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Updated: 25 मार्च, 2018 06:41 PM
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अमित शाह ने साफ साफ बोल दिया है कि TDP के NDA छोड़ने से 2019 में BJP कोई फर्क नहीं पड़ने वाला? 'आज तक' के 'सीधी बात' कार्यक्रम में अमित शाह ने ये बात कही है.

बीजेपी अध्यक्ष शाह और टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के बीच पत्र-व्यवहार सुर्खियों में है, जहां दोनों एक दूसरे पर झूठ बोलने का इल्जाम लगा रहे हैं. शाह का ये बयान ऐसे वक्त आया है जब एनडीए के कई सहयोगी बागी रुख अख्तियार किये हुए लगते हैं - और इसी बीच नीतीश-पासवान की सियासी जुगलबंदी भी सियासी हवाओं को गुलजार किये हुए है.

आखिर क्या है बीजेपी की तैयारी जिसमें सहयोगियों के नाज-नखरों की कोई गुंजाइश नहीं बनती?

शाह-नायडू के बीच पत्र व्यवहार

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के तेवर बजट पेश किये जाने के बाद से ही बदल गये थे - और फिर दोनों दलों [बीजेपी और टीडीपी] के मंत्रियों का एक्सचेंज ऑफर की तरह इस्तीफों का दौर भी चला. बाद में एक नये मोर्चे की तैयारी भी चल रही है. मोर्चे में एक पेंच और जुड़ गया है कि ये सिर्फ गैर-बीजेपी न होकर गैर-कांग्रेस भी हो सकता है. गैर-कांग्रेस वाले के बारे कांग्रेस का आरोप है कि वो उसे बीजेपी ही विपक्ष को बांटने के लिए प्लांट कर रही है.

shah, naiduचिट्ठियों में सवाल जवाब...

चंद्रबाबू नायडू ने 16 मार्च को एक पत्र भेजा था. उसी पत्र के जवाब में अमित शाह ने लिखा कि नायडू का फैसला एकतरफा और राजनीति से प्रेरित है. शाह का इस बात पर भी जोर रहा कि नायडू के फैसले का आंध्र प्रदेश के हित से कोई लेना देना नहीं है.

शाह के आरोपों को खारिज करते हुये नायडू ने कहा, ‘‘शाह ने जो लिखा है वह झूठ का पुलिंदा और अधूरा सच है. ये न सिर्फ अपमानजनक है बल्कि आंध्र प्रदेश के लोगों को भड़काने वाला भी है...’’ टीडीपी नेता ने चिट्ठी में इस्तेमाल भाषा पर भी टिप्पणी की, बोले, "ये राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष जैसी नहीं है...’’

बातचीत में गठबंधन टूटने से एनडीए पर फर्क पड़ने को लेकर शाह ने कहा, "2014 में कई नई पार्टियों ने हमारे साथ हाथ मिलाया था. 11 पार्टियां हमसे जुड़ी थीं और इनमें से सिर्फ एक अलग हुई है. एनडीए नहीं टूटेगा."

अमित शाह ने चंद्रबाबू नायडू को लेकर जो बात कही है, वो निश्चित तौर पर बाकी सहयोगियों के लिए कड़ा संदेश भी समझा जाना चाहिये. शिवसेना के खुले ऐलान के बाद, जाहिर है शाह ने एनडीए के दूसरे दलों की हरकतों पर भी गौर किया ही होगा. हालांकि, बीजेपी की ओर से शिवसेना को लेकर ऐसा कोई बयान नहीं आया जैसा टीडीपी को लेकर है. नायडू को लेकर अपने बयान से शाह ने सभी को साफ करने की कोशिश की है कि कोई बहुत मुगालते में न रहे, किसी के रहने न रहने से बहुत फर्क नहीं पड़ता.

एनडीए के बाकी बागियों का क्या

राज्य सभा चुनाव में यूपी से क्रॉस वोटिंग की खबरों में बीएसपी एमएलए अनिल सिंह का बीजेपी उम्मीदवार को वोट देना सबसे ऊपर रहा, लेकिन आरोप तो बीजेपी के एक सहयोगी दल के दो विधायकों पर भी है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के विधायकों ने बीएसपी के लिए क्रॉस वोटिंग की और पार्टी अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर का कहना है कि जांच की जा रही है. ये तो मौका, सुविधा और श्रद्धा की बात है. गुजरात में हुए राज्य सभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी की सहयोगी जेडीयू विधायक के क्रॉस वोटिंग की भी खूब चर्चा रही. जेडीयू नेतृत्व क्रॉस वोटिंग से इंकार करता रहा और बागी विधायक छोटूभाई वसावा डंके की चोट पर कॉस वोटिंग का इकरार और इजहार करते रहे.

ऐसी घटनाओं को भले ही छोटी बता कर कोई आगे बढ़ जाये लेकिन ये नहीं भूलना चाहिये कि इसी आपाधापी में कांग्रेस के अहमद पटेल जीत गये और अमित शाह को मुहंकी खानी पड़ी. टीडीपी के कदम उठाने से बहुत पहले शिव सेना ने ऐलान कर दिया है कि 2019 में वो चुनाव मैदान में अकेले उतरने वाली है. महाराष्ट्र ही नहीं 2019 में देश के कई राज्यों में जहां कहीं भी बीजेपी ने क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया है - हाल तकरीबन एक जैसा ही रहने वाला है.

shah, naiduचाल तो नायडू ने भी चल दी...

एक खबर आई थी कि नायडू के एनडीए छोड़ने की स्थिति में बीजेपी का प्लान-बी तैयार है. इस प्लान के अनुसार बीजेपी नायडू की जगह वाईएसआर कांग्रेस के नेता जगनमोहन रेड्डी को साथ लेने की तैयारी कर रही थी. लगता है नायडू को भी इस बात की भनक लग गयी और उन्होंने ऐसी चाल चली की बीजेपी का प्लान तो फेल ही लग रहा है.

नायडू ने आंध्र प्रदेश का मुद्दा उठाया और जगनमोहन के पास भी कोई रास्ता नहीं बचा था, इसलिए साथ आना पड़ा. नायडू ने स्पेशल पैकेज के जाल में जगनमोहन को भी आहिस्ते से उलझा लिया. पता चला मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के मामले में जगनमोहन आगे आगे नजर आने लगे. अब तो इस मुहिम में कांग्रेस भी शामिल हो गयी है.

बीजेपी के ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि गठबंधन की सरकार चलाना कितना मुश्किल होता है - और यूपीए के मामले में मनमोहन सिंह की भी ऐसी ही राय रही, लेकिन मौजूदा एनडीए की अगुवाई कर रही बीजेपी की मुश्किल सिर्फ टीडीपी तक ही सीमित नहीं है. यूपी में राजभर की पार्टी जैसे पेश आयी देखा ही गया, दूसरे सहयोगी अपना दल के साथ रूठने मनाने का सिलसिला भी चलता ही रहता है. पंजाब से शिरोमणि अकाली दल भी चेतावनी दे चुका है कि सहयोगियों के साथ तानाशाही से पेश आना ठीक नहीं है.

यहां तक कि बिहार में भी अमित शाह महागठबंधन तोड़ कर नीतीश कुमार को एनडीए में लाने में भले ही कामयाब हो गये हों, लेकिन जिस तरीके से पासवान का बिहार के जेडीयू नेता ने सपोर्ट किया है उसके भी कई मायने निकाले जा सकते हैं. नीतीश कुमार ने ये संकेत भी दिया है कि बिहार के नाम पर उनके स्टैंड में बदलाव नहीं आया है. समझने वाली बात ये है कि अगर नीतीश एक बार फिर एनडीए छोड़ देते हैं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिये.

तमिलनाडु में एआईएडीएमके का वही हाल है और रजनीकांत भी खुल कर साथ नहीं आ रहे हैं. जिस तरह पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने मुकुल रॉय को साथ लेकर पांव जमाने की कोशिश की है - अभी तक तो कोई खास करिश्मा देखने को नहीं मिल सका है. ये बात अलग है कि अमित शाह नॉर्थ ईस्ट की 25 में से 21 सीटें और पश्चिम बंगाल में 22 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं, ‘मैं पश्चिम बंगाल 18 बार जा चुका हूं. वहां लोग तृणमूल कांग्रेस की हिंसा की संस्कृति से तंग आ गए हैं.'

बाकी राज्य तो अपनी जगह हैं ही अमित शाह भी जानते ही होंगे कि अब तो बंगाल में भी 'एकला चलो...' का फॉर्मूला बेअसर हो चला है.

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