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Updated: 19 जनवरी, 2022 05:47 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अपर्णा यादव (Aparna Yadav) के बीजेपी ज्वाइन करने पर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का एक वीडियो बयान आया है, 'यार सौ की सीधी बात... बीजेपी में ही बहू-बेटियां सेफ हैं... बीजेपी में बहू-बेटियां सुरक्षित हैं... मुलायम सिंह की बहू अपर्णा यादव जी बीजेपी में आ गईं... इसे कहते हैं समझदारी.'

मालूम नहीं राजू श्रीवास्तव ने ये सब बीजेपी के सपोर्ट में कहा है या फिर कोई राजनीतिक कटाक्ष है? मन की बात तो वही जानें, लेकिन बीजेपी (BJP) ज्वाइन करने के बाद अपर्णा यादव ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा, 'सब जानते हैं कि मैं हमेशा से ही पीएम मोदी से प्रभावित रही हूं... मेरे चिंतन में राष्ट्र पहले है... राष्ट्र का धर्म मेरे लिये सबसे ज्यादा जरूरी है... मैं अब राष्ट्र की आराधना करने निकली हूं... मुझे सबका सहयोग चाहिये.'

बीजेपी ज्वाइन करने के बाद राष्ट्रवाद की बातें तो स्वाभाविक हो ही जाती हैं, लेकिन ये भी सवाल तो बनता ही है, 'क्या सपा राष्ट्रधर्म को नहीं निभाती?'

आज तक के इस सवाल पर अपर्णा यावद बोलीं कि वो परिवार को लेकर कोई बात नहीं कहना चाहतीं. और यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की तारीफ करने लगीं - जितनी स्कीम लायी गयी है, प्रभावकारी हैं.

जब पूछा जाता है, क्या अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे इसलिए बीजेपी में जाने का फैसला किया?

ऐसे मोड़ पर बड़ा मुश्किल होता है ऐसे सवालों का जवाब देना, लेकिन राजनीति जो न कराये. अपर्णा यादव कहती हैं, 'ऐसी बात नहीं है. मैं बस ये कहना चाहती हूं कि मैंने हमेशा राष्ट्र को अपना धर्म माना है... मैं पीएम मोदी सीएम योगी से बहुत प्रभावित हूं... उनकी नीतियां मुझे नैतिक रूप से भाती हैं, इसीलिए मैंने बीजेपी ज्वाइन की.'

लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब अखिलेश यादव से अपर्णा यादव को लेकर सवाल हुआ तो बोले, 'मैं उन्हें बधाई देता हूं... मेरी शुभकामनाएं हैं... मुझे इस बात की खुशी है कि समाजवादी विचारधारा का विस्तार हो रहा है... मुझे उ्म्मीद है कि हमारी विचारधारा बीजेपी में जाकर भी संविधान की रक्षा करेगी.'

सवाल ये है कि क्या अपर्णा यादव का घर परिवार की पार्टी छोड़ कर बीजेपी में चले जाना क्या सत्ता में वापसी की कोशिश में लगे अखिलेश यादव के लिए बड़ा झटका है - फिलहाल ये समझना भी जरूरी हो गया है.

अखिलेश यादव को झटका लगा है क्या?

बीजेपी के लिए बदला लेना बहुत जरूरी था. अपर्णा यादव को भगवा भेंट करते हुए पार्टी में स्वागत करके बीजेपी ने किया भी ऐसा ही है. स्वामी प्रसाद मौर्य सहित दर्जन भर नेताओं के चले जाने के बाद डैमेज कंट्रोल के तहत अपने वोटर को बीजेपी के लिए ऐसा कोई असरदार संदेश देना बहुत ही जरूरी था.

खबरों में चल रहा है कि अपर्णा यादव का बीजेपी में जाना समाजवादी पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए बड़ा झटका है - लेकिन क्या वाकई ऐसा ही है?

ये बड़ा सवाल है - और काफी महत्वपूर्ण भी.

लेकिन क्या जी जान से सत्ता में वापसी के लिए जुटे अखिलेश यादव ऐसा होने देते? क्या अखिलेश यादव के पास ऐसा कोई भी ऑफर नहीं रहा होगा कि वो अपर्णा यादव को रोक सकें?

aparna yadav, akhilesh yadavअपर्णा यादव अभी परिवार के खिलाफ कुछ भी बोलने से परहेज कर रही हैं - लेकिन आगे शायद ही संभव हो!

ये पूछे जाने पर कि क्या मुलायम सिंह यादव की अपर्णा यादव के ताजा फैसले पर सहमति की मुहर लगी है?

अखिलेश यादव का जवाब होता है, 'नेताजी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की.'

जब बात अपर्णा यादव का टिकट काटे जाने की हुई तो अखिलेश का कहना रहा, 'टिकट अभी पूरे नहीं बंटे हैं...'

जैसे शिवपाल यादव को घर जाकर मना कर अखिलेश यादव साथ लाये हैं, अपर्णा यादव को भी रोक सकते थे. वैसे समाजवादी पार्टी में रह कर भी अपर्णा यादव ऐसा क्या खास कर रही थीं, जो उनके न रहने से बंद हो जाएगा?

ऐसा भी तो नहीं बीजेपी के लिए वो हिमंत बिस्वा सरमा जैसी हैं कि उनके बारे में पार्टी आगे तक बढ़ कर सोच सके. मुख्यमंत्री तो वो बीजेपी में भी बनने से रहीं. अगर मुख्यमंत्री बनने की कोई ख्वाहिश नहीं रही, तो सक्रिय होने पर अपर्णा को समाजवादी पार्टी में भी कोई खास भूमिका मिल ही सकती थी. आखिर परिवार में इतने सारे लोग किसी न किसी रूप में, किसी न किसी स्तर पर राजनीति तो कर ही रहे हैं.

ऐसा भी नहीं लगता कि अपर्णा यादव समाजवादी पार्टी से कुछ और लोगों को तोड़ कर लाने की स्थिति में हों. जो खुद समाजवादी पार्टी में अपने लिए एक टिकट खातिर संघर्ष करता रहा हो, वो भला कितनों को ला सकता है. जिसे शिकायत अभी तक हो कि उसे ऐसी सीट से पहली बार टिकट दिया गया जहां जीत की जरा भी संभावना नहीं थी. अपर्णा यादव लखनऊ कैंट विधानसभा सीट से पहली बार 2017 में चुनाव लड़ी थीं.

ऐसे में लगता तो नहीं कि अपर्णा यादव का समाजवादी पार्टी से चले जाना अखिलेश यादव के लिए कोई झटका भी है - हां, बीजेपी के लिए निश्चित तौर पर ये फायदे का सौदा है. परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ बीजेपी को यूपी चुनाव के बीच एक नया मोहरा जरूर मिल गया है.

असली बहू कौन - अपर्णा या डिंपल?

अपर्णा बिष्ट यादव और डिंपल यादव - मुलायम सिंह यादव की दोनों बहुओं का मायका उत्तराखंड से जुड़ा है. दोनों ही के माता पिता उत्तराखंड से ही आते हैं. अपर्णा के पिता पत्रकार रहे हैं, जबकि डिंपल के पिता फौजी.

अपर्णा यादव सामाजिक कार्यों में भी एक्टिव रहती हैं, लेकिन बीजेपी ने उनको समाजवादी पार्टी के नेता या उनकी किसी विशिष्ट पहचान या उनके सामाजिक कार्यों का जिक्र करते हुए पार्टी नहीं ज्वाइन कराया है - एक ही परिचय दिया है मुलायम सिंह की बहू.

यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने ट्विटर पर अपर्णा यादव के बीजेपी ज्वाइन करने तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा भी है, 'समाजवादी पार्टी के संरक्षक श्री मुलायम सिंह यादव जी की पुत्रवधू श्रीमती अपर्णा यादव जी का परिवारवाद के दलदल से निकल कर राष्ट्रवाद के पथ पर चलने वाली भारतीय जनता पार्टी में स्वागत है. अच्छे लोग अपने लिये सही रास्ता खोज ही लेते हैं.'

लेकिन वो बहू जो समाजवादी पार्टी में भी रह कर भी हरदम 'मोदी-मोदी' या 'योगी-योगी' ही करती रही हो, उसके राजनीतिक मंच बदल लेने से कितना फर्क पड़ता है. अपर्णा यादव, दरअसल, मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं. साधना यादव चाहती थीं कि प्रतीक भी अखिलेश यादव की तरह राजनीति में आयें, लेकिन अपने जिम और रियल एस्टेट के कारोबार में भी खुश हैं. अपर्णा यादव की अपनी ख्वाहिशें तो रही ही होंगी, लेकिन सास की भी भूमिका बतायी जाती है.

मुलायम सिंह यादव ने भी दोनों बहुओं में वैसा ही फर्क किया है जैसा भाई और बेटे में. मुलायम सिंह के राजनीतिक विरासत सौंप देने के बाद अपर्णा और शिवपाल यादव की हैसियत भी एक जैसी ही रह गयी थी. चूंकि शिवपाल ने संगठन में एक्टिव रोल निभाया था, इसलिए उनका कद बड़ा रहा है, लेकिन अपर्णा तो बस एक चेहरा रही हैं, जिसका परिचय मुलायम सिंह यादव की बहू के तौर पर दिया जाता रहा है - बीजेपी भी वही कर रही है.

परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ नया मोहरा

देखा जाये तो बीजेपी के लिए यूपी में मेनका गांधी और वरुण गांधी जैसा एक नया नेता मिल गया है - जैसे मेनका-वरुण को गांधी परिवार के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता रहा है, अपर्णा यादव को भी वैसे ही इस्तेमाल किया जाएगा.

मेनका गांधी तो शुरू से ही गांधी परिवार के खिलाफ बोलती आयी हैं, लेकिन वरुण गांधी थोड़ा परहेज और संकोच जरूर करते रहे, लेकिन 2019 में तो बीजेपी ने वो भी खत्म करा दिया - और हो सकता है जल्द ही अपर्णा यादव के मुंह से भी सुनने को मिले, 'मेरे परिवार में भी दो-दो मुख्यमंत्री रहे, लेकिन योगी आदित्यनाथ जैसा तो कोई नहीं है.'

2019 के आम चुनाव में ये वरुण गांधी ने ही कहा था - 'मेरे परिवार में भी कुछ लोग प्रधानमंत्री रहे हैं, लेकिन जो सम्मान मोदी ने देश को दिलाया है... वो बहुत लंबे समय से किसी ने देश को नहीं दिलाया.'

वरुण गांधी ने ये बात पीलीभीत से उनका टिकट पक्का होने जाने के बाद कही थी. हो सकता है ये डील का हिस्सा रहा हो क्योंकि नेतृत्व की नाराजगी थी - मां बेटे में से एक को ही टिकट मिल रहा था. फिर बताते हैं कि मेनका ने संघ कनेक्शन का इस्तेमाल किया और सीटों की अदला-बदली का ऑफर दिया. तब जाकर बात बनी. फिर वरुण गांधी ने भी एक बयान देकर बदला चुका दिया. हाल फिलहाल वरुण गांधी के जो तेवर नजर आ रहे हैं वो तो हर कोई समझ ही रहा है.

बीजेपी का एक और फायदा है. एक चर्चा अपर्णा के अमेठी की तिलोई सीट से और फिर अगले आम चुनाव में अमेठी संसदीय क्षेत्र से स्मृति ईरानी के खिलाफ उतारने की भी रही है - अगर वास्तव में ये सब होने वाला था तो बीजेपी ने स्मृति ईरानी के लिए भी एक संभावित मुश्किल कम कर दी है.

सबसे खास बात, कई गैर-यादव ओबीसी चेहरों के बीजेपी छोड़ कर चले जाने के बाद बीदेपी को एक यादव-ओबीसी चेहरा तो मिल ही गया है - एक स्टार प्रचारक.

अपर्णा की सीट पर भी पेंच फंसेगा

2017 में जिस सीट से अपर्णा यादव चुनाव लड़ी थीं, बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने अपने बेटे मयंक यादव के लिए टिकट मांगा है. वैसे मेनका गांधी से एक कदम आगे बढ़ कर रीता बहुगुणा जोशी ने, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी को ये ऑफर किया है कि वो बेटे के टिकट के लिए संसद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे सकती हैं.

अपर्णा यादव को लेकर बीजेपी की तरफ से बताया तो यही जा रहा है कि वो बगैर किसी शर्त के बीजेपी में आयी हैं. लेकिन तब क्या होगा अगर बीजेपी रीता बहुगुणा पर अपर्णा को तरजीह देती है. फिर तो हो सकता है, वो भी स्वामी प्रसाद मौर्य और बाकियों की तरह अखिलेश यादव का रुख कर लें.

अगर कैंट से बीजेपी अपर्णा को टिकट देती है - और अखिलेश यादव को रीता बहुगुणा में पोटेंशियल समझ आता है तो वो उनके बेटे को टिकट दे सकते हैं. वहां उनका चांस भी ज्यादा है - क्योंकि 2017 में उनकी जीत में सिर्फ बीजेपी के टिकट की ही भूमिका नहीं रही.

क्या शिवपाल यादव भी कतार में हैं?

चूंकि समाजवादी पार्टी और मुलायम परिवार में पांच साल पहले चले झगड़े के वक्त अपर्णा और शिवपाल दोनों ही एक ही छोर पर थे, लिहाजा एक दूसरे के प्रति सहानुभूति भी देखने को मिलती थी. बाद में भी काफी दिनों तक अपर्णा को शिवपाल के पक्ष में बयान देते भी देखा गया - और सेक्युलर मोर्चा का मंच शेयर करते भी देखा गया था.

हालांकि, हाल ही में शिवपाल यादव ने अपर्णा को पार्टी के लिए कुछ करने और उसके बाद ही कोई उम्मीद करने की नसीहत दी थी. शिवपाल की सलाह भी थी कि अपर्णा को सपा में ही बने रहना चाहिये. लेकिन अपर्णा के बीजेपी ज्वाइन कर लेने के बाद, बीजेपी नेता लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने शिवपाल यादव की तरफ भी इशारा किया था. आज तक से बातचीत में लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा कि मुलायम परिवार से एक और सदस्य बीजेपी में आ सकता है. बोले, 'शिवपाल समझदार शख्स हैं... उन्हें अपने राजनीतिक फैसले लेने हैं'. वाजपेयी ने कहा कि शिवपाल जाने पहचाने नेता हैं और यूपी में उनकी काफी पकड़ है - लेकिन कुछ ही देर बाद शिवपाल यादव ने ट्विटर पर बयान जारी कर वाजपेयी के दावे का खंडन कर दिया.

स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा गौतम ने भी शुरू में दावा किया था कि उनके पिता ने सिर्फ योगी मंत्रिमंडल छोड़ा है - न सपा ज्वाइन किया है, न बीजेपी छोड़ी है! फिर तो शिवपाल यादव के बयान पर भी भरोसा करना ही होगा, जब तक कि खिचड़ी पूरी तरह पक नहीं जाती!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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