के इनहाउस कंसल्टेंट्स लाभान्वित हो सकें परामर्श देने में.

कंपनी के अनुसार इसके तक़रीबन 200 कर्मचारी इस प्रकार निर्मित चैटबॉट का इस्तेमाल कर रहे हैं. परंतु उन 200 कर्मचारियों की कार्यशैली बदल गई है. कंपनी ने चैटबॉट रूपी मुख्य निवेश रणनीतिकार, चीफ इंटरनेशनल इकोनॉमिस्ट और इंटरनेशनल इक्विटी एक्सपर्ट को उन पर इसलिए थोप दिया है कि वे अधिक से अधिक ग्राहकों को इंस्टैंटली सर्व कर सकें. अब वे आधे घंटे का काम चंद सेकंडों में जो कर लेते हैं. तो अंततः 200 कर्मचारियों की स्ट्रेंथ कितनी मल्टीप्लाई करेगी क्लाइंटल बेस को, अंदाजा लगा लीजिए. या दो सौ की जगह कंपनी सिर्फ 10 सबसे ज्यादा गतिशील और तत्पर कर्मचारियों से काम चला लेगी.

दोनों ही सूरतों में वाट तो कर्मचारियों की ही लगनी हैं, अपने आप को ज्यादा प्रोडक्टिव जो सिद्ध करना है. कल तक एक सौहार्दपूर्ण वातावरण में परस्पर सहयोग करते हुए काम कर रहे थे, अब प्रतिस्पर्धा आपस में ही सर्वाइवल के लिए होगी. और फिर होगी कॉस्ट कटाई के नाम पर डाउनसाइजिंग एआई की कृपा से जबकि ना तो ओवरआल काम कम हुआ है और ना ही आमदनी ; बल्कि काम भी ज्यादा, आमदनी भी ज्यादा और कुल मिलाकर बल्ले बल्ले कंपनी की हो गई.

याद कीजिए पहले पेशेवर अनुवादक, व्याख्याता या दुभाषियों की क्या खूब बखत थी ! फिर आए एआई टूल्स गूगल ट्रांसलेटर और डीपल (DeepL). और तब आशंका हुई कि ये टूल्स उनका स्थान ले लेंगे. जबकि हुआ यह कि ट्रान्सलेटरों से और ज्यादा आउटपुट की अपेक्षा की जाने लगी. सो काम ज्यादा होने लगा, पहले 2000 शब्दों तक के अनुवाद करने की क्षमता उत्तम थी, अब वही औसत से नीचे कहलाने लगी है क्योंकि उत्तम तो 7000 शब्द हैं इन टूल की मदद से. कुल मिलाकर काम का दबाव भी बढ़ गया और अंततः जॉब कटाई यहां भी होनी ही है.

बहरहाल यह सब बढ़ती तकनीक का हिस्सा है. लेकिन वो कहते हैं ना ह्यूमन टच या चिंतन या विचार या मंथन या वो दरम्यानी राहत की सांसें शनै शनैः लुप्त होती जा रही हैं. स्मार्टफोन की मदद से हम हमेशा अपने काम से जुड़े रहते हैं, आपसी संवाद कितना सुगम हो गया है. यही ये जो नित नए टूल आ रहे हैं, करने जा रहे हैं. लेकिन अनवरत सुबह और शाम काम ही काम, टारगेट जो नित नए सेट होते चले जाएंगे जीपीटी-4 की बदौलत.

परंतु भयावहता साफ़ नजर आ रही है. निःसंदेह जीपीटी-4 या अन्य कोई समकक्ष टूल में इंसानी कामगारों से अधिक कुशल काम निकलवाने की क्षमता है लेकिन हमारी मानसिक ऊर्जा की कीमत पर ! ये नए मॉडल दिन ब दिन कुशाग्र होते चले जाएंगे और ऐसा हम ही करेंगे लेकिन साथ साथ एज ए व्होल इंसानों की कार्यशीलता को कुंद ही करेंगे. और शुरुआत हो भी चुकी है.

एक और डरावनी सूरत दिख रही है जब हर कोई चैटबॉट से ज्ञान लेने लगेगा. बेल्जियम में एक शख्स ने चैटबॉट से बात करने के बाद आत्महत्या कर ली. शख्स ने अपनी किसी मेंटल परेशानी को लेकर Chai नाम के एक एप पर एक एआई बॉट से बात की थी. और इसलिए मेकर्स से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने अपने प्रॉडक्ट्स को बेहतर तरीक़े से रेग्युलेट करते हुए रिस्क फैक्टर को एलिमिनेट करें!

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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