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Updated: 03 फरवरी, 2018 05:55 PM
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बजट 2018 तो बस बहाना है. जैसे बीजेपी बजट को 2019 के लिए सियासी टूल के तौर पर साधने में लगी है, टीडीपी नेता एन. चंद्रबाबू नायडू भी वही काम कर रहे हैं. फर्क सिर्फ ये है कि नायडू इसे अपने तरीके से डील कर रहे हैं. अगर दाल नहीं गली तो दबाव की राजनीति का ही कुछ फायदा उठाने का प्रयास हो सकता है.

ऐसा लगता है जैसे नायडू को शिवसेना की राह कुछ ज्यादा ही भा चुकी है. हो सकता है जब से उद्धव ठाकरे ने 2019 में अलग राह चुनने का ऐलान किया है, नाडयू भी उसी को फॉलो करने की सोच रहे हों. मुश्किल बस ये थी कि मन की बात करें तो कैसे? आखिर कोई न कोई बहाना तो चाहिये ही - और वो भी मजबूत हो - बजट से नुकसान की बात कर नायडू ने राजनीतिक फायदा उठाना शुरू तो कर ही दिया है.

एनडीए को झटका देने के बारे में सोचने वालों में नायडू अकेले नहीं है - उपेंद्र कुशवाहा तो पटना पहुंच कर इसका प्रदर्शन भी कर चुके हैं. ताज्जुब की बात ये है कि बीजेपी इनमें से किसी को बहुत भाव देने के पक्ष में नहीं नजर आ रही. ऐसा लगता है जैसे बीजेपी का भी प्लान-बी पहले से ही तैयार है.

एनडीए छोड़ कर क्या करेंगे नायडू?

शिवसेना ने तो साफ कर दिया है कि वो 2019 में वोटिंग के वक्त एनडीए का हिस्सा नहीं होगी, बाद की बात और है. इस बीच कांग्रेस खेमे से शिवसेना के साथ गठबंधन की भी चर्चा छेड़ी जा चुकी है. इस सिलसिले में कांग्रेस के एक पूर्व मुख्यमंत्री का बयान भी आ चुका है.

chandrababu naiduबजट के बहाने...

क्या चंद्रबाबू नायडू आंख मूंद कर शिवसेना की राह पर चलेंगे? या फिर शिवसेना वाले तेवर के साथ अलग खड़े होकर मैदान में खुद को आजमाने की कोशिश करेंगे? एक और कयास चल रहे हैं कि वो किसी नये मोर्चे का हिस्सा भी हो सकते हैं. वैसे भी नायडू कांग्रेस विरोध की राजनीति करते रहे हैं, एनडीए में वो हैं भी इसीलिए. एक दौर था जब नायडू साइबराबाद के सीईओ कहे जाते रहे. फिर एक कांग्रेसी वाईएस राजशेखर रेड्डी ने नायडू को सत्ता से बेदखल कर दिया. दिलचस्प बात ये है कि रेड्डी का बेटा जगनमोहन रेड्डी अब नायडू की चुनौती बना हुआ है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक चंद्रबाबू नायडू विजयवाड़ा में बुलाई गयी सांसदों की बैठक में कोई कड़ा फैसला ले सकते हैं. कड़ा फैसला, मसलन - मोदी कैबिनेट में शामिल टीडीपी के मंत्री क्यों न इस्तीफा दे दें, बजट में आंध्र प्रदेश के साथ सौतेले व्यवहार के विरोध में टीडीपी सांसदों को त्यागपत्र क्यों नहीं दे देना चाहिये - या फिर टीडीपी एनडीए छोड़ दे या बनी रहे.

ये सब करने से पहले नायडू ने अपने अफसरों को ये पता लगाने को कहा है कि दिल्ली में अलग अलग मंत्रालयों ने उनके राज्य के लिए बजट में क्या कुछ बख्शा है?

नायडू की इन बातों से बीजेपी खासी खफा है और इस कारण बहुत भाव देने के मूड में नहीं है. दरअसल, बीजेपी के मौजूदा नेतृत्व को ब्लैकमेल बिलकुल भी पसंद नहीं है.

खबर अंदर से ये भी आ रही है कि नायडू के मामले में बीजेपी का प्लान बी पूरी तरह तैयार है. इधर नायडू ने एनडीए छोड़ा, उधर जगनमोहन रेड्डी शामिल किये जा सकते हैं. 2019 में बीजेपी को नायडू के मुकाबले जगनमोहन का साथ ज्यादा पसंद आ रहा है.

नीतीश को एनडीए में मिलाने के साथ ही बीजेपी नॉर्थ-ईस्ट में भी छोटे-छोटे दलों से गठबंधन के प्रचार प्रसार में शिद्दत से जुटी है - और यही वजह है कि शिवसेना और नायडू के बाद उपेंद्र कुशवाहा को भी बीजेपी ने भाव देना बंद कर दिया है.

नीतीश से बदला लेने का लालू का प्लान

पटना में उपेंद्र कुशवाहा का पॉलिटिकल स्टंट अब भी चर्चा में बना हुआ है. 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्य तिथि पर पटना में उपेंद्र कुशवाहा ने सर्वदलीय 'मानव कतार' का आयोजन किया. खास बात ये रही कि इसमें कुशवाहा के एनडीए में सहयोगी बीजेपी और जेडीयू की ओर से तो कोई नहीं आया, लेकिन आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी और प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे ने पूरी मजबूती के साथ अपनी मौजूदगी दर्ज करायी - और नये राजनीतिक समीकरणों की ओर संकेत देने की कोशिश की. इससे पहले आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने दावा किया था कि राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता कुशवाहा और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी आरजेडी के संपर्क में हैं. सबसे ज्यादा चर्चित रहा एक होर्डिंग में कुशवाहा और लालू प्रसाद के साले साधु यादव का साथ साथ नजर आना.

human chain by kushwahaकहीं आरजेडी का मोहरा तो नहीं बन जाएंगे कुशवाहा?

ऊपरी तौर पर देखें तो विरोधी दलों को साथ लेकर कुशवाहा का शिक्षा सुधार पर मानव शृंखला बनाना मजाक लगता है. असल में कुशवाहा केंद्र में मानव संसाधन राज्य मंत्री हैं जिसमें शिक्षा विभाग भी आता है. तो क्या कुशवाहा अपनी ही सरकार और मंत्रालय पर सवाल खड़े कर रहे थे?

बताते हैं कि कुशवाहा का ये कार्यक्रम तब बना था जब बिहार में नीतीश कुमार महागठबंधन के मुख्यमंत्री रहे - नीतीश कुमार पाला बदल कर फिर से कुर्सी पर काबिज हो गये, लेकिन कुशवाहा अपने कार्यक्रम को लेकर अपनी बात पर कायम रहे.

कुशवाहा के हिसाब से देखें तो ये कदम भविष्य में उनके राजनीतिक समीकरण की झलकी पेश करता है. कुशवाहा की महत्वाकांक्षा में आरजेडी नेता लालू प्रसाद को अपना सीधा फायदा नजर आ रहा है. अगर कुशवाहा और लालू एक दूसरे को साध लिये तो दोनों का मकसद पूरा हो जाएगा. समझा जाता है कि नीतीश के एनडीए में आ जाने के बाद कुशवाहा असहज महसूस करने लगे हैं. जाहिर है जब बिहार में लोक सभा की सीटों का बंटवारा होगा तो नीतीश की दावेदारी भारी पड़ेगी. 2014 में कुशवाहा के हिस्से में तीन सीटें आयी थीं. इस बार एक से ज्यादा मिलने की कम ही संभावना है. फिर एनडीए में रहने का क्या फायदा, कुशवाहा की ताजा सोच यही है.

uddhavउद्धव ने दिखायी औरों को राह...

कुशवाहा की नजर अरसे से उसी कुर्सी पर है जिस पर नीतीश कुमार काबिज हैं. कुशवाहा भी उसी बिरादरी की राजनीति करते हैं जो नीतीश कुमार करते हैं. हो सकता है कुशवाहा को नीतीश के पटना से दिल्ली की फ्लाइट पकड़ने का भी अंदेशा हो - और उस हालत में भी एनडीए में रहते हुए अपने लिए बिहार में सिफर हिस्सेदारी लगती हो.

कुशवाहा फिलहाल लालू को वैसे ही इस्तेमाल करना चाहते हैं जैसे नीतीश ने किया. लालू को भी नीतीश से बदला लेने और कुशवाहा के जरिये नीतीश के वोट बैंक में सेंध लगाने का बड़ा मौका मिल रहा है. अगर ये प्रयोग चला तो लालू की राजनीति गर्त में जाने से बच सकती है.

अब पेंच सिर्फ इतना है कि 2020 में आरजेडी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव हैं - अपने पुराने ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए कुशवाहा को चुनाव में आरजेडी से ज्यादा सीटें लानी होंगी. वैसे पहले तो 2019 की वैतरणी पार करनी है.

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